पुरोला:कौन कहता है कि आसमां में सुराग हो नहीं होता, इक पत्थर को तबीयत से उछालो यारों. इस कहावत को मोरी विकासखंड के सीमांत गेंचवांण गांव के प्रवीण रांगड़ ने सच कर दिखाया है. प्रवीण रांगड़ ने मुफलिसी भरी जिंदगी में भी हौसले के सहारे ऐसा मुकाम हासिल किया जो आज हर किसी के लिए नजीर है. प्रवीण अपनी मेहनत और लगन से साहसिक खेलों के लिए विदेशों में एक रोल मॉडल के रूप में उभर कर सामने आए हैं. आज इनके जज्बे को देश ही नहीं विदेशों में भी खूब सराहा जा रहा है. बावजूद इसके अपने सूबे में प्रवीण का हाल ऐसा है जैसे घर का जोगी जोगड़ा आन गांव का सिद्ध.
सीमांत मोरी विकासखंड के गेंचवांण गांव के रहने वाले प्रवीण रांगड़ ने फिजी आइलैंड में हुए अंतरराष्ट्रीय ईको चैलेंज रेस में प्रतिभाग किया. विषम परिस्थितियों में शूट किये गये इस कार्यक्रम का प्रसारण 14 सितंबर को होगा. इसमें प्रवीण के साथ एवरेस्ट विजेता रहीं ताशी और नुंग्शी भी नजर आएंगी. एशिया महाद्वीप से खुंखरी वॉरियर्स टीम के यह तीनों सदस्य उत्तराखंड से ही हैं. इस टीम में प्रवीण रांगड़ एक ऐसा नाम है जिसने अपने बूते ही सफलताओं का एवरेस्ट फतह किया. बचपन से लेकर अबतक अभावों में जिंदगी जी रहे प्रवीण ने जीवन में कभी हार नहीं मानी.
किरेन रिजिजू के साथ प्रवीण रांगड़ एक छोटे से किसान घर पैदा हुए प्रवीण ने छोटी उम्र से ही जिम्मेदारियां संभालते हुए रिवर राफ्टिंग, माउंट क्लाइंबिंग, साइकिलिंग, क्याकिंग, वाटर स्कीइंग में महारत हासिल की, जिसके बाद उन्होंने दुनिया की सबसे खतरनाक ईको चैलेंज रेस में भाग लिया. वह एशिया के एकमात्र पुरुष खिलाड़ी हैं जो अभी तक दुनिया की इस खतरनाक रेस में हिस्सा ले चुके हैं. देश-दुनिया में नाम कमाने के बाद भी आज प्रवीण अपने ही राज्य में गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं. जबकि उनके अदम्य साहस का लोहा मैन वर्सेस वाइल्ड शो के होस्ट बेयर ग्रिल्स भी मानते हैं.
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प्रवीण अपने घर में सबसे छोटे हैं. उनकी तीन बड़ी बहनें हैं. घर की जिम्मेदारी की वजह से प्रवीण हाई स्कूल भी पास नहीं कर पाये थे कि घर की जिम्मेदारियां उन पर आ गईं. जिसे निभाने के लिए वह नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंट ट्रेनिंग उत्तरकाशी में गेट कीपर की नौकरी करने लगे. यहां से उनका रुझान साहसिक खेलों की तरफ हुआ. देखते ही देखते प्रवीण ने भी साहसिक खेलों को अपनी मंजिल बना लिया. अपने सपने को पाने के लिए प्रवीण दिन रात मेहनत करते रहे, जिसका नतीजा रहा कि उन्होंने सभी साहसिक खेलों में महारत हासिल की. फिर उन्हें फिजी आइलैंड में हुए अंतरराष्ट्रीय ईको चैलेंज में प्रतिभाग करने का मौका मिला, जिसमें उनके साथ एवरेस्ट फतह कर चुकी उत्तराखंड की दो बहनें ताशी और नुंग्शी भी थीं.
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ईटीवी भारत से अपने सपनों के बारे में बात करते हुए प्रवीण बताते हैं कि वे बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट फतह करना चाहते हैं. इतना ही नहीं, वो वहां से स्कीइंग करते हुए नीचे भी उतरना चाहते हैं. देश दुनिया में नाम कमाने वाले प्रवीण को प्रदेश में शायद की कोई जानता होगा. सरकारों के उदासीन रवैये के कारण आज ये अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी प्रदेश में ही नाम का मोहताज है. राज्य सरकार के खेल मंत्रालय ने इस साहसी युवक के लिए आजतक कुछ भी नहीं किया. जिसके कारण प्रवीण संसाधनों के अभाव में आज भी अपना कर्म करने में लगे हैं.
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फिलहाल, प्रवीण ऋषिकेश में वॉटर राफ्टिंग कैंप चलाकर कई बेरोजगार युवाओं को साहसिक खेलों की नि:शुल्क ट्रेनिंग दे रहे हैं. सरकारों के नकारात्मक रवैये और सभी चीजों को दरकिनार करते हुए प्रवीण लगातार पहाड़ के युवाओं को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. ऐसे में सरकारों को चाहिए कि प्रवीण जैसे युवाओं को प्रदेश में साहसिक खेलों के रोल मॉडल के रूप में सामने लाकर साहसिक खेलों को बढ़ावा दिया जाए.