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'न पानी की पर्याप्त सप्लाई, न साफ-सफाई की व्यवस्था...' असम के डिटेंशन सेंटर्स पर SC ने जताई चिंता - Assam Detention Centre - ASSAM DETENTION CENTRE

Assam Detention Centre: सुप्रीम कोर्ट ने असम के डिटेंशन सेंटर्स की खराब स्थिति पर चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा कि डिटेंशन सेंटर्स में सुविधाएं बहुत खराब हैं. वहां, पर्याप्त पानी की सप्लाई नहीं है और कोई उचित सफाई व्यवस्था नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Getty Images)
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By Sumit Saxena

Published : Jul 26, 2024, 5:11 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को असम के डिटेंशन सेंटर्स की खराब स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि वहां न तो उचित शौचालय हैं और न चिकित्सा सुविधाएं. अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से पूछा कि सुविधाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी किसकी है, केंद्र सरकार की या राज्य सरकार की?

कोर्ट के सवाल पर वकील ने कहा कि उनके पास केवल निर्वासन के बारे में निर्देश हैं. उधर याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि डिटेंशन सेंटर्स पर सुविधाएं बहुत खराब हैं और यह 3,000 लोगों वाला सेंटर है. गोंसाल्वेस ने कहा, "उन्हें वहां जाना चाहिए और लोगों से मिलना चाहिए, जैसे NHRC ने किया था...".

इस पर जस्टिस ओका ने राज्य सरकार से निर्देश लेने को कहा कि डिटेंशन सेंटर्स में सुविधाएं प्रदान करने के लिए कौन जिम्मेदार है. बता दें कि इन डिटेंशन सेंटर्स में संदिग्ध नागरिकता और विदेशी समझे जाने वाले लोगों को रखा जाता है.

'हाई कोर्ट में लंबित केस'
गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य सरकार 17 लोगों को निर्वासित करना चाहती थी, लेकिन उन्होंने हमें सूची नहीं दी और कहा, "हमें लगा कि ये स्वैच्छिक निर्वासन है. अब हमने असम के वकीलों से सुना है कि जिन लोगों को निर्वासित करने का प्रस्ताव है, उनमें से कुछ के मामले वास्तव में हाई कोर्ट में लंबित हैं."

गोंजाल्विस ने कहा कि स्टेट को यह जांच करनी चाहिए कि क्या वे उन लोगों को निर्वासित कर रहे हैं, जिनके मामले अदालतों में लंबित हैं. उन्हें हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कोई कानूनी सहायता प्रदान नहीं की जाती है...और उन्हें हमें यह बताना चाहिए कि यह स्वैच्छिक है या अनैच्छिक और क्या बांग्लादेश सरकार सहमत है...".

'पर्याप्त पानी की सप्लाई नहीं'
इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि पहले अदालत फैसेलिटीज के मुद्दे की जांच करना चाहती है और उसने ट्रांजिट कैंप में सुविधाओं की स्थिति पर रिपोर्ट की जांच की है. जस्टिस ओका ने कहा, "हमें लगता है कि सुविधाएं बहुत खराब हैं. पर्याप्त पानी की सप्लाई नहीं है और कोई उचित सफाई व्यवस्था नहीं है. कोई उचित शौचालय नहीं हैं. रिपोर्ट में भोजन और मेडिकल हेल्थ की सुविधाओं के बारे में कुछ नहीं कहा गया है...."

पीठ ने असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को निर्देश दिया कि वह एक बार और दौरा करके न केवल रिपोर्ट में उल्लिखित सुविधाओं का पता लगाएं, बल्कि परोसे जाने वाले खाने की क्वालिटी,मात्रा और रसोई में साफ-सफाई और चिकित्सा सुविधाओं का भी पता लगाएं.

कोर्ट ने मांगी नई रिपोर्ट
पीठ ने कहा सचिव आज से तीन सप्ताह के भीतर एक नई रिपोर्ट पेश करने को भी कहा. पीठ ने राज्य सरकार के वकील को असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट भी देखने को कहा. सुप्रीम कोर्ट राजुबाला दास की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

इससे पहले अदालत ने केंद्र से असम के ट्रांजिट कैंप में हिरासत में लिए गए 17 घोषित विदेशियों को निर्वासित करने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा था. अदालत ने असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एक अधिकारी को वहां उपलब्ध सुविधाओं का पता लगाने के लिए हिरासत केंद्र का दौरा करने को भी कहा था.

यह भी पढ़ें- नेमप्लेट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की जारी रहेगी अंतरिम रोक, 5 अगस्त को अगली सुनवाई

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को असम के डिटेंशन सेंटर्स की खराब स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि वहां न तो उचित शौचालय हैं और न चिकित्सा सुविधाएं. अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से पूछा कि सुविधाएं मुहैया कराने की जिम्मेदारी किसकी है, केंद्र सरकार की या राज्य सरकार की?

कोर्ट के सवाल पर वकील ने कहा कि उनके पास केवल निर्वासन के बारे में निर्देश हैं. उधर याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि डिटेंशन सेंटर्स पर सुविधाएं बहुत खराब हैं और यह 3,000 लोगों वाला सेंटर है. गोंसाल्वेस ने कहा, "उन्हें वहां जाना चाहिए और लोगों से मिलना चाहिए, जैसे NHRC ने किया था...".

इस पर जस्टिस ओका ने राज्य सरकार से निर्देश लेने को कहा कि डिटेंशन सेंटर्स में सुविधाएं प्रदान करने के लिए कौन जिम्मेदार है. बता दें कि इन डिटेंशन सेंटर्स में संदिग्ध नागरिकता और विदेशी समझे जाने वाले लोगों को रखा जाता है.

'हाई कोर्ट में लंबित केस'
गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य सरकार 17 लोगों को निर्वासित करना चाहती थी, लेकिन उन्होंने हमें सूची नहीं दी और कहा, "हमें लगा कि ये स्वैच्छिक निर्वासन है. अब हमने असम के वकीलों से सुना है कि जिन लोगों को निर्वासित करने का प्रस्ताव है, उनमें से कुछ के मामले वास्तव में हाई कोर्ट में लंबित हैं."

गोंजाल्विस ने कहा कि स्टेट को यह जांच करनी चाहिए कि क्या वे उन लोगों को निर्वासित कर रहे हैं, जिनके मामले अदालतों में लंबित हैं. उन्हें हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कोई कानूनी सहायता प्रदान नहीं की जाती है...और उन्हें हमें यह बताना चाहिए कि यह स्वैच्छिक है या अनैच्छिक और क्या बांग्लादेश सरकार सहमत है...".

'पर्याप्त पानी की सप्लाई नहीं'
इस पर जस्टिस ओका ने कहा कि पहले अदालत फैसेलिटीज के मुद्दे की जांच करना चाहती है और उसने ट्रांजिट कैंप में सुविधाओं की स्थिति पर रिपोर्ट की जांच की है. जस्टिस ओका ने कहा, "हमें लगता है कि सुविधाएं बहुत खराब हैं. पर्याप्त पानी की सप्लाई नहीं है और कोई उचित सफाई व्यवस्था नहीं है. कोई उचित शौचालय नहीं हैं. रिपोर्ट में भोजन और मेडिकल हेल्थ की सुविधाओं के बारे में कुछ नहीं कहा गया है...."

पीठ ने असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को निर्देश दिया कि वह एक बार और दौरा करके न केवल रिपोर्ट में उल्लिखित सुविधाओं का पता लगाएं, बल्कि परोसे जाने वाले खाने की क्वालिटी,मात्रा और रसोई में साफ-सफाई और चिकित्सा सुविधाओं का भी पता लगाएं.

कोर्ट ने मांगी नई रिपोर्ट
पीठ ने कहा सचिव आज से तीन सप्ताह के भीतर एक नई रिपोर्ट पेश करने को भी कहा. पीठ ने राज्य सरकार के वकील को असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट भी देखने को कहा. सुप्रीम कोर्ट राजुबाला दास की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

इससे पहले अदालत ने केंद्र से असम के ट्रांजिट कैंप में हिरासत में लिए गए 17 घोषित विदेशियों को निर्वासित करने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा था. अदालत ने असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एक अधिकारी को वहां उपलब्ध सुविधाओं का पता लगाने के लिए हिरासत केंद्र का दौरा करने को भी कहा था.

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