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मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि मामले में कोर्ट ने सजा पर फैसला सुरक्षित रखा, जानें क्या है पूरा मामला.. - Medha Patkar Case

मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि मामले में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने उनकी सजा पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने 24 मई को मामले में दोषी करार दिया था. उन पर दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मानहानि का केस दाखिल किया था.

मेधा पाटकर
मेधा पाटकर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jun 7, 2024, 9:15 AM IST

Updated : Jun 7, 2024, 4:55 PM IST

नई दिल्लीः दिल्ली की साकेत कोर्ट ने दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दाखिल आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी करार दी गईं नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को सजा सुनाने पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने 1 जुलाई को फैसला सुनाने का आदेश दिया.

बता दें कि 30 मई को शिकायतकर्ता वीके सक्सेना की ओर से पेश वकील ने मेधा पाटकर को अधिकतम सजा देने की मांग की थी. भारतीय दंड संहिता में आपराधिक मानहानि के मामले में अधिकतम दो साल की कैद की सजा का प्रावधान है. 24 मई को साकेत कोर्ट ने मेधा पाटकर को दोषी करार दिया गया था. कोर्ट ने मेधा पाटकर को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दोषी करार दिया था.

जानिए, क्या कहते हुए कोर्ट ने बताया था दोषी
कोर्ट ने कहा था कि ये साफ हो गया है कि आरोपी मेधा पाटकर ने सिर्फ प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ गलत जानकारी के साथ आरोप लगाए. बता दें कि 25 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर ने अंग्रेजी में एक बयान जारी कर वीके सक्सेना पर हवाला के जरिये लेनदेन का आरोप लगाया था और उन्हें कायर कहा था. मेधा पाटकर ने कहा था वीके सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे. ऐसा बयान वीके सक्सेना की ईमानदारी पर सीधा-सीधा हमला था.

मेधा पाटकर ने कोर्ट में दर्ज अपने बचाव में कहा था कि वीके सक्सेना वर्ष 2000 से झूठे और मानहानि वाले बयान जारी करते रहे हैं. पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना ने 2002 में उन पर शारीरिक हमला भी किया था जिसके बाद मेधा ने अहमदाबाद में एफआईआर दर्ज कराया था. मेधा ने कोर्ट में कहा था कि वीके सक्सेना कार्पोरेट हितों के लिए काम कर रहे थे और वे सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों की मांग के खिलाफ थे.

यह है मामला
मेधा पाटकर के खिलाफ वीके सक्सेना ने आपराधिक मानहानि का केस अहमदाबाद की कोर्ट में 2001 में दायर किया था. गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया था. बाद में 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर कर दिय था. मेधा पाटकर ने 2011 में अपने को निर्दोष बताते हुए ट्रायल का सामना करने की बात कही. वीके सक्सेना ने जब अहमदाबाद में केस दायर किया था उस समय वो नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे.

कौन हैं मेधा पाटकर

मेधा पाटकर एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश में आदिवासियों, दलितों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं द्वारा उठाए गए कुछ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर काम करती हैं. उन्हें मुख्य रूप से नर्मदा घाटी विकास परियोजना (एनवीडीपी) से विस्थापित लोगों के साथ काम करने के लिए जाना जाता है. एनवीडीपी मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों पर बांध बनाने की एक बड़े पैमाने की योजना है.

यह भी पढ़ेंः मेधा पाटकर की बढ़ी मुश्किलें, वीके सक्सेना के मानहानि मामले में दोषी करार

नई दिल्लीः दिल्ली की साकेत कोर्ट ने दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दाखिल आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी करार दी गईं नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को सजा सुनाने पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने 1 जुलाई को फैसला सुनाने का आदेश दिया.

बता दें कि 30 मई को शिकायतकर्ता वीके सक्सेना की ओर से पेश वकील ने मेधा पाटकर को अधिकतम सजा देने की मांग की थी. भारतीय दंड संहिता में आपराधिक मानहानि के मामले में अधिकतम दो साल की कैद की सजा का प्रावधान है. 24 मई को साकेत कोर्ट ने मेधा पाटकर को दोषी करार दिया गया था. कोर्ट ने मेधा पाटकर को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दोषी करार दिया था.

जानिए, क्या कहते हुए कोर्ट ने बताया था दोषी
कोर्ट ने कहा था कि ये साफ हो गया है कि आरोपी मेधा पाटकर ने सिर्फ प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ गलत जानकारी के साथ आरोप लगाए. बता दें कि 25 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर ने अंग्रेजी में एक बयान जारी कर वीके सक्सेना पर हवाला के जरिये लेनदेन का आरोप लगाया था और उन्हें कायर कहा था. मेधा पाटकर ने कहा था वीके सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे. ऐसा बयान वीके सक्सेना की ईमानदारी पर सीधा-सीधा हमला था.

मेधा पाटकर ने कोर्ट में दर्ज अपने बचाव में कहा था कि वीके सक्सेना वर्ष 2000 से झूठे और मानहानि वाले बयान जारी करते रहे हैं. पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना ने 2002 में उन पर शारीरिक हमला भी किया था जिसके बाद मेधा ने अहमदाबाद में एफआईआर दर्ज कराया था. मेधा ने कोर्ट में कहा था कि वीके सक्सेना कार्पोरेट हितों के लिए काम कर रहे थे और वे सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों की मांग के खिलाफ थे.

यह है मामला
मेधा पाटकर के खिलाफ वीके सक्सेना ने आपराधिक मानहानि का केस अहमदाबाद की कोर्ट में 2001 में दायर किया था. गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया था. बाद में 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर कर दिय था. मेधा पाटकर ने 2011 में अपने को निर्दोष बताते हुए ट्रायल का सामना करने की बात कही. वीके सक्सेना ने जब अहमदाबाद में केस दायर किया था उस समय वो नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे.

कौन हैं मेधा पाटकर

मेधा पाटकर एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश में आदिवासियों, दलितों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं द्वारा उठाए गए कुछ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर काम करती हैं. उन्हें मुख्य रूप से नर्मदा घाटी विकास परियोजना (एनवीडीपी) से विस्थापित लोगों के साथ काम करने के लिए जाना जाता है. एनवीडीपी मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों पर बांध बनाने की एक बड़े पैमाने की योजना है.

यह भी पढ़ेंः मेधा पाटकर की बढ़ी मुश्किलें, वीके सक्सेना के मानहानि मामले में दोषी करार

Last Updated : Jun 7, 2024, 4:55 PM IST
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