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महाराष्ट्र: एकाग्रता और धैर्य बढ़ाने के लिए बच्चों को सिखाया जा रहा चरखा - Students Learning Charkha

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 4, 2024, 7:10 PM IST

महाराष्ट्र में नागपुर के एक स्कूल में छात्रों की एकाग्रता और धैर्य बढ़ाने के लिए एक अनूठी पहल शुरू की गई है. यहां बच्चों को चरखा चलाना सिखाया जा रहा है, जिससे उनकी एकाग्रता और धैर्या में बढ़ोतरी हो सके. इस पहल को एक साल पहले शुरू किया गया था.

children spinning Charkha
चरखा चलाते हुए बच्चे (फोटो - ETV Bharat Maharashtra Desk)

नागपुर: महाराष्ट्र में नागपुर के चंदादेवी सराफ स्कूल ने विद्यार्थियों में एकाग्रता बढ़ाने के लिए एक अनूठी पहल शुरू की है. विद्यार्थियों में एकाग्रता बढ़ाने के लिए स्कूल की ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 'चरखे' का इस्तेमाल किया गया है. स्कूल ने कहा है कि इस गतिविधि के माध्यम से विद्यार्थियों में एकाग्रता और धैर्य की भावना बढ़ी है.

स्कूल का कहना है कि पिछले साल से छात्र चरखे के माध्यम से 'धैर्य' रखना सीख रहे हैं. कोरोना काल में भारत समेत पूरी दुनिया की शिक्षा व्यवस्था ऑनलाइन हो गई. ऑनलाइन शिक्षा के दौरान छात्र भले ही अगले स्तर पर पहुंच गए हों, लेकिन इसके बेहद गंभीर दुष्प्रभाव अब बहुत स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं.

किताबों के साथ-साथ आउटडोर गेम्स में लिप्त रहने वाले छात्र कोरोना काल में इन दोनों से दूर हो गए थे. ऑनलाइन शिक्षा के कारण उनके हाथों में मोबाइल, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट आ गए, जिससे वे ऑनलाइन के जाल में फंस गए. इसके कारण वास्तव में यह देखा गया कि स्कूल खुलने के बाद छात्रों का धैर्य और एकाग्रता कम हो गई.

चंदादेवी सराफ स्कूल की निदेशक निशा सराफ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थीं, इसलिए उन्हें चरखे का महत्व और उसकी उपयोगिता पता थी. इसलिए उन्होंने स्कूल में चरखा कक्ष बनवाया. साथ ही इस कमरे में छात्रों को बिना किसी प्रतिबंध के अपनी मर्जी से समय बिताने की अनुमति दी गई. इसकी वजह से छात्रों के व्यवहार और आचरण में बहुत बड़ा अंतर आया है. स्कूल ने देखा है कि उनके काम में धैर्य देखने को मिलता है.

छात्रों ने गांधीजी के विचारों को आत्मसात किया: महात्मा गांधी ने अहिंसा के जरिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी. उस समय उनका चरखा स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में जाना जाने लगा. यही चरखा उस समय के लोगों की आर्थिक आत्मनिर्भरता का भी बड़ा साधन था.

महात्मा गांधी के चरखे की भूमिका अब छात्र निभाने लगे हैं. इस चरखे के माध्यम से छात्र महात्मा गांधी के विचारों को आत्मसात करने लगे हैं. इस पहल के शुरू होने के बाद छात्रों की ओर से कम प्रतिक्रिया मिली थी. हालांकि, अब यह संख्या सौ के करीब पहुंच गई है.

नागपुर: महाराष्ट्र में नागपुर के चंदादेवी सराफ स्कूल ने विद्यार्थियों में एकाग्रता बढ़ाने के लिए एक अनूठी पहल शुरू की है. विद्यार्थियों में एकाग्रता बढ़ाने के लिए स्कूल की ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 'चरखे' का इस्तेमाल किया गया है. स्कूल ने कहा है कि इस गतिविधि के माध्यम से विद्यार्थियों में एकाग्रता और धैर्य की भावना बढ़ी है.

स्कूल का कहना है कि पिछले साल से छात्र चरखे के माध्यम से 'धैर्य' रखना सीख रहे हैं. कोरोना काल में भारत समेत पूरी दुनिया की शिक्षा व्यवस्था ऑनलाइन हो गई. ऑनलाइन शिक्षा के दौरान छात्र भले ही अगले स्तर पर पहुंच गए हों, लेकिन इसके बेहद गंभीर दुष्प्रभाव अब बहुत स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं.

किताबों के साथ-साथ आउटडोर गेम्स में लिप्त रहने वाले छात्र कोरोना काल में इन दोनों से दूर हो गए थे. ऑनलाइन शिक्षा के कारण उनके हाथों में मोबाइल, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट आ गए, जिससे वे ऑनलाइन के जाल में फंस गए. इसके कारण वास्तव में यह देखा गया कि स्कूल खुलने के बाद छात्रों का धैर्य और एकाग्रता कम हो गई.

चंदादेवी सराफ स्कूल की निदेशक निशा सराफ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थीं, इसलिए उन्हें चरखे का महत्व और उसकी उपयोगिता पता थी. इसलिए उन्होंने स्कूल में चरखा कक्ष बनवाया. साथ ही इस कमरे में छात्रों को बिना किसी प्रतिबंध के अपनी मर्जी से समय बिताने की अनुमति दी गई. इसकी वजह से छात्रों के व्यवहार और आचरण में बहुत बड़ा अंतर आया है. स्कूल ने देखा है कि उनके काम में धैर्य देखने को मिलता है.

छात्रों ने गांधीजी के विचारों को आत्मसात किया: महात्मा गांधी ने अहिंसा के जरिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी. उस समय उनका चरखा स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में जाना जाने लगा. यही चरखा उस समय के लोगों की आर्थिक आत्मनिर्भरता का भी बड़ा साधन था.

महात्मा गांधी के चरखे की भूमिका अब छात्र निभाने लगे हैं. इस चरखे के माध्यम से छात्र महात्मा गांधी के विचारों को आत्मसात करने लगे हैं. इस पहल के शुरू होने के बाद छात्रों की ओर से कम प्रतिक्रिया मिली थी. हालांकि, अब यह संख्या सौ के करीब पहुंच गई है.

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