अमरावती: बंगाल की खाड़ी में इस साल 28 जून, 15 जुलाई, 19 जुलाई, 3 अगस्त, 29 अगस्त, 5,13 और 23 सितंबर बंगाल की खाड़ी में कम दबाव देखने को मिला. अगर हम कुछ सालों के रिकॉर्ड देखें तो इस साल सितंबर तक कम दबाव ने 8 बार पूर्वी तट को डरा दिया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल का दक्षिण-पश्चिमी मौसम इस बात का सबूत है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण महासागर गर्म हो रहे हैं और बारिश में असामान्य स्थितियां पैदा हो रही हैं.
उन्होंने कहा कि वैसे तो मानसून के दौरान बंगाल की खाड़ी में कम दबाव आम बात है, लेकिन इनकी संख्या में वृद्धि, तेजी से बनना, तीव्र होना, चक्रवातों में बदल जाना और बारिश होना 'असामान्य' हो गया है, जिसको लेकर विश्लेषण किया जा रहा है. बंगाल की खाड़ी में दबाव की संख्या और उनकी तीव्रता बढ़ती जा रही है. जैसे-जैसे अगली भारी बारिश हो रही है, तटीय क्षेत्र ही नहीं, बल्कि मध्य और उत्तरी भारत में भी आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा है. यहां के हालात हाल ही में विजयवाड़ा और खम्मम इलाकों में आई बाढ़ का कारण भी हैं. स्वाभाविक रूप से बंगाल की खाड़ी में कम दबाव है.
आठ कम दबाव वाले क्षेत्र
वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बार उन पर ला नीनो का प्रभाव है. पश्चिमी प्रशांत महासागर में बनने वाले चक्रवात वियतनाम, कंबोडिया और थाईलैंड जैसे पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से गुजरते हुए कमजोर पड़ रहे हैं और बंगाल की खाड़ी में तेज हो रहे हैं. इसके साथ ही, इस मौसम में आठ कम दबाव वाले क्षेत्र पहले ही बन चुके हैं. उनमें से पांच एयर कैनन बन गए और तेलुगु राज्यों पर उनका गंभीर असर हुआ.
कई राज्यों में भारी बारिश
ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र की सतह का तापमान (SST) बढ़ रहा है और लगातार कम दबाव बन रहे हैं. तट के पास पहुंचने पर इसकी तीव्रता बढ़ जाती है. दूसरी ओर साप्ताहिक कम दबाव के आने से मिट्टी की नमी बढ़ रही है. इस कारण कम दबाव समुद्र तट को पार करके जमीन पर चले जाने पर भी कमजोर नहीं हुआ. हाल ही में बंगाल की खाड़ी में बने वायु द्रव्यमान ने आर्द्र मौसम के कारण गुजरात और राजस्थान जैसे देश के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी हिस्सों की यात्रा की. इस दौरान ओडिशा, झारखंड, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, गुजरात और अन्य राज्यों में भारी बारिश हुई.
पिछले दस सालों में कम दबाव वाले तूफानों की संख्या में कमी आई है. हालांकि चक्रवात खुद बंद हो गए हैं, लेकिन मौसम के संकेतक स्पष्ट हैं कि उनकी तीव्रता बढ़ गई है.अतीत में, अगर अंडमान द्वीप समूह के पास चक्रवात बनते थे, तो वे पश्चिम की ओर नेल्लोर और उत्तर-पश्चिम की ओर कोलकाता की ओर बढ़ते थे. पिछले कुछ सालों में उनका मार्ग बदलता रहा है. जैसे-जैसे तट कट रहे हैं, वैसे-वैसे टाइफून के तट पर आने वाले क्षेत्र बदल रहे हैं, जो तूफान तट की ओर बढ़ते दिखते हैं, वे समुद्र में दिशा बदल रहे हैं.
भविष्य में तूफानों की फ्रीक्वेंसी बढ़ सकती
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग और तटीय कटाव के कारण भविष्य में तूफानों की फ्रीक्वेंसी बढ़ सकती है. अनुमान है कि अप्रैल-जुलाई और अक्टूबर-नवंबर के मौसम में चक्रवात अधिक आ सकते हैं, खासकर जून और जुलाई के महीनों में बारिश के मौसम की शुरुआत में.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के रिटायर महानिदेशक डॉ केजे रमेश ने कहा, "प्रशांत महासागर में बनने वाले चक्रवातों के प्रभाव में बंगाल की खाड़ी में तट को पार करते ही एक दबाव बनता है. अतीत में जब 'सामान्य से अधिक' स्थितियां थीं, तब भी इसी तरह की बारिश हुई थी. इसके परिणामस्वरूप, मानसून सक्रिय हो गया है. हाल ही में बारिश भी भरपूर हुई है. इस बार मानसून की विदाई में देरी होने से राज्य में अधिक बारिश होने की संभावना है."
वरिष्ठ मौसम विज्ञानी डॉ तल्लाप्रगदा विजय ने कहा, "तूफानों की दिशा का अनुमान लगाना कठिन होता जा रहा है. हाल ही में दक्षिण चीन सागर में बना चक्रवात यागी म्यांमार के पास बंगाल की खाड़ी में चक्रवात के रूप में मजबूत हो गया है. इसके परिणामस्वरूप उत्तर भारत में भारी बारिश हुई. यह उम्मीद से परे है. फिलहाल जापान, भारत और अमेरिका प्रशांत, हिंद और अटलांटिक महासागरों में स्थिति पर नजर रख रहे हैं. इन देशों को मिलकर इनकी जांच करनी चाहिए."
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