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मुख्तार अंसारी की दबंगई की कहानी पुलिस की जुबानी; रिश्तेदारों पर कार्रवाई हुई तो पहुंच जाता था थाने - Mukhtar Ansari Death

Mukhtar Ansari Crime Story: लखनऊ में लंबे समय तक एसएसपी रहे पूर्व आईपीएस राजेश पाण्डेय ने बताया कैसे मुख्तार अंसारी जेल के बाहर आराम से घूमता था और दबंगई दिखाता था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 29, 2024, 6:55 PM IST

पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पाण्डेय ने बताए मुख्तार अंसारी के कुछ अनछुए किस्से.

लखनऊ: Mukhtar Ansari Criminal History: माफिया मुख्तार अंसारी का रुतबा वर्ष 1993 से 2021 तक इस कदर था कि जेल में रहते हुए भी वह सड़कों पर आए दिन अपने काफिले के साथ दिख ही जाता था. कभी इलाज के नाम पर जेल से अस्पताल आया तो मॉल पहुंच जाता था.

कभी पेशी पर आया तो अपने काफिले को लेकर डीजीपी के घर पहुंच गया. जब उसकी इस करतूत को पत्रकारों ने लोगों को दिखाने के लिए फोटो खींची तो उसे गाड़ी में ही खींच लेता था. ऐसा ही किस्सा लखनऊ में लंबे समय तक एसएसपी रहे पूर्व आईपीएस राजेश पाण्डेय ने ईटीवी भारत को बताया.

पत्रकार ने मुख्तार की फोटो खींची तो एम्बुलेंस में खींचकर पीटा: पूर्व आईपीएस अफसर राजेश पाण्डेय बताते हैं कि, वर्ष 2016 की बात है, मुख्तार अंसारी लखनऊ जेल में बंद था और इलाज के लिए वह मेडिकल कॉलेज जा रहा था. इस दौरान उसके काफिले में सात एंबुलेंस, 786 नंबर की कई गाड़ियां थीं.

उसका काफिला जैसे ही हजरतगंज चौराहे पर पहुंचा रेड लाइट हो चुकी थी, लिहाजा गाड़ियां रुक गईं. इसी जगह कई मीडिया कर्मी भी मौजूद थे. ऐसे में एक फोटोग्राफर ने मुख्तार अंसारी की फोटो खींचने के लिए काफिले में मौजूद एक एंबुलेंस के अंदर झांका. जैसे ही फोटोग्राफर ने खिड़की से अंदर अपना सिर डाला, अंदर मौजूद मुख्तार के गुर्गों ने उसे खींच लिया और उसकी पिटाई कर तीन किलोमीटर दूर फेंक दिया.

राजेश पाण्डेय कहते हैं कि तब वह लखनऊ के एसएसपी थे. लिहाजा पत्रकार उनके पास शिकायत करने आए तो उन्होंने तत्काल एफआईआर दर्ज करने के लिए तहरीर मांगी. लेकिन, पत्रकारों ने तहरीर देने से मना कर दिया. पांडेय कहते हैं, पत्रकारों का डर समझ उन्होंने हजरतगंज के एक सिपाही से मुकदमा दर्ज करवाया और उसके गुर्गों के घर दबिश शुरू की. हालांकि, बाद में कुछ दबाव में पत्रकारों ने अपनी शिकायत वापस ले ली.

काफिला लेकर मुख्तार पहुंच गया था DGP आवास: पूर्व एसएसपी कहते हैं कि मुख्तार अंसारी को अपने काफिले में एंबुलेंस रखना हमेशा पसंद रहा. वह जब भी जेल से बाहर आता था, अपने काफिले में एक दो एम्बुलेंस जरूर रखता था.

इतना ही नहीं जब उसका मन करता जेल कोई भी हो वहां के डॉक्टर से लिखवा कर मेडिकल कॉलेज में रेफर करवाकर बाहर आकर अय्याशी करता था. एक बार तो पेशी के दौरान वह कोर्ट आया लेकिन वह जज के सामने पेश होने की जगह पहले मॉल गया. वहां उसने अपना वीडियो शूट करवाया, फिर अपना काफिला लेकर सीधे डीजीपी के आवास पहुंच गया.

भाई के घर मुख्तार ने इकट्ठा की थी प्रतिबंधित कारतूस: पूर्व आईपीएस अफसर राजेश पाण्डेय बताते हैं कि एक बार तो मुख्तार अंसारी उसके ऑफिस ही अपने काफिले को लेकर आ धमका था. हालांकि तब वह खुद की बेगुनाही साबित करने आया था.

पूर्व आईपीएस ने बताया कि वर्ष 2002 में वो लखनऊ के एसपी सिटी हुआ करते थे और उनका ऑफिस हजरतगंज में था. एसटीएफ और लखनऊ पुलिस को इनपुट मिला कि मुख्तार एंड गैंग प्रतिबंधित बोर की कारतूस इकट्ठा कर रहा है.

ऐसे में हमने एक टीम बनाई और सबसे पहले दारुलशफा स्थित उसके भाई अफजाल अंसारी के आवास पर दबिश दी. लेकिन वहां कुछ भी बरामद नहीं हुआ. इसके बाद डालीबाग स्थित मुख्तार की भाभी के घर पर हमारी टीम पहुंची तो वहां भारी संख्या में कारतूस बरामद हुई. मैंने हजरतगंज थाने में मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ मुकदमा लिखवा दिया.

काफिला लेकर पहुंचा मुख्तार पहुंचा एसपी सिटी के ऑफिस: शाम को मैं अपने ऑफिस में बैठा था, अचानक मुख्तार अंसारी आ धमका. इस वक्त वह विधायक था, लिहाजा उसे कार्यालय में बुलाकर बातचीत की. मुख्तार अंसारी मुझसे पहले से परिचित था. वो इसलिए क्योंकि एसटीएफ में रहते ही मैंने ही मुख्तार अंसारी का अपराधनामा तैयार किया था. उसकी रग रग से वाकिफ था. मुख्तार मुझे सफाई देने लगा कि कारतूस से उसका कोई भी लेना देना नहीं है. वो बात ऐसे कर रहा था कि मै बस मुकदमा दर्ज न करूं लेकिन मैंने मुकदमा दर्ज करवा ही दिया.

ये भी पढ़ेंः मुख्तार अंसारी की बेटे से आखिरी बातचीत- बाबू, बैठ नहीं पा रहा, बेहोश हो जा रहे हैं; दिलासा देता रहा उमर

पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पाण्डेय ने बताए मुख्तार अंसारी के कुछ अनछुए किस्से.

लखनऊ: Mukhtar Ansari Criminal History: माफिया मुख्तार अंसारी का रुतबा वर्ष 1993 से 2021 तक इस कदर था कि जेल में रहते हुए भी वह सड़कों पर आए दिन अपने काफिले के साथ दिख ही जाता था. कभी इलाज के नाम पर जेल से अस्पताल आया तो मॉल पहुंच जाता था.

कभी पेशी पर आया तो अपने काफिले को लेकर डीजीपी के घर पहुंच गया. जब उसकी इस करतूत को पत्रकारों ने लोगों को दिखाने के लिए फोटो खींची तो उसे गाड़ी में ही खींच लेता था. ऐसा ही किस्सा लखनऊ में लंबे समय तक एसएसपी रहे पूर्व आईपीएस राजेश पाण्डेय ने ईटीवी भारत को बताया.

पत्रकार ने मुख्तार की फोटो खींची तो एम्बुलेंस में खींचकर पीटा: पूर्व आईपीएस अफसर राजेश पाण्डेय बताते हैं कि, वर्ष 2016 की बात है, मुख्तार अंसारी लखनऊ जेल में बंद था और इलाज के लिए वह मेडिकल कॉलेज जा रहा था. इस दौरान उसके काफिले में सात एंबुलेंस, 786 नंबर की कई गाड़ियां थीं.

उसका काफिला जैसे ही हजरतगंज चौराहे पर पहुंचा रेड लाइट हो चुकी थी, लिहाजा गाड़ियां रुक गईं. इसी जगह कई मीडिया कर्मी भी मौजूद थे. ऐसे में एक फोटोग्राफर ने मुख्तार अंसारी की फोटो खींचने के लिए काफिले में मौजूद एक एंबुलेंस के अंदर झांका. जैसे ही फोटोग्राफर ने खिड़की से अंदर अपना सिर डाला, अंदर मौजूद मुख्तार के गुर्गों ने उसे खींच लिया और उसकी पिटाई कर तीन किलोमीटर दूर फेंक दिया.

राजेश पाण्डेय कहते हैं कि तब वह लखनऊ के एसएसपी थे. लिहाजा पत्रकार उनके पास शिकायत करने आए तो उन्होंने तत्काल एफआईआर दर्ज करने के लिए तहरीर मांगी. लेकिन, पत्रकारों ने तहरीर देने से मना कर दिया. पांडेय कहते हैं, पत्रकारों का डर समझ उन्होंने हजरतगंज के एक सिपाही से मुकदमा दर्ज करवाया और उसके गुर्गों के घर दबिश शुरू की. हालांकि, बाद में कुछ दबाव में पत्रकारों ने अपनी शिकायत वापस ले ली.

काफिला लेकर मुख्तार पहुंच गया था DGP आवास: पूर्व एसएसपी कहते हैं कि मुख्तार अंसारी को अपने काफिले में एंबुलेंस रखना हमेशा पसंद रहा. वह जब भी जेल से बाहर आता था, अपने काफिले में एक दो एम्बुलेंस जरूर रखता था.

इतना ही नहीं जब उसका मन करता जेल कोई भी हो वहां के डॉक्टर से लिखवा कर मेडिकल कॉलेज में रेफर करवाकर बाहर आकर अय्याशी करता था. एक बार तो पेशी के दौरान वह कोर्ट आया लेकिन वह जज के सामने पेश होने की जगह पहले मॉल गया. वहां उसने अपना वीडियो शूट करवाया, फिर अपना काफिला लेकर सीधे डीजीपी के आवास पहुंच गया.

भाई के घर मुख्तार ने इकट्ठा की थी प्रतिबंधित कारतूस: पूर्व आईपीएस अफसर राजेश पाण्डेय बताते हैं कि एक बार तो मुख्तार अंसारी उसके ऑफिस ही अपने काफिले को लेकर आ धमका था. हालांकि तब वह खुद की बेगुनाही साबित करने आया था.

पूर्व आईपीएस ने बताया कि वर्ष 2002 में वो लखनऊ के एसपी सिटी हुआ करते थे और उनका ऑफिस हजरतगंज में था. एसटीएफ और लखनऊ पुलिस को इनपुट मिला कि मुख्तार एंड गैंग प्रतिबंधित बोर की कारतूस इकट्ठा कर रहा है.

ऐसे में हमने एक टीम बनाई और सबसे पहले दारुलशफा स्थित उसके भाई अफजाल अंसारी के आवास पर दबिश दी. लेकिन वहां कुछ भी बरामद नहीं हुआ. इसके बाद डालीबाग स्थित मुख्तार की भाभी के घर पर हमारी टीम पहुंची तो वहां भारी संख्या में कारतूस बरामद हुई. मैंने हजरतगंज थाने में मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ मुकदमा लिखवा दिया.

काफिला लेकर पहुंचा मुख्तार पहुंचा एसपी सिटी के ऑफिस: शाम को मैं अपने ऑफिस में बैठा था, अचानक मुख्तार अंसारी आ धमका. इस वक्त वह विधायक था, लिहाजा उसे कार्यालय में बुलाकर बातचीत की. मुख्तार अंसारी मुझसे पहले से परिचित था. वो इसलिए क्योंकि एसटीएफ में रहते ही मैंने ही मुख्तार अंसारी का अपराधनामा तैयार किया था. उसकी रग रग से वाकिफ था. मुख्तार मुझे सफाई देने लगा कि कारतूस से उसका कोई भी लेना देना नहीं है. वो बात ऐसे कर रहा था कि मै बस मुकदमा दर्ज न करूं लेकिन मैंने मुकदमा दर्ज करवा ही दिया.

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