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चुनावी बांड योजना पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, पढ़ें महत्वपूर्ण बिंदु

SC on Electoral Bond scheme : उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है. दूरगामी परिणाम वाले इस ऐतिहासिक फैसले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को छह वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए गए. पढ़ें फैसले की मुख्य बातें...

SC on Electoral Bond scheme
प्रतिकात्मक तस्वीर. (AP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 15, 2024, 1:13 PM IST

नई दिल्ली: पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया. अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले वित्तपोषण के बारे में जानकारी आवश्यक है. गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन करते हैं. यह योजना राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में 2018 में लाई गई थी.

चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां इस प्रकार हैं:

  1. चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन और असंवैधानिक है.
  2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जारीकर्ता बैंक चुनावी बांड जारी करना तुरंत बंद कर दे और भारतीय स्टेट बैंक चुनावी बांड के माध्यम से दान का विवरण और योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण प्रस्तुत करे. अदालत ने एसबीआई से कहा कि वह इस योजना के माध्यम से अब तक किए गए योगदान का पूरा विवरण 6 मार्च तक चुनाव आयोग को प्रदान करे. आयोग 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर जानकारी साझा करेगा.
  3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर व्यक्तियों के योगदान की तुलना में अधिक गंभीर प्रभाव होता है. कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को कंपनियों की ओर से दिया किया गया योगदान पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन है. धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन स्पष्ट रूप से कंपनियों और व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए मनमाना है. SC ने कहा कि कंपनी एक्ट में संशोधन असंवैधानिक है.
  4. संशोधन संभावित प्रतिदान के बारे में नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है. कंपनी अधिनियम की धारा 182 में संशोधन अदालत के इस निष्कर्ष के मद्देनजर निरर्थक हो जाता है कि चुनावी बांड योजना असंवैधानिक है.
  5. केंद्र यह स्थापित करने में असमर्थ रहा कि चुनावी योजना के खंड 7(4)(1) में अपनाया गया उपाय सबसे कम प्रतिबंधात्मक उपाय है.
  6. SC ने कहा कि आयकर अधिनियम प्रावधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29C में संशोधन को अधिकारातीत घोषित किया जाता है.
  7. राजनीतिक दलों में वित्तीय योगदान दो कारणों से किया जाता है- राजनीतिक दलों को समर्थन देने के लिए या यह योगदान बदले कुछ पाने का एक तरीका हो सकता है.
  8. काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है. राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता देने से पारस्परिक लाभ की व्यवस्था हो सकती है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि चुनावी बांड योजना काले धन पर अंकुश लगाने की एकमात्र योजना नहीं है और अन्य विकल्प भी हैं.

नई दिल्ली: पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया. अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले वित्तपोषण के बारे में जानकारी आवश्यक है. गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन करते हैं. यह योजना राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में 2018 में लाई गई थी.

चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां इस प्रकार हैं:

  1. चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन और असंवैधानिक है.
  2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जारीकर्ता बैंक चुनावी बांड जारी करना तुरंत बंद कर दे और भारतीय स्टेट बैंक चुनावी बांड के माध्यम से दान का विवरण और योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण प्रस्तुत करे. अदालत ने एसबीआई से कहा कि वह इस योजना के माध्यम से अब तक किए गए योगदान का पूरा विवरण 6 मार्च तक चुनाव आयोग को प्रदान करे. आयोग 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर जानकारी साझा करेगा.
  3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर व्यक्तियों के योगदान की तुलना में अधिक गंभीर प्रभाव होता है. कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को कंपनियों की ओर से दिया किया गया योगदान पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन है. धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन स्पष्ट रूप से कंपनियों और व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए मनमाना है. SC ने कहा कि कंपनी एक्ट में संशोधन असंवैधानिक है.
  4. संशोधन संभावित प्रतिदान के बारे में नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है. कंपनी अधिनियम की धारा 182 में संशोधन अदालत के इस निष्कर्ष के मद्देनजर निरर्थक हो जाता है कि चुनावी बांड योजना असंवैधानिक है.
  5. केंद्र यह स्थापित करने में असमर्थ रहा कि चुनावी योजना के खंड 7(4)(1) में अपनाया गया उपाय सबसे कम प्रतिबंधात्मक उपाय है.
  6. SC ने कहा कि आयकर अधिनियम प्रावधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29C में संशोधन को अधिकारातीत घोषित किया जाता है.
  7. राजनीतिक दलों में वित्तीय योगदान दो कारणों से किया जाता है- राजनीतिक दलों को समर्थन देने के लिए या यह योगदान बदले कुछ पाने का एक तरीका हो सकता है.
  8. काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है. राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता देने से पारस्परिक लाभ की व्यवस्था हो सकती है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि चुनावी बांड योजना काले धन पर अंकुश लगाने की एकमात्र योजना नहीं है और अन्य विकल्प भी हैं.
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