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धर्म परिवर्तन किए बगैर हिंदू व मुस्लिम के बीच विवाह नहीं हो सकता, MP हाईकोर्ट का अहम आदेश - No marriage without conversion

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मुस्लिम युवक और हिंदू युवती को विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने की अनुमति नहीं दी. दोनों ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत बिना धर्म बदले शादी करने के लिए कोर्ट से मदद मांगी थी. जस्टिस गुरुपाल सिंह आहलूवालिया का कहना है कि दरअसल ऐसी शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ में फासीद या अनियमित मानी जाती है.

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 30, 2024, 5:06 PM IST

No marriage without conversion
धर्म परिवर्तन किए बगैर हिंदू व मुस्लिम के बीच विवाह नहीं हो सकता (ETV BHARAT)

जबलपुर। मामले के अनुसार अनूपपुर जिले का एक प्रेमी जोड़ा शादी करना चाहता है. लड़का मुसलमान है और लड़की हिंदू है. इन दोनों ने अपनी शादी के लिए अनूपपुर कलेक्ट्रेट में शादी का आवेदन दिया और सुरक्षा की मांग की. दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम और मुस्लिम विवाह अधिनियम इस बात की इजाजत नहीं देता कि कोई हिंदू युवक या युवती किसी मुस्लिम युवक या युवती से शादी करे. वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ में यह स्पष्ट है कि किसी भी मुस्लिम युवक की शादी मूर्तिपूजक हिंदू लड़की से नहीं हो सकती. दोनों ही विवाह अधिनियम केवल एक ही स्थिति में स्त्री और पुरुष को शादी करने की इजाजत देते हैं, जब तक कि वे दोनों एक ही धर्म के ना हों. इसलिए इन कानून के तहत यदि शादी करनी है तो धर्म परिवर्तन करना जरूरी है.

भारतीय संविधान में विशेष विवाह अधिनियम

भारतीय कानून में एक प्रावधान विशेष विवाह अधिनियम का भी है. इसके तहत कोई भी युवक या युवती बिना धर्म परिवर्तन शादी कर सकते हैं. इसी कानून के तहत अनूपपुर के इस जोड़े ने शादी की इजाजत मांगी. लेकिन कलेक्टर अनूपपुर ने यह इजाजत नहीं दी. इन दोनों ने इस शादी के साथ ही पुलिस प्रोटेक्शन भी मांगा था. जब जिला प्रशासन से इन्हें मदद नहीं मिली तो दोनों ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

बच्चों के संपत्ति अधिकार सुरक्षित नहीं

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में लड़का व लड़की की ओर से एडवोकेट दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा. यह मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की कोर्ट में सुना गया. जीएस अहलूवालिया ने अपने आदेश में इस प्रेमी जोड़े को विवाह करने की अनुमति नहीं दी और अपने आदेश में लिखा कि यदि यह विशेष विवाह अधिनियम से शादी कर भी लेते हैं तो इस विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत सही नहीं माना जाएगा. ऐसी स्थिति में इन दोनों से होने वाले बच्चों के संपत्ति के अधिकार सुरक्षित नहीं रहेंगे.

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मुस्लिम पर्सनल लॉ के नियमों का हवाला दिया

अदालत ने इन्हें शादी करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ इस तरह की शादियों को गैर कानूनी मानता है और संपत्ति के अधिकतर मुस्लिम पर्सनल ला के तहत ही चलते हैं. वहीं कोर्ट ने इन दोनों को ही सुरक्षा देने की बात पर भी सहमति नहीं जताई. कोर्ट का कहना है कि यह मामला लिव इन रिलेशनशिप का भी नहीं है. इसलिए कोर्ट उनकी कोई मदद नहीं कर पाएगी. इस प्रकार इस मामले को खारिज कर दिया गया. वहीं, लड़की के पिता ने आरोप लगाया है कि वह घर से जेवर और पैसे लेकर भी आई है. इसके साथ ही वे इस शादी को अपनी मंजूरी नहीं दे रहे हैं, जबकि विशेष विवाह अधिनियम में यह भी जरूरी है कि शादी में गवाह होने चाहिए और किसी को किसी किस्म की आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

जबलपुर। मामले के अनुसार अनूपपुर जिले का एक प्रेमी जोड़ा शादी करना चाहता है. लड़का मुसलमान है और लड़की हिंदू है. इन दोनों ने अपनी शादी के लिए अनूपपुर कलेक्ट्रेट में शादी का आवेदन दिया और सुरक्षा की मांग की. दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम और मुस्लिम विवाह अधिनियम इस बात की इजाजत नहीं देता कि कोई हिंदू युवक या युवती किसी मुस्लिम युवक या युवती से शादी करे. वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ में यह स्पष्ट है कि किसी भी मुस्लिम युवक की शादी मूर्तिपूजक हिंदू लड़की से नहीं हो सकती. दोनों ही विवाह अधिनियम केवल एक ही स्थिति में स्त्री और पुरुष को शादी करने की इजाजत देते हैं, जब तक कि वे दोनों एक ही धर्म के ना हों. इसलिए इन कानून के तहत यदि शादी करनी है तो धर्म परिवर्तन करना जरूरी है.

भारतीय संविधान में विशेष विवाह अधिनियम

भारतीय कानून में एक प्रावधान विशेष विवाह अधिनियम का भी है. इसके तहत कोई भी युवक या युवती बिना धर्म परिवर्तन शादी कर सकते हैं. इसी कानून के तहत अनूपपुर के इस जोड़े ने शादी की इजाजत मांगी. लेकिन कलेक्टर अनूपपुर ने यह इजाजत नहीं दी. इन दोनों ने इस शादी के साथ ही पुलिस प्रोटेक्शन भी मांगा था. जब जिला प्रशासन से इन्हें मदद नहीं मिली तो दोनों ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

बच्चों के संपत्ति अधिकार सुरक्षित नहीं

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में लड़का व लड़की की ओर से एडवोकेट दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा. यह मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की कोर्ट में सुना गया. जीएस अहलूवालिया ने अपने आदेश में इस प्रेमी जोड़े को विवाह करने की अनुमति नहीं दी और अपने आदेश में लिखा कि यदि यह विशेष विवाह अधिनियम से शादी कर भी लेते हैं तो इस विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत सही नहीं माना जाएगा. ऐसी स्थिति में इन दोनों से होने वाले बच्चों के संपत्ति के अधिकार सुरक्षित नहीं रहेंगे.

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मुस्लिम पर्सनल लॉ के नियमों का हवाला दिया

अदालत ने इन्हें शादी करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ इस तरह की शादियों को गैर कानूनी मानता है और संपत्ति के अधिकतर मुस्लिम पर्सनल ला के तहत ही चलते हैं. वहीं कोर्ट ने इन दोनों को ही सुरक्षा देने की बात पर भी सहमति नहीं जताई. कोर्ट का कहना है कि यह मामला लिव इन रिलेशनशिप का भी नहीं है. इसलिए कोर्ट उनकी कोई मदद नहीं कर पाएगी. इस प्रकार इस मामले को खारिज कर दिया गया. वहीं, लड़की के पिता ने आरोप लगाया है कि वह घर से जेवर और पैसे लेकर भी आई है. इसके साथ ही वे इस शादी को अपनी मंजूरी नहीं दे रहे हैं, जबकि विशेष विवाह अधिनियम में यह भी जरूरी है कि शादी में गवाह होने चाहिए और किसी को किसी किस्म की आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

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