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क्या 3 निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस से गिर जायेगी बीजेपी की नायब सैनी सरकार? जानिए पार्टी के पास कितने विधायकों का सपोर्ट - Nayab Saini Govt Loses Majority

Nayab Saini Govt Loses Majority: तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने से क्या हरियाणा की नायब सैनी सरकार गिर जायेगी. क्या एक बार बहुमत साबित करने के बाद 6 महीने तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता. हरियाणा के सियासी गलियारे में ये सवाल चर्चा का विषय बन गये हैं. आइये आपको बताते हैं कि बीजेपी के पास मौजूदा समय में कितने विधायकों का समर्थन है.

Nayab Saini Govt Loses Majority
नायब सैनी सरकार से 3 विधायकों ने समर्थन वापस लिया (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : May 7, 2024, 9:46 PM IST

Updated : May 8, 2024, 11:47 AM IST

चंडीगढ़: हरियाणा में बीजेपी सरकार अल्पमत में आ गई है. दरअसल तीन निर्दलीय विधायको ने बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने का ऐलान किया है. 90 विधायकों वाली हरियाणा विधानसभा में वर्तमान में 88 विधायक हैं. क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं. ऐसे में 88 विधायकों वाली विधानसभा में बीजेपी के पास 43 विधायकों का समर्थन रह गया है, जबकि बहुमत के लिए 45 चाहिए.

हरियाणा में पैदा हुए इस नये सियासी संकट को लेकर विधायी कार्यों के जानकार रामनारायण यादव कहते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा के सत्र के दौरान लाया जाता है. सत्र के दौरान कई मुद्दों पर अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष ला सकता है. यह मुद्दों पर आधारित होता है, ऐसा नहीं है कि 6 महीने बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. अगर मुद्दा दूसरा है तो 2 दिन बाद भी अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. अविश्वास प्रस्ताव का मतलब सरकार गिराना नहीं होता है बल्कि सरकार की नीतियों पर चर्चा कराना होता है.

अविश्वास प्रस्ताव के अलावा सरकार के पास विश्वास प्रस्ताव लाने का भी विकल्प है. विश्वास प्रस्ताव तब लाया जाता है जब मुख्यमंत्री चाहते हैं कि वे अपनी सरकार के प्रति विश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं. जैसा कि आम आदमी पार्टी पंजाब और दिल्ली में करती रही है. जब वे चाहते हैं कि अगला सत्र 6 महीने बाद आएगा तो वह उतने वक्त के लिए अपनी शक्ति जाहिर करते हैं. इतने समय के लिए विश्वास प्रस्ताव का रास्ता सरकार अपनाती है.

रामनारायण यादव का कहना है कि अब दूसरी स्थिति की बात करें तो सरकार ने विश्वासमत प्राप्त कर लिया है. लेकिन इस बीच उनका आंकड़ा कम हो जाता है या फिर सरकार को समर्थन करने वाले विधायकों का आंकड़ा आधे से कम हो गया है और विपक्ष कहता है कि उनका आंकड़ा ज्यादा हो गया है, तो फिर विपक्ष के पास एक ही रास्ता बस जाता है कि वो राज्यपाल के पास जाएं और उन्हें संतुष्ट करें कि उनके पास सरकार बनाने की संख्या है.

अगर राज्यपाल विपक्ष की दलील से संतुष्ट हो जाते हैं तो वे फिर आगे निर्देश देंगे, अगर वे संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे फिर उसको वहीं रोक देंगे. अगर उन्हें लगता है कि विपक्ष सही कह रहा है तो वे फिर उस पर विचार करेंगे और मुख्यमंत्री से कहेंगे कि उनके सामने यह स्थिति आई है, इसलिए वो सदन में विश्वास मत हासिल करें. यह राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वे सरकार को कितने दिन का समय विश्वास मत हासिल करने के लिए देते हैं.

सरकार पहले ही विश्वास मत हासिल कर चुकी है तो क्या अगले 6 महीने में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. इस सवाल का जवाब देते हुए रामनारायण यादव ने कहा कि 6 महीने की कोई शर्त नहीं होती. शर्त सिर्फ इतनी है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है लेकिन मुद्दा दूसरा होना चाहिए. साथ ही विधानसभा का सत्र बुलाया जाय.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में बीजेपी सरकार पर संकट, 3 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया, कांग्रेस बोली- प्रदेश में लगे राष्ट्रपति शासन
ये भी पढ़ें- नायब सिंह सैनी ने अग्निपरीक्षा की पास, विश्वासमत हासिल, खट्टर ने छोड़ी करनाल विधायकी
ये भी पढ़ें- रणजीत सिंह चौटाला ने दिया इस्तीफा, विधानसभा स्पीकर को भेजा, अब तक नहीं हुआ मंजूर

चंडीगढ़: हरियाणा में बीजेपी सरकार अल्पमत में आ गई है. दरअसल तीन निर्दलीय विधायको ने बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने का ऐलान किया है. 90 विधायकों वाली हरियाणा विधानसभा में वर्तमान में 88 विधायक हैं. क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं. ऐसे में 88 विधायकों वाली विधानसभा में बीजेपी के पास 43 विधायकों का समर्थन रह गया है, जबकि बहुमत के लिए 45 चाहिए.

हरियाणा में पैदा हुए इस नये सियासी संकट को लेकर विधायी कार्यों के जानकार रामनारायण यादव कहते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा के सत्र के दौरान लाया जाता है. सत्र के दौरान कई मुद्दों पर अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष ला सकता है. यह मुद्दों पर आधारित होता है, ऐसा नहीं है कि 6 महीने बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. अगर मुद्दा दूसरा है तो 2 दिन बाद भी अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. अविश्वास प्रस्ताव का मतलब सरकार गिराना नहीं होता है बल्कि सरकार की नीतियों पर चर्चा कराना होता है.

अविश्वास प्रस्ताव के अलावा सरकार के पास विश्वास प्रस्ताव लाने का भी विकल्प है. विश्वास प्रस्ताव तब लाया जाता है जब मुख्यमंत्री चाहते हैं कि वे अपनी सरकार के प्रति विश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं. जैसा कि आम आदमी पार्टी पंजाब और दिल्ली में करती रही है. जब वे चाहते हैं कि अगला सत्र 6 महीने बाद आएगा तो वह उतने वक्त के लिए अपनी शक्ति जाहिर करते हैं. इतने समय के लिए विश्वास प्रस्ताव का रास्ता सरकार अपनाती है.

रामनारायण यादव का कहना है कि अब दूसरी स्थिति की बात करें तो सरकार ने विश्वासमत प्राप्त कर लिया है. लेकिन इस बीच उनका आंकड़ा कम हो जाता है या फिर सरकार को समर्थन करने वाले विधायकों का आंकड़ा आधे से कम हो गया है और विपक्ष कहता है कि उनका आंकड़ा ज्यादा हो गया है, तो फिर विपक्ष के पास एक ही रास्ता बस जाता है कि वो राज्यपाल के पास जाएं और उन्हें संतुष्ट करें कि उनके पास सरकार बनाने की संख्या है.

अगर राज्यपाल विपक्ष की दलील से संतुष्ट हो जाते हैं तो वे फिर आगे निर्देश देंगे, अगर वे संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे फिर उसको वहीं रोक देंगे. अगर उन्हें लगता है कि विपक्ष सही कह रहा है तो वे फिर उस पर विचार करेंगे और मुख्यमंत्री से कहेंगे कि उनके सामने यह स्थिति आई है, इसलिए वो सदन में विश्वास मत हासिल करें. यह राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वे सरकार को कितने दिन का समय विश्वास मत हासिल करने के लिए देते हैं.

सरकार पहले ही विश्वास मत हासिल कर चुकी है तो क्या अगले 6 महीने में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. इस सवाल का जवाब देते हुए रामनारायण यादव ने कहा कि 6 महीने की कोई शर्त नहीं होती. शर्त सिर्फ इतनी है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है लेकिन मुद्दा दूसरा होना चाहिए. साथ ही विधानसभा का सत्र बुलाया जाय.

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Last Updated : May 8, 2024, 11:47 AM IST
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