हैदराबाद: जीवन को सुरक्षित बनाये रखने के लिए धरती के मूल या कहें प्राकृति स्वरूप को बचाना जरूरी है. धरती की सबसे बड़ी समस्या की ओर वैश्विक ध्यान आकृष्ट करने की आवश्यकता है. इसके लिए सिर्फ नीतियां बनाने का नहीं उसे ईमानदारी से लागू करने भी जरूरत है. इसी को फोकस करने के लिए हर साल 22 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय मातृ पृथ्वी दिवस मनाया जाता है.
प्रगति के लिए एक दूसरे से आगे निकलने के लिए विकास के नाम पर सबसे ज्यादा नुकसान धरती को पहुंचाया जा रहा है. महासागर व जल श्रोत प्लास्टिक से भर रहे हैं और पहले की तुलना में अधिक अम्लीय हो रहे हैं. कूड़े का प्रबंधन नहीं होने के कारण प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहे हैं. इसका असर हम देख सकते हैं कि पल-पल एक बड़ी आबादी नई-नई बीमारियों के चपेट में आ रही है. अत्यधिक गर्मी, जंगल की आग और बाढ़-सुखाड़ ने लाखों लोगों को प्रभावित किया है.
अंतरर्राष्ट्रीय मातृ पृथ्वी दिवस पर हम सबों को संकल्प लेना चाहिए और खुद को याद दिलाएं कि अपनी घर-परिवार व समाज की तरह धरती को अपना घर मानें और इसे बचाने के लिए अपने स्तर से काम करें. आइए प्रकृति और पृथ्वी के साथ सामंजस्य को बढ़ावा दें. हमारी दुनिया को पुनर्स्थापित करने के लिए वैश्विक आंदोलन में शामिल हों.
जलवायु परिवर्तन, प्रकृति में मानव निर्मित परिवर्तन के साथ-साथ जैव विविधता को बाधित करने वाले अपराध, जैसे वनों की कटाई, भूमि-उपयोग परिवर्तन, कृषि और पशुधन उत्पादन में वृद्धि या बढ़ते अवैध वन्यजीव व्यापार, ग्रह के विनाश की गति को तेज कर सकते हैं.
दुनिया में लगातार वन क्षेत्र कम में आ रही है कमी
- ग्रह हर साल 10 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र खो रहा है, जो आइसलैंड से भी बड़ा क्षेत्र है.
- इको सिस्टम बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक के भीतर मनाया जाने वाला यह तीसरा मातृ पृथ्वी दिवस है.
- इको सिस्टम पृथ्वी पर सभी जीवन का समर्थन करते हैं.
- हमारा इको सिस्टम जितना स्वस्थ होगा, ग्रह और उसके लोग भी उतने ही स्वस्थ होंगे.
- हमारे क्षतिग्रस्त इको सिस्टम को बहाल करने से गरीबी खत्म करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और बड़े पैमाने पर विलुप्त होने को रोकने में मदद मिलेगी.
- हम तभी सफल होंगे जब हर कोई इसमें भूमिका निभाएगा.
- एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र हमें कई बीमारियों से बचाने में मदद करता है.
- जैविक विविधता के कारण रोगजनकों का तेजी से फैलना मुश्किल हो जाता है.
- अनुमान है कि लगभग दस लाख जानवरों और पौधों की प्रजातियों पर अब विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.
भारत सरकार के वन व पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से नियमित तौर पर वनों का सर्वेक्षण किया जाता है. वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 जारी किया गया था. रिपोर्ट की प्रमुख बातें-
- भारत में वृक्षों से भरा कुल वन क्षेत्र 80.9 मिलियन हेक्टेयर के करीब है. यह देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.62 फीसदी के करीब है.
- 2019 के आकलन की तुलना में 2021में वन क्षेत्रों में 2261 वर्ग किमी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इन में वनों के आवरण में 1540 वर्ग किलोमीटर व वृक्षों वाले क्षेत्र में 721 वर्ग किमी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
- वन आवरण के क्षेत्रों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी खुले जंगल में दर्ज की गई है. इसके बाद बहुत घने जंगल में बढ़ोतरी हुई है. वन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी वाले टॉप 3 स्टेट में क्रमशः आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा शामिल है.
- भारत में वनों के क्षेत्रफल के हिसाब से मध्य प्रदेश पहले स्थान पर है.
- देश के 17 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का 33 फीसदी से अधिक भौगोलिक इलाका वनों से आच्छादित है.