अमरावती: सतपुड़ा पर्वतमाला के कोने पर स्थित एक आदिवासी गांव मेलघाट में आज भी पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. यहां आदिवासी पांच दिनों तक होली मनाते हैं. वे ना केवल रंगों से बचते हैं, बल्कि प्रकृति पूजा पर भी जोर देते हैं. मेलघाट में यह त्योहार होली की पूर्वसंध्या से शुरू होता है. रोजगार की तलाश में गांव छोड़ने वाले निवासी भी अपने परिवार के साथ होली मनाने के लिए अपने गांव लौट आते है.
पहले दिन, स्थानीय लोग फसलों और होलिका देवी की पूजा करते हैं. होली दहन भी किया जाता है. इस कार्य के लिए जंगल से हरे बांस एकत्र किये जाते हैं. शाम को गांव के पुलिस पाटिल या अदा पटेल और उनकी पत्नी समारोह का संचालन करते हैं. आग जलाने के बाद उसमें नारियल डाला जाता है. युवा वयस्कों का आशीर्वाद लेते है. आदिवासी तापी नदी की भी पूजा करते हैं, जो सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला से होकर गुजरती है.
स्थानीय लोगों का मानना है कि होली दहन से पूरे साल गांव में खुशियां आएंगी. इस दिन जाति और वर्ग के बारे में सोचे बिना सभी एक साथ आते है. बड़े-बुज़ुर्ग इस दिन लड़के-लड़कियों की शादियां भी तय करते हैं. होली की पहली रात को ग्रामीण अपनी देवी मेघनाथ की मूर्ति गांव के बाहर स्थापित करते हैं और उसकी पूजा करते हैं. फिर वे मोहफुल से बनी शराब पीकर जश्न मनाने लगते हैं.
इधर, . कल बीती होलिका दहन के मौके पर ग्रामीण अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नाचते-गाते हुए गांव के पुलिस पाटला के घर गए. रात के 11:30 बजे होलिका दहन की जगह पुलिस पाटिल दंपत्ति आए. रात के समय होलिका दहन पर पुलिस पाटिल दम्पति द्वारा होली का पूजन कर होलिका जलाई गई. आदिवासी होली जलाते समय पारंपरिक वाद्ययंत्रों और लोकगीतो पर नृत्य करते नजर आए. मखला गांव में कल बीती रात एक बजे तक होली की धूम रही.
होली जलाने और नृत्य करने का उत्सव दो-तीन घंटे तक हर्षोल्लास के साथ चलता रहा. इसके बाद, परंपरा के अनुसार, पुलिस पाटिल जोड़े को फिर से संगीत बजाने के साथ उनके घर वापस छोड़ दिया गया. बता दें, पुलिस पाटलों के घर में बिना कोई वाद्ययंत्र बजाए कोरकू भाषा में रावण का वर्णन करने वाला गीत गाया जाता है. 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए मखला पुलिस पाटिल सिंपली सेलुकर ने बताया कि होली के मौके पर यह गाना काफी अहम है. आदिवासी परंपरा में होली के मौके पर युवक-युवतियां अपने मनपसंद दूल्हा-दुल्हन का चयन करते हैं और इसकी जानकारी अपने परिजनों को देते हैं. मेलघाट में होली के अवसर पर विवाह आयोजित करने की बहुत पुरानी परंपरा है.
एक नहीं दो होली जलाने की प्रथा है.
मेलघाट में एक नहीं बल्कि दो होली जलाने की प्रथा है. एक होली पुरुष और दूसरी महिला होली के रूप में प्रतीकात्मक होली जलाना पूरे मेलघाट में आम है. विशेष रूप से दो होलियों में एक पालना बांधा जाता है और पालने में छोटे बच्चे के प्रतीक के रूप में एक पत्थर रखा जाता है. जब होली की पूजा शुरू होती है तो छोटे बच्चे पालने को हिलाते हैं और बच्चे की तरह रोते हैं. 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए सेमाडोह निवासी ओम तिवारी ने बताया कि आदिवासियों की होली के दौरान यह प्रथा बहुत पुरानी है.
इसके अलावा, गांव में अगर किसी परिवार का कोई सदस्य की होली के दिन मर जाता है, तो वह परिवार गांव में सभी के साथ होली नहीं मनाता है. होली का त्योहार मनाने के बाद गांव के सभी लोग अपने-अपने घर चले जाते हैं. वहीं, होली के दिन किसी के घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस घर के सदस्य आधी रात को आकर होली की पूजा करते हैं. कई स्थानों पर, आधी रात से सुबह तक, कुछ परिवार ढोल बजाते हैं और भजन गाते हैं.
अलग-अलग दिनों में जलाई जाती है होली
मेलघाट के कई हिस्सों में होली के दिन होली जलाई जाती है, लेकिन दूरदराज के गांवों में होली के पांच दिन बाद एक दिवसीय बाजार आयोजित किया जाता है. उस दिन होली जलाने की परंपरा है. हटरू, कारा, कोठा और रायपुर गांवों में बाजार के दिन ही होली जलाई जाती है. मेलघाट के अधिकांश गांवों में इन साल होली की परंपरा में कुछ बदलाव देखा गया है.
होली के तीसरे दिन कटकुम्भ, चुन्नी, सरिदा आदि क्षेत्रों में मेघनाथ यात्रा निकाली जाती है.आदिवासी लोगों में मेघनाथ की पूजा का बहुत महत्व है. मखला समेत कई गांवों में होली के अवसर पर रविवार को मेघनाथ की पूजा की गयी. जिन इलाकों में मेघनाथ पूजा होती है, वहां होली की एक अलग ही धूम देखने को मिलती है.
फगवा मांगने की प्रथा
होली के तीसरे दिन से मेलघाट पर आने वाले बाहरी लोगों से फगवा यानी पैसे मांगने की प्रथा है. मेलघाट में बाहर से आने वाले वाहनों को रोककर आदिवासियों के द्वारा गाड़ियों के आगे आकर नाचते-गाते हैं और उनसे पैसे मांगते है.