श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर सरकार को एक निर्देश जारी किया है. जारी निर्देश में जम्मू-कश्मीर बाल अधिकार आयोग की की स्थापना के संबंध में अपडेट करने के लिए कहा गया है. मुख्य न्यायाधीश एन. कोटिस्वर सिंह और न्यायमूर्ति मोहम्मद यूसुफ वानी की अगुवाई वाली खंडपीठ ने प्रतिवादी विभाग को अगली सुनवाई तक समिति गठन प्रक्रिया की स्थिति के बारे में अदालत को सूचित करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
ठोस प्रगति की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए पीठ ने चेतावनी दी कि अनुपालन में विफलता के कारण जिम्मेदार अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से देरी के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया जाएगा. अदालत ने मामले को गंभीरता से लेने पर जोर देते हुए बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा में आयोग की भूमिका के महत्व को रेखांकित किया.
अदालत ने 2020 में दायर एक याचिक पर सुनवाई की जिससे मामला सामने आया. यह मामला बच्चों के अधिकारों की रक्षा की अनिवार्यता के संबंध में था. जम्मू-कश्मीर में बाल अधिकारों के मुद्दों को निपटाने के लिए सरकार की कई पहलों के बावजूद बाल अधिकार संरक्षण के लिए राज्य आयोग की स्थापना न होने को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं.
बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2005 द्वारा आयोग इससे जुड़े उल्लंघनों से संबंधित मामलों में बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है. गौरतलब है कि अक्टूबर 2021 में सरकार ने नए नियम बनाने के साथ एक स्वतंत्र बाल अधिकार आयोग के गठन को मंजूरी दी थी. जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में उपराज्यपाल प्रशासन द्वारा बनाए गए इन नियमों का उद्देश्य बाल शोषण, उत्पीड़न और अत्याचार से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिए एक मजबूत ढांचा स्थापित करना है.
एक अध्यक्ष की अध्यक्षता और कम से कम दो सदस्यों वाला नया आयोग अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार मानकों का पालन करेगा. अध्यक्ष, सदस्यों और सदस्य सचिव की चयन प्रक्रिया में तीन सदस्यीय चयन समिति शामिल होगी. इसमें उम्मीदवारों के लिए कड़े पात्रता मानदंड निर्धारित होंगे. शिकायतों को निपटाने के अलावा आयोग अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए बच्चों को प्रभावित करने वाले मौजूदा कानूनों, नीतियों और प्रथाओं का विश्लेषण करेगा.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि यह जांच करेगा, रिपोर्ट तैयार करेगा, बाल अधिकार शिक्षा को बढ़ावा देगा और क्षेत्रीय दौरों और सार्वजनिक बैठकों के माध्यम से जनता से जुड़ेगा. इसमें आगे बताया गया, 'कश्मीर और जम्मू दोनों क्षेत्रों में काम करते हुए आयोग कई भाषाओं में शिकायतें स्वीकार करेगा और एक समर्पित बाल अधिकार याचिका रजिस्टर बनाकर रखेगा. हालांकि, ऐसे विवादों से संबंधित शिकायतों को खारिज कर दिया जाएगा जिसे पढ़ा न जा सके और निरर्थक हो.