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बीजेपी की मुस्लिम महिलाओं को रिझाने की कोशिश, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया समर्थन - BJP Support Muslim Women

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 15, 2024, 7:01 PM IST

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजरा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों में बहस शुरू हो गई है. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 तहत गुजारा भत्ता मांग सकती है. पढ़ें ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

BJP National General Secretary Tarun Chugh
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग (फोटो - ETV Bharat)
तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग का बयान (वीडियो - ETV Bharat)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर बड़ा फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में साफ किया कि दूसरे धर्मों की तरह ही एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार है. लेकिन उसके बाद से ही ये मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के बीच राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है.

खासतौर पर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों से निजात दिलाने के बाद अब सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के अदालत के निर्देश को बढ़-चढ़ कर आगे बढ़ा रही है, ताकि मुस्लिम महिलाओं को भी समान अधिकार से जोड़कर मुख्यधारा में लाया जा सके.

हालांकि भारतीय जनता पार्टी तीन तलाक के मुद्दे पर पहले भी मुस्लिम महिलाओं के दिल में जगह बनाने की कोशिश कर चुकी है और पार्टी समय-समय पर ये दावा भी करती रहती है कि तीन तलाक़ की कुरीतियों को खत्म होने के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं भी 2019 और उसके बाद भाजपा की वोट बैंक में शामिल हो चुकी हैं. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के गुजारा भत्ता पर पर दिए फैसले को आगे बढ़ाकर पार्टी ने इसे एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया है और भाजपा इसी बहाने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश में है.

1. मुस्लिम महिलाओं के वोट बैंक को प्रभावित करना और उनके दिल में जगह बनाते हुए सहानुभूति लेना

2. मुस्लिम मतदाता और महिला मतदाताओं के बीच मतभिन्नता पैदा करना. क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक पर राजनीति करने वाली पार्टियों ने भी आजतक मुस्लिम महिलाओं के कल्याण के लिए ऐसा कोई वेलफेयर का मुद्दा अलग से अभी तक भारतीय राजनीति में नहीं लाने की कोशिश की. उल्टे इससे पहले जब शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने का निर्णय किया था, तब तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार मुल्लाओं की राजनीति के आगे नहीं टिक पाई थी और इस फैसले को ही उलट दिया था.

ऐसे में देखा जाए तो बीजेपी इस मुद्दे को मुस्लिम महिलाओं के दिल में जगह बनाने के लिए एक बड़े हथियार के तौर पर देख रही है. इस मुद्दे पर बोलते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और जम्मू कश्मीर के राज्य प्रभारी तरुण चुग ने कहा कि भारत कानून और संविधान से चलता है.

एक तरफ भारत की बेटियां और उनकी सुरक्षा का दायित्व उठाते हुए नरेंद्र मोदी की सरकार पंचायत से लेकर संसद तक 30 प्रतिशत का आरक्षण देकर उन्हें सत्ता में लाने का रास्ता बना रह हैं, उन्हें सबल कर रहे हैं, सेना में उन्हें कमीशन में नौकरी दिलवाकर सबल बना रहे हैं, भारत की बेटियां आज डॉक्टर, वकील, सीईओ बन रहीं हैं, कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं, लेकिन पता नहीं कुछ लोग इसका विरोध कर फिर से पाषाण युग में क्यों जाना चाहते हैं.

हालांकि ये मुद्दा भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा पहले से भी उठाता रहा है, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट के एक जज की तेलंगाना मामले में दी गई टिप्पणी ने भाजपा को इस मुद्दे को जोर शोर से रखने में बल जरूर दे दिया है. इस पर जमकर राजनीति भी हो रही है, जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे चैलेंज करने की तैयारी कर रहा है, वहीं एआईएमआईएम जैसी पार्टियां और मुस्लिम संगठन इसे इस्लाम के शरिया कानूनों में हस्तहेप बता रहीं है, लेकिन ज्यादातर मुस्लिम महिला संगठन इसकी तारीफ जरूर कर रहीं हैं.

लेकिन उनका ये भी मानना है कि कई मामलों में पहले भी फैसला मिला है, लेकिन या तो पति ने हर्जाना देने से मना कर दिया या महिलाएं ये सिद्ध नहीं कर पाईं कि उनकी अपनी आमदनी नहीं है. इसके दूसरे पहलू ये भी हैं, जो क़ानूनी जानकार ज्यादातर महिलाओं को सलाह देते हैं कि या तो वो धारा 125 में जाने के बजाए महिलाएं घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपनी करवाई करें, जिसमे एक ही अधिनियम के तहत कई तरह के विकल्प मिल जाते, जैसे घर की मलकियत, हिरासत के आदेश, संरक्षण आदि जो महिलाओं को अदालत के चक्कर काटने से ज्यादा बेहतर साबित होते हैं.

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग का बयान (वीडियो - ETV Bharat)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर बड़ा फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में साफ किया कि दूसरे धर्मों की तरह ही एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार है. लेकिन उसके बाद से ही ये मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के बीच राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है.

खासतौर पर मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों से निजात दिलाने के बाद अब सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के अदालत के निर्देश को बढ़-चढ़ कर आगे बढ़ा रही है, ताकि मुस्लिम महिलाओं को भी समान अधिकार से जोड़कर मुख्यधारा में लाया जा सके.

हालांकि भारतीय जनता पार्टी तीन तलाक के मुद्दे पर पहले भी मुस्लिम महिलाओं के दिल में जगह बनाने की कोशिश कर चुकी है और पार्टी समय-समय पर ये दावा भी करती रहती है कि तीन तलाक़ की कुरीतियों को खत्म होने के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं भी 2019 और उसके बाद भाजपा की वोट बैंक में शामिल हो चुकी हैं. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के गुजारा भत्ता पर पर दिए फैसले को आगे बढ़ाकर पार्टी ने इसे एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया है और भाजपा इसी बहाने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश में है.

1. मुस्लिम महिलाओं के वोट बैंक को प्रभावित करना और उनके दिल में जगह बनाते हुए सहानुभूति लेना

2. मुस्लिम मतदाता और महिला मतदाताओं के बीच मतभिन्नता पैदा करना. क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक पर राजनीति करने वाली पार्टियों ने भी आजतक मुस्लिम महिलाओं के कल्याण के लिए ऐसा कोई वेलफेयर का मुद्दा अलग से अभी तक भारतीय राजनीति में नहीं लाने की कोशिश की. उल्टे इससे पहले जब शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने का निर्णय किया था, तब तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार मुल्लाओं की राजनीति के आगे नहीं टिक पाई थी और इस फैसले को ही उलट दिया था.

ऐसे में देखा जाए तो बीजेपी इस मुद्दे को मुस्लिम महिलाओं के दिल में जगह बनाने के लिए एक बड़े हथियार के तौर पर देख रही है. इस मुद्दे पर बोलते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और जम्मू कश्मीर के राज्य प्रभारी तरुण चुग ने कहा कि भारत कानून और संविधान से चलता है.

एक तरफ भारत की बेटियां और उनकी सुरक्षा का दायित्व उठाते हुए नरेंद्र मोदी की सरकार पंचायत से लेकर संसद तक 30 प्रतिशत का आरक्षण देकर उन्हें सत्ता में लाने का रास्ता बना रह हैं, उन्हें सबल कर रहे हैं, सेना में उन्हें कमीशन में नौकरी दिलवाकर सबल बना रहे हैं, भारत की बेटियां आज डॉक्टर, वकील, सीईओ बन रहीं हैं, कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं, लेकिन पता नहीं कुछ लोग इसका विरोध कर फिर से पाषाण युग में क्यों जाना चाहते हैं.

हालांकि ये मुद्दा भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा पहले से भी उठाता रहा है, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट के एक जज की तेलंगाना मामले में दी गई टिप्पणी ने भाजपा को इस मुद्दे को जोर शोर से रखने में बल जरूर दे दिया है. इस पर जमकर राजनीति भी हो रही है, जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे चैलेंज करने की तैयारी कर रहा है, वहीं एआईएमआईएम जैसी पार्टियां और मुस्लिम संगठन इसे इस्लाम के शरिया कानूनों में हस्तहेप बता रहीं है, लेकिन ज्यादातर मुस्लिम महिला संगठन इसकी तारीफ जरूर कर रहीं हैं.

लेकिन उनका ये भी मानना है कि कई मामलों में पहले भी फैसला मिला है, लेकिन या तो पति ने हर्जाना देने से मना कर दिया या महिलाएं ये सिद्ध नहीं कर पाईं कि उनकी अपनी आमदनी नहीं है. इसके दूसरे पहलू ये भी हैं, जो क़ानूनी जानकार ज्यादातर महिलाओं को सलाह देते हैं कि या तो वो धारा 125 में जाने के बजाए महिलाएं घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपनी करवाई करें, जिसमे एक ही अधिनियम के तहत कई तरह के विकल्प मिल जाते, जैसे घर की मलकियत, हिरासत के आदेश, संरक्षण आदि जो महिलाओं को अदालत के चक्कर काटने से ज्यादा बेहतर साबित होते हैं.

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