ETV Bharat / bharat

वायनाड भूस्खलन: बचाव दल के सदस्य ने कहा- हमें सिर्फ मानव अंग मिले, कोई भी वन्यजीव मरा नहीं मिला - Wayanad Landslides - WAYANAD LANDSLIDES

Wayanad Landslides: वायनाड में भूस्खलन के बाद डेल्टा रेस्क्यू टीम को भी बचाव अभियान में लगाया था. डेल्टा रेस्क्यू टीम के प्रमुख एसान ने बचाव कार्यों में आने वाली चुनौतियों के बारे में बात की. तमिलनाडु के कोयंबटूर में ईटीवी भारत के संवाददाता शंकरनारायणन सुदालाई ने उसने विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की.

Wayanad Landslides
डेल्टा रेस्क्यू टीम के प्रमुख एसान (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 10, 2024, 11:05 PM IST

कोयंबटूर/हैदराबाद: केरल के वायनाड में हुए भूस्खलन ने राज्य के लोगों के लिए कभी न भूलने वाला जख्म छोड़ दिया है. सरकारी आकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या 225 है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि भूस्खलन में 400 से अधिक लोग मारे गए हैं. मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और पुंचिरिमट्टम जैसे इलाकों में लापता बताए गए 131 लोगों की तलाश अभी भी जारी है. बचाव अभियान में शामिल कोयंबटूर से डेल्टा रेस्क्यू टीम के प्रमुख एसान ने ईटीवी भारत के साथ अपने अनुभव साझा किए.

डेल्टा रेस्क्यू टीम?
नौसेना में लेफ्टिनेंट कमांडर के रूप में काम कर चुके एसान ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद डेल्टा रेस्क्यू टीम नामक एक समूह बनाया. इसमें भाग लेने वाले ज्यादातर लोग सेना के तीनों अंगों में सेवारत अधिकारी हैं. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के साथ यह टीम आपदा प्रभावित क्षेत्रों में बचाव कार्यों में लगी हुई है.

एसान अब वायनाड बचाव अभियान से कोयंबटूर लौट आए हैं. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वायनाड हमारा पहला अनुभव नहीं है, यह हमारी टीम का 19वां ऑपरेशन है. केरल के लिए यह हमारा तीसरा ऑपरेशन भी है. केरल में 2018 की बाढ़ के दौरान हम वहां गए थे और बड़े पैमाने पर बचाव कार्य किया गया था. उन्होंने याद किया कि तब नुकसान बहुत ज्यादा हुआ था. उन्होंने कहा कि इसकी तुलना में वायनाड त्रास्दी का प्रभावित क्षेत्र कम है, लेकिन हमें इस बात का खेद है कि हमारी टीम को एक भी जीवित व्यक्ति को बचाने का मौका नहीं मिला. राज्य आपदा प्रतिक्रिया दल और सेना, जो हमसे पहले प्रभावित क्षेत्र में रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाई गई थी, ने कई लोगों को जीवित बचाया. लेकिन हम केवल शव ही बरामद कर सके.

कोई जिंदा नहीं मिला, केवल शव और मानव अंग मिले...
वायनाड अन्य भूस्खलनों से किस प्रकार भिन्न या अधिक खतरनाक है. इस सवाल पर उन्होंने कहा, "हमने वायनाड में खोदाई की और केवल शव मिले. हालांकि, हमने यह सोचकर खोज की कि कम से कम एक व्यक्ति जीवित तो मिलेगा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आमतौर पर भूस्खलन जैसी घटनाओं में लोग कुछ ऐसी जगह में फंस जाते हैं, जो सुरक्षित होते हैं या जिन्हें मामूली चोटें होती हैं, उन्हें खोदकर निकाला जा सकता है. लेकिन वायनाड में ऐसा नहीं हुआ, हमें केवल शव और मानव अंग मिले, जो भूस्खलन की त्रास्दी को दर्शाता है."

शवों की पहचान करना सबसे बड़ी चुनौती
एसान ने कहा कि हमें केवल हाथ, केवल पैर और केवल सिर जैसे शरीर के अंग मिले, लेकिन आंतरिक अंग कुछ जगहों पर बिखरे हुए थे. लोग हमारे पास आए और कहा कि आंत का कोई हिस्सा या मस्तिष्क जैसी कोई चीज है और इसे देखने के लिए बुलाया, लेकिन तब भी हमें पूरा शरीर नहीं मिला. उन्होंने कहा कि सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती शवों की पहचान करना है.

उन्होंने बताया कि शवों की पहचान नेल पॉलिश, बच्चे की उंगली की अंगूठी आदि से भी की गई. अगर आप पूछें कि ऐसा क्यों हुआ, तो इसमें कोई संदेह नहीं है, बड़ी-बड़ी चट्टानें, बड़े-बड़े पेड़ उखड़कर पानी के साथ आ रहे हैं. अगर ये इंसानों पर गिरें तो क्या होगा, वे कुचलकर मर जाएंगे. उन्हें कहा कि कुछ पेड़ इतने विशाल थे कि चार लोग मिलकर उन्हें भुजाओं में नहीं भर सकते थे. उखड़े हुए पेड़ों को काटना और हटाना एक चुनौती थी.

कोई भी वन्यजीव मरा नहीं मिला...
उन्होंने कहा कि बचाव के दौरान उन्होंने किसी भी वन्यजीव को पीड़ित या मरते हुए नहीं देखा. उन्होंने कहा कि वे शायद प्राकृतिक प्रवृत्ति के कारण बच गए होंगे. एसान ने कहा कि वायनाड में हाथियों और किंग कोबरा का बोलबाला है, लेकिन बचाव अभियान के दौरान उन्हें ऐसे जानवरों का कोई शव नहीं मिला.

यह भी पढ़ें- वायनाड में पीएम मोदी ने लैंडस्लाइड क्षेत्रों का किया सर्वेक्षण, बोले- हजारों परिवारों के सपने चकनाचूर हुए

कोयंबटूर/हैदराबाद: केरल के वायनाड में हुए भूस्खलन ने राज्य के लोगों के लिए कभी न भूलने वाला जख्म छोड़ दिया है. सरकारी आकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या 225 है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि भूस्खलन में 400 से अधिक लोग मारे गए हैं. मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और पुंचिरिमट्टम जैसे इलाकों में लापता बताए गए 131 लोगों की तलाश अभी भी जारी है. बचाव अभियान में शामिल कोयंबटूर से डेल्टा रेस्क्यू टीम के प्रमुख एसान ने ईटीवी भारत के साथ अपने अनुभव साझा किए.

डेल्टा रेस्क्यू टीम?
नौसेना में लेफ्टिनेंट कमांडर के रूप में काम कर चुके एसान ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद डेल्टा रेस्क्यू टीम नामक एक समूह बनाया. इसमें भाग लेने वाले ज्यादातर लोग सेना के तीनों अंगों में सेवारत अधिकारी हैं. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के साथ यह टीम आपदा प्रभावित क्षेत्रों में बचाव कार्यों में लगी हुई है.

एसान अब वायनाड बचाव अभियान से कोयंबटूर लौट आए हैं. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वायनाड हमारा पहला अनुभव नहीं है, यह हमारी टीम का 19वां ऑपरेशन है. केरल के लिए यह हमारा तीसरा ऑपरेशन भी है. केरल में 2018 की बाढ़ के दौरान हम वहां गए थे और बड़े पैमाने पर बचाव कार्य किया गया था. उन्होंने याद किया कि तब नुकसान बहुत ज्यादा हुआ था. उन्होंने कहा कि इसकी तुलना में वायनाड त्रास्दी का प्रभावित क्षेत्र कम है, लेकिन हमें इस बात का खेद है कि हमारी टीम को एक भी जीवित व्यक्ति को बचाने का मौका नहीं मिला. राज्य आपदा प्रतिक्रिया दल और सेना, जो हमसे पहले प्रभावित क्षेत्र में रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाई गई थी, ने कई लोगों को जीवित बचाया. लेकिन हम केवल शव ही बरामद कर सके.

कोई जिंदा नहीं मिला, केवल शव और मानव अंग मिले...
वायनाड अन्य भूस्खलनों से किस प्रकार भिन्न या अधिक खतरनाक है. इस सवाल पर उन्होंने कहा, "हमने वायनाड में खोदाई की और केवल शव मिले. हालांकि, हमने यह सोचकर खोज की कि कम से कम एक व्यक्ति जीवित तो मिलेगा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आमतौर पर भूस्खलन जैसी घटनाओं में लोग कुछ ऐसी जगह में फंस जाते हैं, जो सुरक्षित होते हैं या जिन्हें मामूली चोटें होती हैं, उन्हें खोदकर निकाला जा सकता है. लेकिन वायनाड में ऐसा नहीं हुआ, हमें केवल शव और मानव अंग मिले, जो भूस्खलन की त्रास्दी को दर्शाता है."

शवों की पहचान करना सबसे बड़ी चुनौती
एसान ने कहा कि हमें केवल हाथ, केवल पैर और केवल सिर जैसे शरीर के अंग मिले, लेकिन आंतरिक अंग कुछ जगहों पर बिखरे हुए थे. लोग हमारे पास आए और कहा कि आंत का कोई हिस्सा या मस्तिष्क जैसी कोई चीज है और इसे देखने के लिए बुलाया, लेकिन तब भी हमें पूरा शरीर नहीं मिला. उन्होंने कहा कि सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती शवों की पहचान करना है.

उन्होंने बताया कि शवों की पहचान नेल पॉलिश, बच्चे की उंगली की अंगूठी आदि से भी की गई. अगर आप पूछें कि ऐसा क्यों हुआ, तो इसमें कोई संदेह नहीं है, बड़ी-बड़ी चट्टानें, बड़े-बड़े पेड़ उखड़कर पानी के साथ आ रहे हैं. अगर ये इंसानों पर गिरें तो क्या होगा, वे कुचलकर मर जाएंगे. उन्हें कहा कि कुछ पेड़ इतने विशाल थे कि चार लोग मिलकर उन्हें भुजाओं में नहीं भर सकते थे. उखड़े हुए पेड़ों को काटना और हटाना एक चुनौती थी.

कोई भी वन्यजीव मरा नहीं मिला...
उन्होंने कहा कि बचाव के दौरान उन्होंने किसी भी वन्यजीव को पीड़ित या मरते हुए नहीं देखा. उन्होंने कहा कि वे शायद प्राकृतिक प्रवृत्ति के कारण बच गए होंगे. एसान ने कहा कि वायनाड में हाथियों और किंग कोबरा का बोलबाला है, लेकिन बचाव अभियान के दौरान उन्हें ऐसे जानवरों का कोई शव नहीं मिला.

यह भी पढ़ें- वायनाड में पीएम मोदी ने लैंडस्लाइड क्षेत्रों का किया सर्वेक्षण, बोले- हजारों परिवारों के सपने चकनाचूर हुए

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.