देहरादून (उत्तराखंड): जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पायलट बाबा को आज भू-समाधि दी गई. इस दौरान जूना अखाड़े के सैकड़ों संत और पायलट बाबा के हजारों अनुयायी मौजूद रहे. हर कोई पायलट बाबा को नम आंखों से अंतिम विदाई दे रहा था. पायलट बाबा संत समाज में एक ऐसा नाम था जिसका हर कोई सम्मान करता था. पायलट बाबा देश के चर्चित संतों में गिने जाते थे. हर कोई उनके जीवन से जुड़े घटनाक्रम को जानने के लिए उत्सुक रहता है. कपिल सिंह कैसे बने पायलट बाबा? पायलट बाबा के चर्चित होने का कारण क्या था? उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? ये वे सारे सवाल हैं जो अब हर किसी के मन में हैं. आइये आज इन सवालों के रहस्य से पर्दा उठाते हैं.
कपिल सिंह से कैसे बने पायलट बाबा: संन्यास लेने से पहले पायलट बाबा भारतीय वायु सेना में विंग कमांडर हुआ करते थे. बताया जाता है कि 1957 में एक लड़ाकू विमान पायलट के रूप में उन्हें कमीशन मिला. उसके बाद वायु सेना ने उनके काम को देखकर उन्हें विंग कमांडर से नवाजा. 1962, 1965 और 1971 में हुए युद्ध के दौरान बाबा ने फाइटर पायलट की भूमिका निभाई थी. वहीं, पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 में हुए युद्ध को सफल बनाने में भी उनका फाइटर पायलट के रूप में योगदान रहा है.
हरिद्वार हो या उत्तरकाशी या देश के अन्य आश्रमों में लगी उनकी अलग-अलग तस्वीर यह बताती हैं कि किस तरह से उन्होंने एक लग्जरी जीवन को छोड़कर एक संत का चोला धारण किया. इतना ही नहीं, भारत और पाकिस्तान युद्ध में किए गए उनके कार्यों को भारतीय सेना ने भी उस दौर में सराहा गया.
लग्जरी जीवन को छोड़कर ओढ़ा संत का चोला: पायलट बाबा की कहानी पर आधारित एक पुस्तक है जिसको हूबहू उनके वक्तव्यों के बाद लिखा गया है. 'महायोगी पायलट बाबा' नाम से इस पुस्तक में बताया गया है कि 35 साल में वायु सेना से रिटायर हुए पायलट बाबा ऐसे ही आध्यात्म का राह पर नहीं चल पड़े. साल 1962 में जब पायलट बाबा विमान उड़ा रहे थे तभी विमान में तकनीकी खराबी आ गई. जिसके कारण वह लैंडिंग नहीं कर पाते. इसके बाद वह अपने गुरु हरि बाबा को याद करते हैं. तब उन्हें आभास होता है कि उनके गुरु उनके कॉकपिट में बैठकर उनकी सुरक्षित लैंडिंग करवा रहे हैं. इस घटना के बाद उन्होंने रिटायरमेंट लेने के तुरंत बाद आध्यात्म का रास्ता चुना. साल 1974 में पूरे विधि विधान के साथ पायलट बाबा जूना अखाड़ा के संपर्क में आते हैं. इसके बाद जूना अखाड़ा के साथ उनकी शिक्षा, दीक्षा शुरू होती है. यहीं से उनके संत जीवन की शुरुआत होती है.
पायलट बाबा ने कई बार ली भू-समाधि: पायलट बाबा कोई साधारण संत नहीं थे. यह बात उन्होंने कई बार साबित भी की. इसी कड़ी में पायलट बाबा ने देश और दुनिया में लगभग 100 से अधिक बार भू समाधि लगाई. 1974-1975 में पायलट बाबा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में पहुंचे. यहां उन्हें देखने के लिए आसपास के तमाम गांवों के हजारों लोग इकट्ठा हो गये. तब उन्होंने यहां तीन दिनों तक जमीन के अंदर समाधि लगाई. इस घटना ने सभी को चौंका दिया. इतना ही नहीं कई बार उन्होंने लोगों को खुला चैलेंज भी किया. एक विदेशी एंटरटेनमेंट चैनल के साथ मिलकर सालों पहले उन्होंने समाधि का पूरा का पूरा प्रसारण लाइव किया. जिसकी डॉक्यूमेंट्री आज भी लाखों लोग देख चुके हैं.
लंबे समय तक बाबा के साथ रही केको माता: पायलट बाबा के भक्त न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी फैले हुये हैं. चीन, जापान और यूरोप के कई देशों में उनके लाखों फॉलोवर्स मौजूद हैं. उनकी भक्त केको आइकवा माता लंबे समय तक पायलट बाबा के साथ ही रही. जापान की रहने वाली केको ने भी संन्यास धारण किया था. वो जापान की जानी मानी भू समाधि विशेषज्ञ हैं. पीएम मोदी भी केको से अपने 2014 के जापान दौरे के दौरान मिले थे. पीएम मोदी जापान यात्रा के दौरान उनके आश्रम में गए थे. 1998 के हरिद्वार कुंभ के दौरान उन्होंने हरिद्वार में भू समाधि ली थी. तब भी वो चर्चाओं में आई थीं.
ड्रैगन्स ने बढ़ाई पायलट बाबा की परेशानियां, आश्रमों की भी हुई जांच: पायलट बाबा तब भी चर्चाओं में आए जब साल 2014 में उनके हरिद्वार और उत्तरकाशी निर्माण के दौरान पायलट बाबा ने चीन के ड्रैगन्स की बड़ी-बड़ी मूर्तियां स्थापित की. इतना ही नहीं, हरिद्वार आश्रम के मुख्य कमरे में भी अपने स्थान को पायलट बाबा ने ड्रैगन शैली में बनवाया था. कुंभ मेले या अन्य धार्मिक आयोजनों में इस तरह की तस्वीर और मूर्तियों को देखकर पायलट बाबा का विरोध होने लगा था. इस विरोध के बाद प्रशासन ने उनके उत्तरकाशी आश्रम की जांच की, जिसमें पाया गया कि पायलट बाबा के आश्रम में अवैध निर्माण हो रहा है. ऐसे में उत्तरकाशी प्रशासन ने साल 2014 में उनके आश्रम पर कार्रवाई की थी.
विवादों में भी घिरे पायलट बाबा: बता दें, ड्रैगन चीन का राष्ट्रीय चिन्ह है. ऐसे में पायलट बाबा पर लगातार चीन प्रेमी होने के आरोप लगते रहे. हरिद्वार के वरिष्ठ पत्रकार रजनीकांत शुक्ला बताते हैं कि, पायलट बाबा ने अपने आश्रमों में ड्रैगन की मूर्तियां इसलिए लगवा रखी थीं क्योंकि उनके अधिकतर भक्त जापान, चीन और आसपास के उन देशों के थे जहां पर ड्रैगन की पूजा की जाती थी या ये कहें कि उस संस्कृति को मानते थे. भक्तों को आकर्षित करने और उन्हें ये बताने के लिए कि पायलट बाबा भी उनकी संस्कृति की इज्जत करते हैं उन्होंने कई आश्रमों में इस तरह की मूर्तियां लगा रखी थीं. हालांकि समय-समय पर इसका विरोध भी होता रहा. इसके साथ ही कई बार अलग-अलग विवादों ने भी बाबा की परेशानियां बढ़ाई. उत्तराखंड में ₹1 में कंप्यूटर शिक्षा प्रशिक्षण केंद्र खोलने वाले मामले में भी पायलट बाबा घिरे. साल 2019 में इस मामले में वांछित चल रहे पायलट बाबा ने नैनीताल की सीजेएम कोर्ट में सरेंडर भी किया था.
VVIP पायलट बाबा के करीबी, कुंभ में हमेशा रहे आकर्षण का केंद्र: पायलट बाबा का राजनीतिक हस्तियों और बॉलीवुड के लोगों के साथ बेहद करीबी परिचय था. कभी बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री रही मनीषा कोइराला हो या फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनका आशीर्वाद ले चुके हैं. पायलट बाबा जहां भी जाते थे वो छा जाते थे. ये उनकी एक खासियत थी. यही वजह थी कि कुंभ कार्यक्रमों में पायलट बाबा हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहते थे. विदेशों में भी पायलट बाबा के चर्चे थे. देश विदेश से आने वाले उनके भक्त और भक्तों की पंडाल में शादियां कुंभ में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरती थी.
कौन होगा पायलट बाबा का उत्तराधिकारी: पायलट बाबा के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. हालांकि पायलट बाबा सही समय पर एक ट्रस्ट बना कर गए हैं. उम्मीद यही जताई जा रही है कि यह ट्रस्ट ही आने वाले उत्तराधिकारी का चयन करेगा. जूना अखाड़ा की भूमिका इसमें अब महत्वपूर्ण हो जाती है. जूना अखाड़ा के महासचिव हरि गिरि की मानें तो अखाड़े में और संपत्ति पर किसी तरह का कोई विवाद ना हो इसकी निगरानी अखाड़ा करेगा. पायलट बाबा का उत्तराधिकारी कौन होगा, कौन उनकी विरासत संभालेगा, इसका चुनाव सभी भक्त मिलकर करेंगे.
बता दें कि, 20 अगस्त को पायलट बाबा का मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में देहांत हो गया था. पायलट बाबा देश के बड़े संतों में शामिल होने के साथ ही श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर भी थे. संन्यास से पहले उनका नाम कपिल सिंह था और वो मूल रूप से बिहार के रोहतास निवासी थे. साल 1998 में उनको महामंडलेश्वर पद पर आसीन किया गया. साल 2010 में पायलट बाबा को उज्जैन के प्राचीन जूना अखाड़ा शिवगिरी आश्रम नीलकंठ मंदिर में जूना अखाड़े का पीठाधीश्वर बनाया गया था.
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