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जम्मू-कश्मीर: हाई कोर्ट ने राज्य को कश्मीरी हिंदू मंदिरों और तीर्थ स्थानों को अतिक्रमण से बचाने का दिया आदेश - JK High Court Orders - JK HIGH COURT ORDERS

Jammu-Kashmir and Ladakh High Court: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को बड़ा आदेश दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अतिक्रमण और भू-माफियाओं द्वारा कश्मीरी हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों को राज्य द्वारा संरक्षित किया जाए. पढ़ें पूरी खबर...

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 11, 2024, 9:16 PM IST

श्रीनगर : कश्मीरी हिंदुओं की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, जम्मू कश्मीर और लद्दाख के हाई कोर्ट ने प्रशासन को अतिक्रमण और भू-माफिया सेमंदिरों और तीर्थस्थलों की रक्षा करने का आदेश दिया है. इस निर्णय का उद्देश्य इन पवित्र स्थलों को संरक्षित करना है, जो 1990 के दशक में कश्मीरी पंडित समुदाय के पलायन के बाद से असुरक्षित हो गए हैं. न्यायालय में विरासत संरक्षण के लिए एक मार्मिक लड़ाई देखी गई, जिसमें जम्मू और कश्मीर के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता मोहसिन कादरी ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया और वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एम. कौल ने वर्चुअल मोड के माध्यम से याचिकाकर्ताओं की वकालत की.

न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों की याचिका स्वीकार कर ली है. इसके साथ ही उत्तरी कश्मीर के गांदरबल के जिला मजिस्ट्रेट को जिले के नुनेर गांव में स्थित दो हिंदू धार्मिक स्थलों 'अस्थापन देवराज भारव' और 'विधुशे' मंदिर को संरक्षित, सुरक्षित और रखरखाव करने तथा जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा और संकट बिक्री पर रोक) अधिनियम 1997 के तहत आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया.

बता दें, याचिकाकर्ताओं ने स्थानीय हिंदू समुदाय के लिए गंदेरबल जिले में एकमात्र श्मशान घाट पर अतिक्रमण को लेकर बेईमान तत्वों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई थी. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 1990 में गांदरबल जिले सहित घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद, प्रतिवादी संख्या 5 और 6, जो खुद भी घाटी से पलायन कर गए थे, उनका इन धार्मिक स्थलों के प्रबंधन से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि उन्होंने इन्हें प्रतिवादी संख्या 7 और 8 को पट्टे पर देकर इन पर कब्जा कर लिया था. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि प्रतिवादी 5 और 6 ने प्रतिवादी 7 और 8 के साथ मिलकर धार्मिक स्थलों की संपत्तियों को नष्ट कर दिया, उन पर अतिक्रमण कर लिया और उन पर कब्जा कर लिया.

इस बाबत, हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं तथा प्रतिवादी 5 और 6 के धार्मिक स्थलों और उनकी संपत्तियों के प्रबंधन के प्रतिद्वंदी दावों पर विचार किए बिना., यह कहना पर्याप्त है कि गंदेरबल के जिला मजिस्ट्रेट, जिनके पास 1997 के अधिनियम के लागू होने के बाद प्रवासी संपत्तियां निहित हैं. तुरंत धार्मिक स्थलों और उनसे जुड़ी संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेंगे तथा उनकी सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन करेंगे.

आदेश में कहा गया है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएंगे कि, श्मशान भूमि सहित मंदिर की संपत्तियों पर किए गए सभी अतिक्रमण को इस आदेश की प्रति आठ सप्ताह की अवधि के भीतर हटा दिया जाए. जहां तक ​​प्रतिवादी 7 और 8 के पास पट्टे पर मौजूद मंदिर की संपत्ति का सवाल है, निश्चित रूप से पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है. पट्टे की अवधि में आगे कोई विस्तार नहीं किया जाएगा और संपत्ति को गांदरबल के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अपने अधीन ले लिया जाएगा.

आदेश में आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी 5 से 8 सहित किसी भी व्यक्ति द्वारा उक्त संपत्ति पर किसी भी अतिक्रमण से पीड़ित कोई भी पक्ष उचित कार्रवाई के लिए इसे जिला मजिस्ट्रेट के संज्ञान में लाने के लिए स्वतंत्र होगा. इस निर्णय से कश्मीर में ऐसी अनेक हिंदू धार्मिक संपत्तियों की रक्षा और भाग्य का निर्धारण होने की संभावना है, जो अप्रयुक्त रह गई हैं. जिसके कारण लालची अतिक्रमणकारियों और प्रभावशाली भू-माफियाओं द्वारा अतिक्रमण की चपेट में आ गई है.

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न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों की याचिका स्वीकार कर ली है. इसके साथ ही उत्तरी कश्मीर के गांदरबल के जिला मजिस्ट्रेट को जिले के नुनेर गांव में स्थित दो हिंदू धार्मिक स्थलों 'अस्थापन देवराज भारव' और 'विधुशे' मंदिर को संरक्षित, सुरक्षित और रखरखाव करने तथा जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा और संकट बिक्री पर रोक) अधिनियम 1997 के तहत आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया.

बता दें, याचिकाकर्ताओं ने स्थानीय हिंदू समुदाय के लिए गंदेरबल जिले में एकमात्र श्मशान घाट पर अतिक्रमण को लेकर बेईमान तत्वों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई थी. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 1990 में गांदरबल जिले सहित घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद, प्रतिवादी संख्या 5 और 6, जो खुद भी घाटी से पलायन कर गए थे, उनका इन धार्मिक स्थलों के प्रबंधन से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि उन्होंने इन्हें प्रतिवादी संख्या 7 और 8 को पट्टे पर देकर इन पर कब्जा कर लिया था. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि प्रतिवादी 5 और 6 ने प्रतिवादी 7 और 8 के साथ मिलकर धार्मिक स्थलों की संपत्तियों को नष्ट कर दिया, उन पर अतिक्रमण कर लिया और उन पर कब्जा कर लिया.

इस बाबत, हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं तथा प्रतिवादी 5 और 6 के धार्मिक स्थलों और उनकी संपत्तियों के प्रबंधन के प्रतिद्वंदी दावों पर विचार किए बिना., यह कहना पर्याप्त है कि गंदेरबल के जिला मजिस्ट्रेट, जिनके पास 1997 के अधिनियम के लागू होने के बाद प्रवासी संपत्तियां निहित हैं. तुरंत धार्मिक स्थलों और उनसे जुड़ी संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेंगे तथा उनकी सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन करेंगे.

आदेश में कहा गया है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएंगे कि, श्मशान भूमि सहित मंदिर की संपत्तियों पर किए गए सभी अतिक्रमण को इस आदेश की प्रति आठ सप्ताह की अवधि के भीतर हटा दिया जाए. जहां तक ​​प्रतिवादी 7 और 8 के पास पट्टे पर मौजूद मंदिर की संपत्ति का सवाल है, निश्चित रूप से पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है. पट्टे की अवधि में आगे कोई विस्तार नहीं किया जाएगा और संपत्ति को गांदरबल के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अपने अधीन ले लिया जाएगा.

आदेश में आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी 5 से 8 सहित किसी भी व्यक्ति द्वारा उक्त संपत्ति पर किसी भी अतिक्रमण से पीड़ित कोई भी पक्ष उचित कार्रवाई के लिए इसे जिला मजिस्ट्रेट के संज्ञान में लाने के लिए स्वतंत्र होगा. इस निर्णय से कश्मीर में ऐसी अनेक हिंदू धार्मिक संपत्तियों की रक्षा और भाग्य का निर्धारण होने की संभावना है, जो अप्रयुक्त रह गई हैं. जिसके कारण लालची अतिक्रमणकारियों और प्रभावशाली भू-माफियाओं द्वारा अतिक्रमण की चपेट में आ गई है.

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