तिरुवनंतपुरम: भारत का पहला स्वदेशी स्कूटर 'अटलांटा' अब इतिहास बन चुका है. बहुत कम लोग ही जानते हैं कि पहला स्वदेशी स्कूटर एक मलयाली के सपने से पैदा हुआ था? केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के मूल निवासी एनएच राजकुमार भारत में स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित पहले स्कूटर 'अटलांटा' के मुख्य वास्तुकार थे. हालांकि, नई पीढ़ी 1961 में बनी रंजन मोटर कंपनी या इसके द्वारा बनाई गई अटलांटा स्कूटर से परिचित नहीं होगी.
रंजन मोटर कंपनी ने स्कूटर को अटलांटा के नाम से लॉन्च किया था. अटलांटा को देश में पहला स्वदेशी रूप से निर्मित स्कूटर होने का गौरव हासिल है. इसने लोगों के दिलो-दिमाग पर अपनी छाप छोड़ी और साधारण लोगों का सपना सच हुआ.
उस समय उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक एनएच राजकुमार के दिमाग की उपज और एक युवा इंजीनियर पीएस थंकप्पन की कड़ी मेहनत से तैयार अटलांटा को एक कठोर राजनीतिक नेतृत्व ने रौंद दिया.
पहले स्कूटर को KLT 5732 रजिस्ट्रेशन नंबर दिया गया था. अटलांटा न सिर्फ स्वदेशी निर्मित स्कूटर है, बल्कि पहला गियरलेस स्कूटर भी है. इस स्कूटर का पहला मॉडल दो लीटर पेट्रोल में 35 किलोमीटर का माइलेज दे सकता है. उस स्कूटर को राजकुमार के बेटे डॉ. विनय रंजन आज भी संभाल कर रखते हैं.
डॉ. विनय रंजन कहते हैं कि उन्हें वह समय याद है, जब उनके पिता और उनके दोस्तों ने उनके बचपन में स्कूटर का मॉडल बनाया था. राजकुमार रंजन, एमजी प्रभाकरन अशारी के सहयोग से ब्लूप्रिंट तैयार करने और पप्पनमकोड इंडस्ट्रियल एस्टेट में कम्युनिटी इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की मदद से पहला प्रोटोटाइप जारी करने के बाद मोटर कंपनी की स्थापना की तैयारी कर रहे थे.
अटलांटा स्कूटर का निर्माण
राजकुमार ने 1959 से 1961 तक रमनकुट्टी पिल्लई की मदद से अपने सपने को साकार किया. उनके बेटे विनय रंजन ने बताया कि 1961 से 1963 तक रंजन मोटर कंपनी में काम करने वाले मार्टिन ने भी अटलांटा को सड़कों पर लाने में अहम भूमिका निभाई.
एनएच राजकुमार के परिवार के सदस्य और त्रावणकोर राजघराना इसके पहले शेयरधारक थे और उन्होंने 1962 में 5 लाख रुपये की पूंजी और 12 कर्मचारियों के साथ अटलांटा स्कूटर का निर्माण शुरू किया. उस समय करीब 10,500 अटलांटा स्कूटर लॉन्च किए गए और केरल के सभी जिलों में खरीद के लिए उपलब्ध कराया गया. पहले स्कूटर की कीमत 1200 रुपये थी. उनके बेटे विनय रंजन ने बताया कि उन्होंने हैदराबाद, गुंटूर और कर्नाटक के हुबली में स्कूटर की बिक्री के बारे में सुना था.
राजकुमार ने तिरुवनंतपुरम के कैमनम में मौजूदा लक्ष्मी कल्याण मंडपम की जमीन खरीदकर अटलांटा के औद्योगिक निर्माण की शुरुआत की. 1963 से 1967 तक रंजन की भागीदारी ने अटलांटा के उत्पादन में मदद की. 1963 से 1971 तक रंजन मोटर कंपनी के सक्रिय सदस्य रहे रंजन ने कंपनी के लिए लाइसेंस प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने दिल्ली जाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अटलांटा के बारे में जानकारी दी थी. अनुमति मिलने के बाद, उन्होंने केरल में स्कूटर का उत्पादन कार्य शुरू किया.
जैसे-जैसे कंपनी पप्पनमकोड औद्योगिक एस्टेट में एक छोटे से शेड से कैमनम में एक विनिर्माण इकाई में विकसित हुई. अटलांटा ने उस समय के प्रमुख स्कूटर, लैंब्रेटा और वेस्पा के साथ सड़कों पर दौड़ना शुरू कर दिया. डॉ. विनय रंजन ने कहा कि स्कूटर की केवल हेडलाइट और कार्बोरेटर जापान से आयात किए गए थे.
केरल ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड ने किया अधिग्रहण
केरल राज्य इंजीनियरिंग तकनीशियन सहकारी समिति (एनसीओएस) ने रंजन मोटर कंपनी का 1971 में अधिग्रहण किया. बाद में केरल ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड ने अटलांटा के निर्माण का काम अपने हाथ में ले लिया और गियर वाले स्कूटर बनाने शुरू कर दिए. धीरे-धीरे मजदूरों की हड़ताल शुरू हो गई, इसकी वजह से बिक्री प्रभावित हुई. विनय रंजन ने बताया कि आखिरकार 1973 में अटलांटा का निर्माण पूरी तरह बंद कर दिया गया.
इस बीच, राज्य सरकार ने केरल के औद्योगिक क्षेत्र में उनके योगदान के लिए राजकुमार को सम्मानित किया.
विनय रंजन बताते हैं कि उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक राजकुमार और उनके दोस्तों की मेहनत से पैदा हुआ अटलांटा 1995 तक तिरुवनंतपुरम में खूब देखा जाता था. कई लोग लाखों रुपये देकर अटलांटा खरीदने आते हैं. लेकिन वह उस ऐतिहासिक स्कूटर को बेचना नहीं चाहते थे. डॉ. विनय रंजन चाहते हैं कि राज्य सरकार की ओर से केरल के औद्योगिक इतिहास के सुनहरे प्रतीक अटलांटा के लिए एक संग्रहालय बनाया जाए.
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