नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में बरी हो गए हैं. साईबाबा जेल से रिहा होने के बाद दिल्ली भी पहुंच गए हैं. उन्होंने बताया कि वह स्वस्थ नहीं है, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने से पहले वह मीडिया के समक्ष अपनी बात रखना चाहते थे. उन्होंने अपने सभी शुभचिंतकों, यूनाइटेड नेशन, ह्यूमन राइट कमीशन को भी धन्यवाद किया.
जेल से रिहा होने के बाद पत्नी वसंता के साथ दिल्ली के सुरजीत भवन पहुंचे प्रो जीएन साईबाबा ने प्रेस कांफ्रेंस में भावुक मन से अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि जिस तरह माता सीता को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा, उसकी तरह वे भी गुजरे हैं. शक के आधार पर अपनी गिरफ्तारी को लेकर साईबाबा ने कहा कि लोगों ने तो भगवान राम पर भी शक किया था. शक बिल्कुल बेबुनियाद था. उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी के बाद 10 साल जिस प्रताड़ना से गुजरा हूं, उस दौरान हुई क्रूरता को कभी नहीं भूल सकता.
उन्होंने कहा कि वह शिक्षण कार्य किये बगैर नहीं रह सकते और प्रोफेसर के रूप में अपनी नौकरी फिर से शुरू करना चाहते हैं. मेरे परिवार को सिर्फ उम्मीद का सहारा था. अस्पताल जाने के बजाय, मैंने मीडिया से बात करने का चुनाव किया, क्योंकि आपने मेरा समर्थन किया है. मैंने काफी पीड़ा झेली है, यहां तक कि मुझे एक आतंकवादी भी कहा गया था. प्रो जीएन साईबाबा ने आगे कहा कि सजा मिलने के बाद सात साल जेल के अंडासेल में रखा गया, जहां दुर्दांत कैदियों को रखा जाता है. जिस जेल में 200 कैदियों की क्षमता थी, वहां 1300 से अधिक कैदियों को रखा जाता है. वहां जानवरों की तरह उठने, बैठने के लिए कैदी आपस में लड़ाई करते हैं. जेल में दैनिक क्रिया के लिए दो आदिवासी कैदियों ने उनकी मदद की. बिना उनके सहयोग के वे हिल भी नहीं सकते थे.
प्रो साईबाबा ने कहा कि उन्हें बचपन में आए पोलियो अटैक के अलावा कोई बीमारी नहीं थी, लेकिन आज उनके शरीर के ज्यादातर अंग काम नहीं कर रहे. ब्रेन में सिस्ट है. हार्ट 55 फीसदी काम कर रहा है. गॉल ब्लैडर में स्टोन है, पित्ताशय काम नहीं कर रहा. मई 2014 में जब उन्हें पुलिस ने घसीटा था, उस समय उनके कंधे में दर्द और वह फूल गया था, आज भी वह ठीक नहीं हुआ है.
अपना बायां हाथ और कंधा दिखाते हुए साईबाबा ने कहा कि नर्वस का कनेक्शन कट गया है, दर्द आज भी हैं लेकिन उन्हें इलाज नहीं मिला. आदिवासियों के खिलाफ अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की यह सजा मिलेगी, सपने में भी नहीं सोचा था. मुझे संदेह पर गिरफ्तार किया था. साईबाबा ने कहा कि 2020 में उनकी माँ की मौत हो गयी, उन्हें पैरोल नहीं मिला. सरकार को मानवता को नहीं कुचलना चाहिए, सरकार को जनता की सेवा करनी चाहिए.
वहीं, प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा ने कहा कि प्रो. जीएन साईबाबा ने जो साहस दिखाया, इसके लिए उन्हें सलाम करता हूं. यह राइट विंग द्वारा सोची समझी साजिश के तहत लाया गया है. साईबाबा की गिरफ्तारी का विरोध करने वाले सभी को संदेह की नजर से देखा गया. दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन की पूर्व प्रेसीडेंट प्रो. नंदिता दास ने मांग की है कि रामलाल आनंद कॉलेज जहां साईबाबा पढ़ाते थे, उनकी नौकरी दोबारा बहाल हो और बीते 10 सालों की सैलरी भी दें.
प्रो जीएन साईबाबा को क्यों किया गया था गिरफ्तार: जीएन साईबाबा को 2014 में गढ़चिरौली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. 2014 में गिरफ्तारी से पहले जीएन साई बाबा रामलाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे. वह 90 प्रतिशत दिव्यांग हैं और व्हील चेयर से चलते हैं. गिरफ्तारी के बाद उन पर गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. इनके साथ पांच अन्य को भी सजा सुनाई गई थी. इनमें से एक पांडु नरोटे की हिरासत में ही मौत हो गई थी.
बीते मंगलवार को बांबे हाईकोर्ट ने साई बाबा सहित अन्य लोगों की भी आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगाते हुए उन्हें रिहा कर दिया. इन सभी को 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. जानकारों के अनुसार, साई बाबा आंध्र प्रदेश के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे. 2003 में दिल्ली आने से पहले उनके पास व्हील चेयर खरीदने के भी पैसे नहीं थे. लेकिन, वह पढ़ाई में शुरू से ही काफी मेधावी थे. एक कोचिंग क्लास में उनकी मुलाकात अपनी पत्नी वसंता से हुई थी. फिर दोनों ने लव मैरिज कर ली थी.
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अखिल भारतीय पीपुल्स रेजिस्टंस फोरम के एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने कश्मीर और उत्तर पूर्व में मुक्ति आंदोलनों के समर्थन में दलित और आदिवासी अधिकारों के प्रचार के लिए दो लाख किमी से अधिक की यात्रा की थी. साई बाबा पर शहर में रहकर माओवादियों के लिए काम करने का भी आरोप लगा. हालांकि, आज भी खुद को हमेशा ही माओवादियों का साथ देने के आरोप से इनकार करते रहे हैं.
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