हैदराबाद: लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम सबके सामने आ चुके हैं. एनडीए गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी बहुमत से दूर रह गई. ऐसे में कई सवाल सामने आ रहे हैं, जैसे गठबंधन की सरकार बनने के बाद कितनी बंध जाएगी मोदी सरकार? वैसे देखा जाए तो गठबंधन की सरकार बनाने का सालों पुराना इतिहास रहा है. 1989 में नेशनल फ्रंट की सरकार बनी थी, जिसने गठबंधन युग की शुरुआत की. उस समय नेशनल फ्रंट से विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बने. वैसे देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पूरे राजनीतिक करियर में कभी भी गठबंधन सरकार का नेतृत्व नहीं किया है. ना बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर, और ना ही पिछले दो कार्यकाल केंद्र में. वहीं, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को इस बार उम्मीद से अधिक सीटें मिली हैं. दूसरी तरफ बीजेपी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के दूरगामी परिणाम होंगे. आज हम गठबंधन की सरकार बनाने के वर्षों पुराने इतिहास पर बात करेंगे.
भारत में बीते 35 सालों से यानी की 1989 से लगातार गठबंधन की सरकार ही बनी है. वैसे कहा जाता है कि, 1977 में गठबंधन की नींव पड़ी थी. हलांकि, इसे गठबंधन कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि 1952 के आम चुनाव से लेकर 1971 तक कांग्रेस की सरकार मेजोरिटी के साथ रही. साल 1975 में इंदिरा गांधी के इमरजेंसी लगाने के बाद, 1977 के चुनाव के लिए विपक्षी दलों की जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में लामबंदी शुरू हुई थी. 1977 के चुनाव के लिए कई विचारधारा वाली पार्टियों का जनता पार्टी में विलय किया गया. उस समय के चुनाव में जनता पार्टी को 295 सीटें प्राप्त हुई थीं. वहीं, कांग्रेस को 154 सीटें ही मिलीं. इसके साथ ही मोरारजी देसाई की अगुवाई में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार केंद्र में आई.
1984 से 1989 का दौर देश की राजनीति के लिए अहम
80 के दशक के आखिर में गठबंधन की राजनीति शुरू हुई. गठबंधन की राजनीति के लिए 1984 से 1989 का दौर देश के इतिहास में बेहद अहम है. कहते हैं कि, इसी दौर में 'कमंडल' की राजनीति का आगाज हुआ था. उस समय देश में उग्रवाद, पंजाब में विद्रोह की सुगबुगाहट तेज हो रही थी. दूसरी तरफ पड़ोसी देश श्रीलंका गृह युद्ध में फंसी हुई थी. ऐसे समय में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी मित्र विश्वनाथ प्रताप सिंह के बीच दूरी बढ़ती चली गई और कई राजनीतिक उठापटक के बीच वीपी सिंह की कांग्रेस से विदाई हो गई. जिसके बाद राजीव और विश्वनाथ की दोस्ती की खाई और ज्यादा गहरी हो गई.
80 के दशक के आखिर में शुरू हुई गठबंधन की राजनीति
1984 से 1989 का दौर देश के इतिहास में बेहद अहम है. इसी दौर में 'कमंडल' राजनीति की नींव पड़ रही थी. उग्रवाद, पंजाब में विद्रोह, श्रीलंकाई गृह युद्ध जैसी चीजों में सरकार फंसी थी. प्रधानमंत्री राजीव गांधी का अपने मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ 36 का आंकड़ा बना, जो तमाम राजनीतिक उठापटक के बाद VP की कांग्रेस से विदाई के साथ और तेज हो गया.
राजीव और वीपी सिंह की दोस्ती में दरार
ऐसे समय में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अरुण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान के साथ पहले जनमोर्चा का निर्माण किया. यही जनमोर्चा बाद में जनता पार्टी के बचे हुए, जैसे लोक दल, कांग्रेस (जगजीवन) और अन्य पार्टियों के साथ जोड़कर जनता दल का गठन हुआ. 1988 -89 नेशनल फ्रंट सत्ता में आने वाला प्रथम नेशनल अलायंस बना. साल 1988 की बात है जब जनता दल ने नेशनल फ्रंट का निर्माण कांग्रेस के खिलाफ किया. जिसे थर्ड फ्रंट भी कहा जाता था. इस गठबंधन में एनटीआर की टीडीपी, करुणानिधी की डीएमके, कांग्रेस सोशलिस्ट समेत कई अन्य राजनीतिक दल शामिल हुईं. 1989 के चुनाव में नेशनल फ्रंट 143 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं कांग्रेस को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा. कांग्रेस को पिछले चुनाव में 413 सीटें मिली थीं, जबकि इस बार वह खिसकर 197 पर पहुंच गई. इस साल नेशनल फ्रंट की सरकार को कम्युनिष्ट दलों के गठबंधन वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी ने बाहर से समर्थन दिया. जानकारी के मुताबिक बीजेपी को इस चुनाव में 85 और वाम मोर्चा को 33 सीटें मिली थीं.
1990 में राजनीति का 'खेल'
1990 में समाजवादी जनता पार्टी के चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने. साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने चुनाव में वापसी की. 1991 में पीवी नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री बने. उस समय एआईएडीएमके और कई अन्य पार्टियों ने सरकार का समर्थन किया था. गठबंधन की राजनीति की बात करें तो, साल 1996 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाने का दावा किया. 1996 में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी बहुमत पाने से चूक गए. जिसके कारण अटल की अल्पमत की सरकार महज 13 दिनों में गिर गई. उसके बाद कांग्रेस पार्टी ने यूनाइटेड फ्रंट को बाहरी समर्थन देकर सरकार बनवाई और एचडी देवेगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने. आपको जानकार हैरानी होगी की एक साल चली सरकार में देवेगौड़ा के बाद इंद्र कुमार गुजराल पीएम बने. यहां कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई, जिसके बाद 1998 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए.
1998 में एनडीए का गठन
साल 1998 को वर्तमान गठबंधन की राजनीति का दौर भी कहा जाता है. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) का गठन किया गया. इस गठबंधन में समता पार्टी, शिवसेना जैसी पार्टियां शामिल हुईं. बता दें कि, 1998 में चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. वहीं एनडीए ने 192 सीटें जीतीं. धीरे-धीरे कई पार्टियां एनडीए के साथ जुड़ती चली गईं. जिनमें एआईएडीएमके भी शामिल थी. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने. हालांकि, 10 महीने बाद एआईएडीएमके ने समर्थन वापस ले लिया और मात्र 1 वोट से अटल की सरकार गिर गई. 1999 के आम चुनाव में एनडीए को 270 सीटें मिलीं. एनडीए ने कई अन्य पार्टियों को मिलाकर सरकार बनाई. बता दें कि यह पहली गैर कांग्रेस सरकार थी, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था.
यूपीए का गठन
साल 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को तगड़ा झटका लगा और वह 138 सीटों पर सिमट गई. इस बार एनडीए को कुल 182 सीटें ही प्राप्त हुईं. वहीं कांग्रेस ने अपने दम पर 145 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए वामपंथी पार्टियों के साथ-साथ समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और केरल कांग्रेस जैसी पार्टियों को मिलाकर यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) का निर्माण किया. जिसके बाद 2009 लोकसभा चुनाव में यूपीए गठबंधन ने फिर से चुनाव जीता. वहीं, 2014, 2019 और 2024 के चुनाव में यूपीए एनडीए से पिछड़ गई. देश में गठबंधन की राजनीति को किसी भी तरीके से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. 2024 के आम चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने पर एक बार फिर से गठबंधन की राजनीति हो रही है. चुनाव चुनाव के नतीजे आने के बाद एक बार फिर सत्ता हासिल करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियां अहम हो गई हैं. भाजपा को सरकार में आने के लिए तेलुगु देशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के समर्थन की सख्त जरूरत है.
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