नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है और मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं होगा. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अलग-अलग लेकिन समवर्ती फैसले सुनाए.
याचिकाकर्ता मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी पूर्व पत्नी को 10,000 रुपये अंतरिम भरण-पोषण देने के तेलंगाना उच्च न्यायालय के निर्देश पर सवाल उठाया था. याचिकाकर्ता द्वारा दायर अपील में तर्क दिया गया था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती है, क्योंकि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 इस पर लागू नहीं होगा.
मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986, तलाक के दौरान मुस्लिम महिला के लिए भरण-पोषण का दावा करने की प्रक्रिया प्रदान करता है. यह कानून 1985 के शाहबानो फैसले के बाद पेश किया गया था. इस फैसले ने मुस्लिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण लेने की अनुमति दी.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहा है कि धारा 125 सीआरपीसी सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर. विस्तृत आदेश बाद में दिन में अपलोड किया जाएगा.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के मद्देनजर, तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है और उसे उक्त 1986 अधिनियम के प्रावधानों के तहत आगे बढ़ना होगा. पीठ के समक्ष यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 125 की तुलना में 1986 अधिनियम मुस्लिम महिला के लिए अधिक लाभकारी है.