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उत्तराखंड में 'सुरसा के मुंह' की तरह बढ़ी आबादी, आर्थिक संसाधनों के साथ पर्यावरण पर पड़ रहा असर - WORLD POPULATION DAY 2024

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 11, 2024, 12:58 PM IST

Resources falling short due to increasing population in Uttarakhand आज विश्व जनसंख्या दिवस 2024 है. वर्ल्डोमीटर के अनुसार दुनिया की वर्तमान जनसंख्या 8,120,886,060 (8 अरब 12 करोड़ 88 लाख 60) है. ये लगातार बढ़ रही है. भारत ऑफिशियली चीन को आबादी में पीछे छोड़ने वाला है. उत्तराखंड की बात करें तो यहां भी जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है. 2011 की जनगणना में जहां उत्तराखंड की आबादी करीब 1 करोड़ थी. बीते 13 सालों में इसमें 22 लाख की बढ़ोत्तरी का अनुमान है. ऐसे में संसाधनों को लेकर खींचतान होने लगी है.

WORLD POPULATION DAY 2024
विश्व जनसंख्या दिवस 2024 (ETV Bharat Graphics)

देहरादून: देश दुनिया में लगातार बढ़ रही जनसंख्या एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. मौजूदा स्थिति यह है कि भारत में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या की वजह से तमाम दिक्कतें पैदा होने लगी हैं. इसी क्रम में उत्तराखंड की बात करें तो राज्य में लगातार बढ़ रही जनसंख्या अब प्रदेश के लिहाज से बेहद खराब साबित होने लगी है.

देश दुनिया पर जनसंख्या का दबाव: खासकर उत्तराखंड के मुख्य शहरों की बात करें तो इन शहरों में आबादी पिछले कुछ सालों की तुलना में काफी अधिक बढ़ गई है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण पर इसका असर पड़ रहा है, बल्कि आर्थिक संसाधनों पर भी बड़ा असर पड़ रहा है. यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार, जनसंख्या कानून पर जोर देने की बात कह रही है. जनसंख्या बढ़ने से प्रदेश पर क्या-क्या असर पड़ रहा है पेश है ये खास रिपोर्ट.

आज है विश्व जनसंख्या दिवस: तेजी से बढ़ रही जनसंख्या का असर ये है कि देश की जनसंख्या करीब 140 करोड़ तक पहुंच गई है. देश में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या से अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2030 तक जनसंख्या के मामले में हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे. देश दुनिया में बढ़ती जनसंख्या के कारण होने वाली गंभीर समस्या को देखते हुए हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. साथ ही हर साल इस दिवस को मनाने के लिए थीम निर्धारित की जाती है. इसी क्रम में इस साल विश्व जनसंख्या दिवस मनाने को लेकर "जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है" थीम निर्धारित की गई है.

लोगों को परिवार नियोजन के लिए किया जा रहा जागरूक: विश्व जनसंख्या दिवस पर गर्भ निरोधक और परिवार नियोजन के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है. साथ ही इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य जनता को जनसंख्या विस्फोट, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, लैंगिक समानता और मानव अधिकारों से जुड़ी महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी देना है. विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ओर से की गई थी. दरअसल, 1987 तक दुनिया की जनसंख्या पांच अरब के करीब पहुंच चुकी थी, जिसको लेकर जागरूक देशों को चिंता होने लगी. इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया, ताकि लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जा सके.

उत्तराखंड में भी बढ़ती जा रही जनसंख्या: देश भर में लगातार बढ़ रही जनसंख्या के साथ ही उत्तराखंड में भी तेजी से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है जो राज्य के लिहाज से ठीक नहीं है. क्योंकि, उत्तराखंड राज्य एक सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ राज्य है. लगातार बढ़ रही जनसंख्या के चलते सीमित संसाधन घटते जा रहे हैं. उत्तराखंड की मौजूदा स्थिति यह है कि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र खाली हो रहे हैं. शहरी और मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव तेजी से बढ़ता जा रहा है. इसका असर न सिर्फ आर्थिक संसाधनों पर पड़ रहा है, बल्कि पर्यावरण के साथ ही सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सीमांत गावों पर भी पड़ रहा है.

वनों वाले उत्तराखंड में अब कंक्रीट के जंगल: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून समेत प्रदेश के मुख्य शहर कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो गए हैं. आज स्थिति यह है कि शहरों में तेजी से मलिन बस्तियों की संख्या बढ़ रही है. नदी नाले सिकुड़ते जा रहे हैं. जंगल कटते जा रहे हैं. यही वजह है कि बढ़ती जनसंख्या की वजह से पर्यावरण पर भी इसका बड़ा असर देखने को मिल रहा है. इसके अलावा वायु प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या बनकर उभर रही है. जिस तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है, उसी तेजी से वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है. इससे चलते वायु प्रदूषण खतरनाक ढंग से बढ़ता चला जा रहा है. अगर अगले कुछ सालों तक उत्तराखंड के शहरों और मैदानी क्षेत्रों में यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी.

क्या कहते हैं जानकार: उत्तराखंड के मामलों के जानकार जय सिंह रावत की मानें तो, जनसंख्या का विस्फोट सिर्फ उत्तराखंड राज्य के लिए समस्या नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक समस्या है. भारत देश जनसंख्या के मामले में चीन से भी आगे निकल रहा है. लेकिन हिमालयी राज्यों में हो रहे जनसंख्या विस्फोट का सीधा असर और पर्यावरण के साथ ही आर्थिक संसाधनों पर पड़ता है. इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्र की केयरिंग कैपेसिटी उतनी अधिक नहीं है, जितना जनसंख्या का दबाव पड़ रहा है. इसके साथ ही बढ़ती जनसंख्या का असर वाइल्ड लाइफ पर भी पड़ रहा है. लगातार बढ़ रही जनसंख्या के चलते जंगलों के किनारे आबादी बसती जा रही है. यही वजह है कि जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्रों में आसानी से दिखाई दे जाते हैं. इसके चलते मानव वन्य जीव संघर्ष के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं.

इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन गड़बड़ाया: उत्तराखंड राज्य में इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन नहीं है, जिसके चलते भी समस्याएं खड़ी हो रही हैं. प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र लगातार खाली हो रहे हैं. शहरी और मैदानी क्षेत्रों में लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है. पर्वतीय क्षेत्रों से लोग पलायन कर मैदानी क्षेत्रों और शहरी क्षेत्र में आ रहे हैं, जिसके चलते शहरी और मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव बढ़ता चला जा रहा है, जो तमाम गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर रहा है. मुख्य रूप से हमारे नदी नाले खत्म होते जा रहे हैं. पर्यावरण में लगातार बदलाव हो रहा है. प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. आर्थिक संसाधनों पर भी दबाव तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में प्रदेश के भीतर इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, नहीं तो आने वाले समय में यह एक गंभीर समस्या बन जाएगी.

देश भर में लागू होना चाहिए जनसंख्या नियंत्रण कानून: जनसंख्या नियंत्रण कानून के सवाल पर जयसिंह रावत ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कानून देशभर में लागू होना चाहिए, लेकिन इसे लागू करने की नीयत साफ होनी चाहिए. इस कानून को लेकर लोगों के जहां में एक ही सवाल उठता है कि यह कानून सिर्फ एक वर्ग विशेष के लिए तैयार किया जा रहा है, जबकि होना यह चाहिए कि इस कानून को सही ढंग से लागू करना चाहिए ताकि जनसंख्या पर लगाम लगाई जा सके. उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2021 में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर पहल की थी. इसका ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया था, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार अभी तक इसे लागू नहीं कर पाई है.

मंत्री बोले- जनता को खुद जागरूक होना होगा: विश्व जनसंख्या दिवस पर कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या के नियंत्रण को लेकर सरकार की ओर से समय समय पर काम किए जाते हैं. जनता को खुद भी जागरूक होना पड़ेगा, क्योंकि जनसंख्या बढ़ने से हर चीज पर फर्क पड़ता है. साथ ही कहा कि विकसित देशों और भारत की तुलना करें तो उन देशों में जनसंख्या नियंत्रित है, जिसके चलते वहां के लोग अनुशासन में रहते हैं और नियमों का पालन भी करते हैं. भारत में जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी है. मौजूदा स्थिति यह है कि सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश अब शायद भारत देश है. हालांकि, जनगणना अभी बाकी है, लेकिन जनगणना होने के बाद वास्तविक स्थिति सामने आ जाएगी. ऐसे में सरकार के साथ साथ जनता को भी जागरूक होना पड़ेगा.

सीमांत क्षेत्रों से पलायन बना समस्या: कैबिनेट मंत्री ने कहा कि तमाम लोग अपने क्षेत्रों को छोड़कर शहरी क्षेत्रों में आ रहे हैं, ताकि अपनी आने वाली पीढ़ी को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य का लाभ दे सके. लेकिन उनकी अपील है कि लोग अपने मूल स्थान को न छोड़ें. क्योंकि उत्तराखंड विषम भौगोलिक स्थिति वाला प्रदेश है. साथ ही ये सीमांत क्षेत्र भी है. ऐसे में अगर सीमांत क्षेत्रों से पलायन होगा, तो ये आने वाले समय में एक समस्या बन जायेगी. ऐसे में लोग अपने मूल क्षेत्रों में रहें. ऐसा नहीं है कि पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है. पर्वतीय क्षेत्रों में भी बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध है. जनसंख्या नियंत्रण कानून के सवाल पर मंत्री ने कहा कि सरकार जो भी कानून लाती है, वो जनता के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकता है. ऐसे में जनता को जागरूक होने की जरूरत है. अगर जनता जागरुक हो गई, तो तमाम समस्याओं का निदान हो जाएगा.

क्या कहते हैं पर्यावरणविद्: पर्यावरणविद् प्रो एके बियानी ने बताया कि लगातार बढ़ रही आबादी के चलते आने वाले समय में दिक्कत पैदा होगी. मौजूदा स्थिति यह है कि जंगल कट रहे हैं. नदियों की चौड़ाई कम हो रही है और नई नई बसावट होती जा रही ही, जो पर्यावरण को काफी प्रभावित करती है. बढ़ती आबादी के बीच आने वाले समय में हवा और पानी का संकट उत्पन्न होगा. बढ़ती आबादी के चलते जंगलों को काटा जा रहा है. जब पेड़ नहीं होंगे तो सांस लेना दूभर हो जायेगा. प्रो बियानी ने कहा कि बढ़ती नई बसावट से सिर्फ पर्यावरण पर ही फर्क नहीं पड़ता है, बल्कि उनको आर्थिक संसाधनों पर भी हिस्सा चाहिए होता है. ऐसे में बढ़ते पॉपुलेशन के बीच बढ़ते पॉल्यूशन और सीमित संसाधनों पर बढ़ता दबाव आने वाले समय में घातक साबित हो सकता है.

13 साल में 22 लाख बढ़ी उत्तराखंड की आबादी! साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की आबादी एक करोड़ 86 हज़ार 292 थी. उस दौरान भी प्रदेश के तीन मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंह नगर में जनसंख्या का दबाव काफी अधिक था. साल 2011 में हरिद्वार जिले की आबादी 1,890,422 थी. देहरादून जिले की आबादी 1,696,694 थी. उधमसिंह नगर जिले की आबादी 1,648,902 थी. उसके बाद 13 सालों के भीतर जनगणना नहीं हुई है. 2021 में जनगणना होनी थी. वर्तमान समय में उत्तराखंड की अनुमानित जनसंख्या करीब 1.22 करोड़ तक पहुंच गई है.

उत्तर प्रदेश से अलग होकर 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य बना था. तब लेकर अब तक सिर्फ दो बार जनगणना हुई है. 2001 की जनगणना में उत्तराखंड की जनसंख्या 8,489,349 (84 लाख 89 हजार 349) थी. तब राज्य में पुरुषों की संख्या 4,325,924 (43 लाख 25 हजार 924) थी. महिलाओं की संख्या 4,163,425 (41 लाख 63 हजार 425) थी.

2011 की जनगणना: 2001 के बाद 2011 में जनगणना हुई थी. तब उत्तराखंड की जनसंख्या 10,086,292 (1 करोड़ 86 हजार 292) थी. 2011 में उत्तराखंड में पुरुष आबादी 5,137,773 (51 लाख 37 हजार 773) थी. महिला संख्या 4,948,519 (49 लाख 48 हजार 519) थी.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में जनसंख्या नियंत्रण कानून पर बहस तेज, UP के ड्राफ्ट बिल पर सरकार की नजर

देहरादून: देश दुनिया में लगातार बढ़ रही जनसंख्या एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. मौजूदा स्थिति यह है कि भारत में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या की वजह से तमाम दिक्कतें पैदा होने लगी हैं. इसी क्रम में उत्तराखंड की बात करें तो राज्य में लगातार बढ़ रही जनसंख्या अब प्रदेश के लिहाज से बेहद खराब साबित होने लगी है.

देश दुनिया पर जनसंख्या का दबाव: खासकर उत्तराखंड के मुख्य शहरों की बात करें तो इन शहरों में आबादी पिछले कुछ सालों की तुलना में काफी अधिक बढ़ गई है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण पर इसका असर पड़ रहा है, बल्कि आर्थिक संसाधनों पर भी बड़ा असर पड़ रहा है. यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार, जनसंख्या कानून पर जोर देने की बात कह रही है. जनसंख्या बढ़ने से प्रदेश पर क्या-क्या असर पड़ रहा है पेश है ये खास रिपोर्ट.

आज है विश्व जनसंख्या दिवस: तेजी से बढ़ रही जनसंख्या का असर ये है कि देश की जनसंख्या करीब 140 करोड़ तक पहुंच गई है. देश में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या से अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2030 तक जनसंख्या के मामले में हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे. देश दुनिया में बढ़ती जनसंख्या के कारण होने वाली गंभीर समस्या को देखते हुए हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. साथ ही हर साल इस दिवस को मनाने के लिए थीम निर्धारित की जाती है. इसी क्रम में इस साल विश्व जनसंख्या दिवस मनाने को लेकर "जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है" थीम निर्धारित की गई है.

लोगों को परिवार नियोजन के लिए किया जा रहा जागरूक: विश्व जनसंख्या दिवस पर गर्भ निरोधक और परिवार नियोजन के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है. साथ ही इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य जनता को जनसंख्या विस्फोट, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, लैंगिक समानता और मानव अधिकारों से जुड़ी महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी देना है. विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ओर से की गई थी. दरअसल, 1987 तक दुनिया की जनसंख्या पांच अरब के करीब पहुंच चुकी थी, जिसको लेकर जागरूक देशों को चिंता होने लगी. इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया, ताकि लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जा सके.

उत्तराखंड में भी बढ़ती जा रही जनसंख्या: देश भर में लगातार बढ़ रही जनसंख्या के साथ ही उत्तराखंड में भी तेजी से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है जो राज्य के लिहाज से ठीक नहीं है. क्योंकि, उत्तराखंड राज्य एक सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ राज्य है. लगातार बढ़ रही जनसंख्या के चलते सीमित संसाधन घटते जा रहे हैं. उत्तराखंड की मौजूदा स्थिति यह है कि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र खाली हो रहे हैं. शहरी और मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव तेजी से बढ़ता जा रहा है. इसका असर न सिर्फ आर्थिक संसाधनों पर पड़ रहा है, बल्कि पर्यावरण के साथ ही सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सीमांत गावों पर भी पड़ रहा है.

वनों वाले उत्तराखंड में अब कंक्रीट के जंगल: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून समेत प्रदेश के मुख्य शहर कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो गए हैं. आज स्थिति यह है कि शहरों में तेजी से मलिन बस्तियों की संख्या बढ़ रही है. नदी नाले सिकुड़ते जा रहे हैं. जंगल कटते जा रहे हैं. यही वजह है कि बढ़ती जनसंख्या की वजह से पर्यावरण पर भी इसका बड़ा असर देखने को मिल रहा है. इसके अलावा वायु प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या बनकर उभर रही है. जिस तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है, उसी तेजी से वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है. इससे चलते वायु प्रदूषण खतरनाक ढंग से बढ़ता चला जा रहा है. अगर अगले कुछ सालों तक उत्तराखंड के शहरों और मैदानी क्षेत्रों में यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी.

क्या कहते हैं जानकार: उत्तराखंड के मामलों के जानकार जय सिंह रावत की मानें तो, जनसंख्या का विस्फोट सिर्फ उत्तराखंड राज्य के लिए समस्या नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक समस्या है. भारत देश जनसंख्या के मामले में चीन से भी आगे निकल रहा है. लेकिन हिमालयी राज्यों में हो रहे जनसंख्या विस्फोट का सीधा असर और पर्यावरण के साथ ही आर्थिक संसाधनों पर पड़ता है. इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्र की केयरिंग कैपेसिटी उतनी अधिक नहीं है, जितना जनसंख्या का दबाव पड़ रहा है. इसके साथ ही बढ़ती जनसंख्या का असर वाइल्ड लाइफ पर भी पड़ रहा है. लगातार बढ़ रही जनसंख्या के चलते जंगलों के किनारे आबादी बसती जा रही है. यही वजह है कि जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्रों में आसानी से दिखाई दे जाते हैं. इसके चलते मानव वन्य जीव संघर्ष के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं.

इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन गड़बड़ाया: उत्तराखंड राज्य में इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन नहीं है, जिसके चलते भी समस्याएं खड़ी हो रही हैं. प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र लगातार खाली हो रहे हैं. शहरी और मैदानी क्षेत्रों में लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है. पर्वतीय क्षेत्रों से लोग पलायन कर मैदानी क्षेत्रों और शहरी क्षेत्र में आ रहे हैं, जिसके चलते शहरी और मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव बढ़ता चला जा रहा है, जो तमाम गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर रहा है. मुख्य रूप से हमारे नदी नाले खत्म होते जा रहे हैं. पर्यावरण में लगातार बदलाव हो रहा है. प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. आर्थिक संसाधनों पर भी दबाव तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में प्रदेश के भीतर इक्वल डिस्ट्रीब्यूशन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, नहीं तो आने वाले समय में यह एक गंभीर समस्या बन जाएगी.

देश भर में लागू होना चाहिए जनसंख्या नियंत्रण कानून: जनसंख्या नियंत्रण कानून के सवाल पर जयसिंह रावत ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कानून देशभर में लागू होना चाहिए, लेकिन इसे लागू करने की नीयत साफ होनी चाहिए. इस कानून को लेकर लोगों के जहां में एक ही सवाल उठता है कि यह कानून सिर्फ एक वर्ग विशेष के लिए तैयार किया जा रहा है, जबकि होना यह चाहिए कि इस कानून को सही ढंग से लागू करना चाहिए ताकि जनसंख्या पर लगाम लगाई जा सके. उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2021 में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर पहल की थी. इसका ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया था, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार अभी तक इसे लागू नहीं कर पाई है.

मंत्री बोले- जनता को खुद जागरूक होना होगा: विश्व जनसंख्या दिवस पर कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या के नियंत्रण को लेकर सरकार की ओर से समय समय पर काम किए जाते हैं. जनता को खुद भी जागरूक होना पड़ेगा, क्योंकि जनसंख्या बढ़ने से हर चीज पर फर्क पड़ता है. साथ ही कहा कि विकसित देशों और भारत की तुलना करें तो उन देशों में जनसंख्या नियंत्रित है, जिसके चलते वहां के लोग अनुशासन में रहते हैं और नियमों का पालन भी करते हैं. भारत में जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी है. मौजूदा स्थिति यह है कि सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश अब शायद भारत देश है. हालांकि, जनगणना अभी बाकी है, लेकिन जनगणना होने के बाद वास्तविक स्थिति सामने आ जाएगी. ऐसे में सरकार के साथ साथ जनता को भी जागरूक होना पड़ेगा.

सीमांत क्षेत्रों से पलायन बना समस्या: कैबिनेट मंत्री ने कहा कि तमाम लोग अपने क्षेत्रों को छोड़कर शहरी क्षेत्रों में आ रहे हैं, ताकि अपनी आने वाली पीढ़ी को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य का लाभ दे सके. लेकिन उनकी अपील है कि लोग अपने मूल स्थान को न छोड़ें. क्योंकि उत्तराखंड विषम भौगोलिक स्थिति वाला प्रदेश है. साथ ही ये सीमांत क्षेत्र भी है. ऐसे में अगर सीमांत क्षेत्रों से पलायन होगा, तो ये आने वाले समय में एक समस्या बन जायेगी. ऐसे में लोग अपने मूल क्षेत्रों में रहें. ऐसा नहीं है कि पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है. पर्वतीय क्षेत्रों में भी बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध है. जनसंख्या नियंत्रण कानून के सवाल पर मंत्री ने कहा कि सरकार जो भी कानून लाती है, वो जनता के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकता है. ऐसे में जनता को जागरूक होने की जरूरत है. अगर जनता जागरुक हो गई, तो तमाम समस्याओं का निदान हो जाएगा.

क्या कहते हैं पर्यावरणविद्: पर्यावरणविद् प्रो एके बियानी ने बताया कि लगातार बढ़ रही आबादी के चलते आने वाले समय में दिक्कत पैदा होगी. मौजूदा स्थिति यह है कि जंगल कट रहे हैं. नदियों की चौड़ाई कम हो रही है और नई नई बसावट होती जा रही ही, जो पर्यावरण को काफी प्रभावित करती है. बढ़ती आबादी के बीच आने वाले समय में हवा और पानी का संकट उत्पन्न होगा. बढ़ती आबादी के चलते जंगलों को काटा जा रहा है. जब पेड़ नहीं होंगे तो सांस लेना दूभर हो जायेगा. प्रो बियानी ने कहा कि बढ़ती नई बसावट से सिर्फ पर्यावरण पर ही फर्क नहीं पड़ता है, बल्कि उनको आर्थिक संसाधनों पर भी हिस्सा चाहिए होता है. ऐसे में बढ़ते पॉपुलेशन के बीच बढ़ते पॉल्यूशन और सीमित संसाधनों पर बढ़ता दबाव आने वाले समय में घातक साबित हो सकता है.

13 साल में 22 लाख बढ़ी उत्तराखंड की आबादी! साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की आबादी एक करोड़ 86 हज़ार 292 थी. उस दौरान भी प्रदेश के तीन मैदानी जिलों हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंह नगर में जनसंख्या का दबाव काफी अधिक था. साल 2011 में हरिद्वार जिले की आबादी 1,890,422 थी. देहरादून जिले की आबादी 1,696,694 थी. उधमसिंह नगर जिले की आबादी 1,648,902 थी. उसके बाद 13 सालों के भीतर जनगणना नहीं हुई है. 2021 में जनगणना होनी थी. वर्तमान समय में उत्तराखंड की अनुमानित जनसंख्या करीब 1.22 करोड़ तक पहुंच गई है.

उत्तर प्रदेश से अलग होकर 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य बना था. तब लेकर अब तक सिर्फ दो बार जनगणना हुई है. 2001 की जनगणना में उत्तराखंड की जनसंख्या 8,489,349 (84 लाख 89 हजार 349) थी. तब राज्य में पुरुषों की संख्या 4,325,924 (43 लाख 25 हजार 924) थी. महिलाओं की संख्या 4,163,425 (41 लाख 63 हजार 425) थी.

2011 की जनगणना: 2001 के बाद 2011 में जनगणना हुई थी. तब उत्तराखंड की जनसंख्या 10,086,292 (1 करोड़ 86 हजार 292) थी. 2011 में उत्तराखंड में पुरुष आबादी 5,137,773 (51 लाख 37 हजार 773) थी. महिला संख्या 4,948,519 (49 लाख 48 हजार 519) थी.

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