नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के इंटरव्यू से जुड़े मामले में एक न्यूज चैनल के पत्रकार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. बिश्नोई 2022 में गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के आरोपियों में से एक है.
मामले में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने कहा, "अगले आदेश तक, पत्रकार की गिरफ्तारी न की जाए…". वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बेंच के समक्ष न्यूज चैनल का प्रतिनिधित्व किया. बेंच में जस्टिस जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल थे.
रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया गया कि इंटरव्यू इंवेस्टिगेशन जर्नलिज्म था और पत्रकार को पता था कि जेल के अंदर फोन आसानी से उपलब्ध है. इसलिए पत्रकार ने इंटरव्यू लेने के लिए अपने सोर्स का उपयोग किया.
जेल नियमावली का उल्लंघन
पीठ ने कहा कि पत्रकार ने संभवतः जेल नियमावली का उल्लंघन किया है. इसके साथ कोर्ट ने पत्रकार को एसआईटी द्वारा की जा रही जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया. न्यूज चैनल के वकील ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश की वैधता पर सवाल उठाया, जिसने टीवी चैनल के लिए साक्षात्कार को स्वतः संज्ञान मामले में जांच के दायरे में लाया. रोहतगी ने कहा कि इससे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
आपने किसकी अनुमति ली?
पीठ को बताया गया कि हाई कोर्ट कैदियों को दी जाने वाली सुविधाओं के मुद्दे पर विचार कर रहा है और किसी ने इंटरव्यू की ओर ध्यान दिलाया और उसने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया. दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने कहा कि तथ्य यह है कि न्यूज चैनल ने जेल में प्रवेश किया और टीवी पर इंटरव्यू दिखाया.आपने किसकी अनुमति ली?
पत्रकार को मिल रही धमकियां
वाटरगेट कांड का हवाला देते हुए वकील ने तर्क दिया कि अगर एक खोजी पत्रकार सड़ांध को उजागर नहीं करेगा, तो कौन करेगा? उन्होंने कहा कि अब पत्रकार को धमकियां मिल रही हैं और उन्हें गिरफ़्तारी का भी डर है. वकील ने पूछा, "पंजाब पुलिस इस मामले की जांच कैसे कर सकती है?" उन्होंने कहा कि अगर इस मामले की जांच करनी ही है तो इसे सीबीआई को सौंप दिया जाना चाहिए.
बता दें कि मार्च 2023 में निजी न्यूज चैनल ने बिश्नोई के दो इंटरव्यू चलाए थे. इसके बाद दिसंबर 2023 में हाई कोर्ट ने बिश्नोई के साक्षात्कार में आईपीएस अधिकारी प्रबोध कुमार की अध्यक्षता में एक एसआईटी द्वारा एफआईआर दर्ज करने और जांच करने का आदेश दिया था. उच्च न्यायालय ने जेल परिसर के भीतर कैदियों द्वारा मोबाइल फोन के इस्तेमाल से संबंधित मामले में स्वत: संज्ञान लिया था.
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