वाराणसी : श्मशान जहां पर हर पल सिर्फ और सिर्फ मातम, स्यापा और सन्नाटा ही छाया रहता है, जहां हर शख्स अपनों की जुदाई का गम लेकर आता है, लेकिन सोमवार की रात काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट का नजारा बदला सा नजर आया. यहां गीत संगीत की महफिल सजी. नगर वधुओं ने अपना अगला जन्म सुधारने के लिए जमकर नृत्य किया. 370 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए नगर वधुओं ने अपने वर्तमान नर्क भरे जीवन से मुक्ति की चाह में महाश्मशान और मां गंगा के सामने अपनी कला का प्रदर्शन किया.
सोमवार को यहां जलती चिताएं और रोते-बिलखते लोग तो थे लेकिन मातमी सन्नाटा नहीं था. यहां गीत-संगीत की महफिल सजी थी. यह मौज मस्ती के लिए नहीं बल्कि पुरानी परंपरा के निर्वहन के लिए था. दरअसल, काशी की पुरानी परंपराओं में से एक महाश्मशान पर नगर वधुओं के नृत्य की यह परंपरा अब भी स्थानीय लोगों की वजह से जीवंत है.
चैत्र नवरात्रि की सप्तमी के मौके पर यह अनोखी और खास परंपरा बीते कई सालों से निभाई जा रही है. इस परंपरा के बारे में मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि कई सौ साल पहले जब राजा मानसिंह ने दशाश्वमेध पर अपने महल का निर्माण करवाया था, तब उन्होंने महाश्मशाननाथ के मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाया था. उस वक्त उन्होंने महाश्मशान मणिकर्णिका पर कई नामचीन कलाकारों को बुलवाया लेकिन श्मशान किनारे किसी भी कलाकार ने अपनी प्रस्तुति नहीं दी.
अगले जन्म मोहे ऐसा न कीजो : गुलशन की माने तो उस वक्त राजा मानसिंह से नगर वधुओं ने यह निवेदन किया कि यदि आप हमें आज्ञा दें तो हम महाश्मशान मणिकर्णिका घाट के किनारे अपनी कला का प्रदर्शन करना चाहते हैं. उस वक्त राजा मानसिंह के बुलावे पर नगर वधुओं ने बाबा महाश्मशान के आगे अपनी कला का प्रदर्शन कर उनसे अपने वर्तमान नर्क भरे जीवन से मुक्ति की कामना करते हुए अगला जन्म सुधारने की मुराद मांगी. तभी से यह परंपरा लगातार चली आ रही है.
यहां पर भगवान भोलेनाथ के सामने अपने नृत्य का प्रदर्शन करने वाली नगरवधुओं का भी यही मानना है कि भगवान नटराज संगीत और नृत्य के देवता हैं. उनके आगे हम इसी उम्मीद के साथ अपने नृत्य का प्रदर्शन करते हैं, ताकि अगला जन्म हमें ऐसा न मिले और हमारा जन्म सुधार जाए. भोलेनाथ सबको मोक्ष देते हैं और हम भी इस जन्म से मोक्ष की कामना के लिए भोलेनाथ के आगे अपने कला का प्रदर्शन करते हैं.
दूर-दूर से आती हैं नगर वधुएं : यही वजह है कि इस खास आयोजन में महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर सासाराम, मुजफ्फरपुर, मुम्बई, बलिया, रामनगर, दिल्ली समेत कई जगहों से नगर वधुओं का आना होता है. खास बात यह है कि इस आयोजन में पूरी रात लोग श्मशान पर मौजूद रहकर गीत संगीत की महफिल का लुत्फ उठाते हैं.
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