सिरसा: केंद्र सरकार ने सिरसा के गुरविंदर सिंह को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की है. गुरविंदर करीब दो दशक से मानवता की सेवा कर रहे हैं. पद्मश्री अवॉर्ड की सूचना मिलने के बाद गुरविंदर सिंह और उनके परिजनों में खुशी का माहौल है. गुरविंदर सिंह को बधाई देने के लिए अब लोगों का तांता लगा हुआ है.
दरअसल गुरविंदर सिंह सिरसा में भाई कन्हैया लाल के नाम से आश्रम चला रहे हैं. इस आश्रम में गुरविंदर बेघर लोगों को रहने की जगह और अशिक्षित लोगों को शिक्षा दी जाती है. साल 2012 से उन्होंने इस आश्रम की शुरुआत की थी.
भाई कन्हैया लाल आश्रम का संचालन करने वाले गुरविंदर सिंह खुद भी दिव्यांग हैं. इसके बावजूद उनका हौसला और जज्बा ऐसा है कि दिन-रात लोगों की सेवा में लगे रहते हैं. गुरविंदर सिंह व्हीलचेयर पर रहते हुए भी आश्रम के लिए लोगों का सहारा बने हुए हैं. गुरविंदर सिंह आश्रम में बेसहारा, विकलांग, अपनों से बिछड़े और बीमार लोगों को आश्रय देते हैं. इस आश्रम की सेवा से सैकड़ों लोग ठीक होकर अपने घर वापस जा चुके हैं. फिलहाल बच्चों समेत 400 लोग इसमें रह रहे हैं. आश्रम में हर तरह की सुविधाएं हैं. कमरों में बेड, कूलर और टीवी भी उपलब्ध करवाया गया है.
बच्चों के खेलने के लिए आश्रम में झूले भी लगाए हुए हैं. आश्रम में किसी भी बेघर को लाने से पहले पुलिस को जानकारी दी जाती है. उसके बाद जब उनके परिजनों को सौंपा जाता है. तब भी कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद ही उन्हें सौंपा जाता है. इस आश्रम की वजह से बहुत से बिछड़े हुए लोग अपने परिजनों से मिल चुके हैं. भाई कन्हैया आश्रम के मुख्य सेवक गुरविंद्र सिंह ने बताया कि साल 2010 में एक औरत विक्षिप्त हालत में सड़क पर घूम रही थी. इसे किसी सुरक्षित जगह पर भेजने की कोशिश की, तो किसी ने बताया कि पिंगलवाड़ा में आश्रम है. वहां पर महिला को छोड़ सकते हैं.
इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि अमृतसर में पिंगलवाड़ा आश्रम है. उस आश्रम से हमें प्रेरणा मिली कि क्यों ना हम लोगों की सेवा शुरू कर दें. इसके बाद शहर में ही तकनीकी कॉलेज के पास 200 गज का प्लॉट लिया और आश्रम स्थापित किया, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा ना आए. इस संस्था द्वारा एक स्कूल भी बनाया गया है. जहां पर निशुल्क शिक्षा दी जा रही है. गुरविंदर सिंह ने बताया कि 7 जून 1997 को वो स्कूटर पर ऐलनाबाद से सिरसा आ रहे थे. रास्ते में सड़क हादसा हो गया और इलाज के लिए लुधियाना के डीएमसी में दाखिल करवाया गया.
हादसे में गुरविंदर ने अपने दोनों पैर खो दिए. रीढ़ की हड्डी में चोट लगी, तो शरीर का कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद हो गया. जिंदगी व्हील चेयर और बेड पर आ गई. इस दौरान उन्होंने देखा कि अस्पताल में कुछ लोग सुबह के समय मरीजों को दूध, दातुन और ब्रेड वितरित कर रहे हैं. जब उन्होंने पूछा तो पता चला कि वो लोग जरूरतमंदों की सेवा में जुटे हैं. यहीं से उनके दिमाग में आया कि क्यों ना सिरसा के अस्पताल में भी ऐसी ही सेवा शुरू की जाए. इसके बाद 1 जनवरी 2005 से नागरिक अस्पताल में समाजसेवी लोगों के साथ मिलकर दूध सेवा शुरू की.
उसके बाद से ही भाई कन्हैया आश्रम की शुरुआत की और धीरे धीरे सेवाओं में विस्तार हुआ. गुरविंदर सिंह ने मरीजों को दूध बांटने से मानव सेवा शुरू की थी. सिरसा के नागरिक अस्पताल में मरीजों को 250 लीटर दूध बांटने से मानव सेवा की शुरुआत हुई थी. इसके बाद जिले में कई ब्लड कैंप लगाए गए. 29 दिसंबर 2006 को भाई कन्हैया मानव सेवा समिति का गठन कर मुहिम का विस्तार किया गया.
जिसके बाद निशुल्क एंबुलेंस की सेवा की गई. गुरविंदर सिंह ने बाल गोपाल धाम नामक बाल देखभाल संस्थान की स्थापना की और 300 बच्चों के सपनों को संजोया. सामाजिक कार्यों में उनके अटूट समर्पण और योगदान से प्रभावित होकर केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री देने का फैसला किया. गुरविंदर सिंह 6,000 से अधिक दुर्घटना पीड़ितों और गर्भवती महिलाओं को मुफ्त एंबुलेंस की सेवा भी प्रदान कर चुके हैं.
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