देहरादून: दुनियाभर में कई ऐसी विरासत या धरोहरें हैं, जो वक्त के साथ जर्जर होती जा रही हैं. ऐसे इन विरासतों के स्वर्णिम इतिहास को संजोए रखने और इनके निर्माण को बचाए रखने के लिए हर साल विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है. दुनियाभर में कई विश्व धरोहरें हैं, जिनमें उत्तराखंड की धरोहर भी शामिल हैं, जिनके दीदार के लिए काफी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं.
बता दें कि अंतरराष्ट्रीय संगठन यूनेस्को यानी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन हर साल कई धरोहर को विश्व विरासत की सूची में शामिल करता है, ताकि उन धरोहरों का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके. यही वजह है कि हर साल विश्व विरासत या धरोहर दिवस या 'स्मारकों और स्थलों का अंतरराष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट उन जगहों को कहा जाता है, जो कि प्राकृतिक, सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से अहम होती हैं और उनके संरक्षण की दरकार होती है.
भारत के 42 विश्व विरासत स्थल में उत्तराखंड के धरोहर भी शामिल: भारत में विश्व विरासत स्थल की बात करें तो अब तक 42 विश्व विरासत स्थल को शामिल किया जा चुका है. यूनेस्को ने भारत के ताजमहल, आगरा का किला, अजंता की गुफाएं, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान समेत 42 ऐसी ऐतिहासिक और प्राकृतिक जगहों को विश्व विरासत स्थल में जगह दी है. भारत में मौजूद 42 विश्व विरासत स्थलों में से नंदा देवी नेशनल पार्क और फूलों की घाटी उत्तराखंड में मौजूद हैं. जबकि, उत्तराखंड के चमोली जिले के सांस्कृतिक उत्सव रम्माण को इसकी सूची में शामिल किया गया है.
नंदा देवी नेशनल पार्क और फूलों की घाटी: उत्तराखंड के उच्च हिमालय में स्थित नंदा देवी नेशनल पार्क या फिर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व (Nanda Devi Biosphere Reserve) विश्व विरासत स्थल में शामिल है. नंदा देवी चोटी के आसपास का तकरीबन 360 वर्ग किलोमीटर का इलाका है, जहां इंसानी हस्तक्षेप बिल्कुल ना के बराबर है. चमोली जिले में पड़ने वाले इस पूरे इलाके को साल 1982 में नंदा देवी नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था. इसी के अंतर्गत विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी भी मौजूद है. इस क्षेत्र के दुर्लभ जैव विविधता को देखते हुए इसे विश्व विरासत स्थल के रूप में चिन्हित किया गया था.
वहीं, नंदा देवी नेशनल पार्क से साल 2005 में फूलों की घाटी को अलग से नेशनल पार्क की संज्ञा दी गई तो वहीं ये दोनों क्षेत्र विश्व विरासत स्थल में शामिल हैं. फूलों की घाटी प्राकृतिक सौंदर्य और यहां खिलने वाले हजारों की फूलों के लिए प्रसिद्ध है. जिनके दीदार के लिए देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं. वहीं, इस पूरे इलाके में अन्य छोटे-छोटे कई फॉरेस्ट रिजर्व को मिलाकर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व बनाया गया है, जो कि उच्च हिमालय क्षेत्र की हैरतअंगेज बायोडायवर्सिटी यानी जैव विविधता को प्रदर्शित करता है.
सांस्कृतिक विरासत रम्माण (मुखौटा नृत्य): यह सांस्कृतिक विरासत भी उत्तराखंड के चमोली जिले के दूरस्थ गांव सलूड़ डुंगरा गांव का है, जो बेहद रोचक और पौराणिक मुखौटा नृत्य होता है. जिसे रम्माण कहा जाता है. जोशीमठ विकासखंड के सलूड़ गांव में आठवीं शताब्दी से रम्माण (रामायण) मेले का आयोजन किया जाता है. इस दौरान कलाकार रामायण का मंचन मुखौटा नृत्य के जरिए मूक रहकर करते हैं.
रम्माण नृत्य इतना अदभुत है कि 'केवल 18 तालों में ही पूरी रामायण समा जाती है. बताया जाता है कि सबसे पहले आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए रम्माण का आयोजन किया था. तब से ग्रामीण आज तक विधि विधान के साथ रम्माण का आयोजन करते आ रहे हैं. रम्माण सालों पुरानी परंपरा है, जिसे आज भी ग्रामीणों ने जीवित रखा है. वहीं, मेले की मान्यता और मुखौटा नृत्य को देखकर साल 2009 में यूनेस्को ने रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया.
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