नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता, एक मुस्लिम व्यक्ति, ने प्रतिवादी तलाकशुदा मुस्लिम महिला द्वारा आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने को चुनौती दी है.
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एस वसीम ए कादरी ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के मद्देनजर, एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है और उसे उपरोक्त 1986 अधिनियम के प्रावधानों के तहत आगे बढ़ना होगा.
पीठ के समक्ष तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 125 की तुलना में 1986 का अधिनियम मुस्लिम महिला के लिए अधिक फायदेमंद है. पीठ ने 9 फरवरी को दिए अपने आदेश में कहा कि 'हम पाते हैं कि इस मामले में नियुक्त किए जा रहे एमिकस क्यूरी के विचार से इस न्यायालय को लाभ होगा. इसलिए, हम वरिष्ठ वकील गौरव अग्रवाल को इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त करने का अनुरोध करते हैं.'
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी को तय करते हुए कहा कि 'इस मामले के कागजात का एक सेट रजिस्ट्री द्वारा वरिष्ठ वकील गौरव अग्रवाल को उपलब्ध कराया जाएगा. इस आदेश की एक प्रति रजिस्ट्री द्वारा उन्हें भी उपलब्ध करायी जायेगी.' सीआरपीसी की धारा 125 एक व्यक्ति को अपनी पत्नी, बच्चों (वैध या नाजायज), और पिता या माता के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त साधन रखने का आदेश देती है, यदि वे अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं.
याचिकाकर्ता ने अपनी पूर्व पत्नी को 10,000 रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना उच्च न्यायालय के निर्देश पर सवाल उठाया. व्यक्ति द्वारा दायर अपील में तर्क दिया गया कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती है, क्योंकि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 इस पर लागू होगा.
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