देहरादून: उत्तराखंड में मानसून की दस्तक के बाद से ही प्रदेश भर में बारिश का सिलसिला जारी है. मौजूदा स्थिति यह है कि पिछले कुछ दिनों से हो रही भारी बारिश के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो गई हैं. वर्तमान स्थिति यह है कि उत्तराखंड में जोशीमठ समेत कई संवेदनशील क्षेत्र आपदा के मुहाने पर खड़े हैं. वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पूरा हिमालय ही संवेदनशील है. मानसून सीजन के दौरान प्रदेश में करीब 5000 फीट और उससे अधिक ऊंचाई पर स्थित टाउन और ग्रामीण क्षेत्रों पर खतरा मंडरा रहा है.
प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र काफी संवेदनशील हैं. यही वजह है कि हर मानसून सीजन के दौरान प्रदेश के खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. यही नहीं, जोशीमठ शहर समेत प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों पर अन्य ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां घरों में दरारें आ चुकी हैं. भविष्य की खतरे को देखते हुए उत्तराखंड सरकार तमाम शहरों के कैयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन कराए जाने पर जोर दे रही है. इसकी प्रक्रिया अभी धरातल पर नहीं उतरी है. अगर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र पर मौजूद तमाम ऐसे शहरों की केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन कर लिया जाता है तो भविष्य के खतरों से बचा जा सकता है.
उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. मानसून सीजन के दौरान प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों की स्थिति और अधिक खराब हो जाती है. आलम ये है कि हर साल आपदा के चलते सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है. साथ ही बड़े पैमाने पर सरकारी संपत्ति और निजी संपत्तियों का नुकसान होता है. उत्तराखंड के तमाम हिस्सों में भारी बारिश का सिलसिला जारी है. मौसम विज्ञान केंद्र ने 9 जुलाई तक प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों पर भारी बारिश का रेड अलर्ट और अन्य क्षेत्रों में ऑरेंज अलर्ट जारी किया है. जिसको देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में एसडीआरएफ की तैनाती भी कर दी है.
मानसून सीजन के दौरान प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों पर होने वाले असर के सवाल पर वाडिया से रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल ने बताया प्रदेश में पांच हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित जो बसावट (जैसे कि जोशीमठ, गोपेश्वर, नैनीताल, रानीखेत, पिथौरागढ़ के पहाड़ों पर बसे गांव, उत्तरकाशी के हर्षिल का क्षेत्र) है वो नदियों के किनारे है. गांव उससे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बसे हुए हैं. ये सभी जोशीमठ शहर की तरह लूज मेटेरियल पर बसे हुए हैं. उन्होंने कहा जोशीमठ में बहुत ज्यादा डेवलपमेंट के कार्य हुए हैं, जिसके चलते केयरिंग कैपेसिटी की दिक्कत उत्पन्न हो गई है. इसके साथ ही क्लाइमेट चेंज का भी इंपैक्ट जोशीमठ पर पड़ रहा है.
डोभाल ने बताया किसी भी आपदा के लिए क्लेमेटिक और नॉन क्लेमेटिक फैक्टर की बड़ी भूमिका होती है. नॉन क्लेमेटिक फैक्टर में 'क्षेत्र की कंडीशन, डेवलपमेंट कैसा कर रहे है, बेरिंग कैपेसिटी क्या है? ये सब शामिल है. ऐसे में उत्तराखंड के खासकर पांच हज़ार फीट की ऊंचाई पर मौजूद बसावट का अध्ययन करना चाहिए. इसके लिए वैज्ञानिकों का एक स्पेशल सेल तैयार किया जाना चाहिए.
तैयार किया जाए उत्तराखंड मॉडल: डोभाल ने कहा क्लाइमेट को लेकर जो मॉडल यूरोप में बनता है उसका इस्तेमाल राज्य करते हैं. ऐसा नही है कि यूरोप का मॉडल यहां इस्तेमाल नहीं कर सकते, लेकिन प्रदेश की परिस्थितियों को देखते हुए अपना खुद का मॉडल तैयार करना चाहिए. इसके लिए ज़रूरी है कि प्रदेश की परिस्थितियों का अध्ययन करना होगा. जिससे एक डाटा बैंक तैयार किया जा सकें. जिसके आधार पर प्रदेश की स्थितियों को देखते हुए एक बेहतर मॉडल तैयार किया जा सके.
रिमोट सेंसिंग के साथ मैन्युअल अध्यन: डीपी डोभाल ने बताया कि आज अध्ययन के लिए सबसे अधिक रिमोट सेंसिंग पर जोर दिया जा रहा है. रिमोट सेंसिंग सिर्फ एक टूल है. जिससे डाटा मिलता है. उन्होंने धरातल पर जाकर मैनुअल अध्ययन पर जोर दिया. जिससे वास्तविक डाटा प्राप्त किया जा सके. रिमोट सेंसिंग अध्ययन से तत्काल डाटा मिल जाता है. ये कितना सही, कितना गलत होता है, ये ये कहना मुश्किल होता है.