उत्तरकाशी:पर्यावरण संरक्षण के नाम पर देश में करोड़ों का बजट खर्च होता है. कई सेमिनार और गोष्ठियां आयोजित होती हैं. जगह-जगह हरेला पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन ज्यादातर कार्यक्रम फोटोशूट और सोशल मीडिया तक ही सिमट कर रह जाते हैं. ऐसे में उत्तरकाशी के 'पर्यावरण प्रेमी' प्रताप पोखरियाल ने जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा मॉडल पेश किया है. ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट..
साल 2003 के भूस्खलन में तबाह हो चुका वरुणावत पर्वत आज मिश्रित वन से भरा पड़ा है. जहां आपको सैकड़ों औषधीय पादप, हिमालयी वनस्पति और मैदानी क्षेत्रों की पौधे की प्रजातियां मिल जाएंगी. इसका श्रेय जाता है उत्तरकाशी के 63 वर्षीय 'वृक्ष मानव' प्रताप पोखरियाल को जो करीब 47 वर्षों से वनों को आबाद कर रहे हैं.
प्रताप पोखरियाल बताते हैं कि उन्होंने पिता श्याम पोखरियाल और मां रमावती देवी की प्रेरणा से साल 1973 में अपने पैतृक गांव डुंडा ब्लॉक के भेंत गांव में वनों के सरक्षंण का कार्य शुरू किया था. उन्होंने करीब 142 हेक्टयर भूमि पर 56 प्रजाति के वृक्ष लगाए. आज भेंत गांव में प्रताप पोखरियाल के लगाए गए जंगल ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं.
पोखरियाल ने बताया कि उन्होंने साल 1980 में उत्तरकाशी बस अड्डे पर मोटर मैकेनिक की दुकान खोली. लेकिन पर्यावरण से प्रेम होने के चलते उन्होंने यह दुकान जल्द ही बंद कर दी और वरुणावत पर्वत की तलहटी में जंगल बसाने निकल पड़े. लेकिन यह मेहनत साल 2003 में वरुणावत पर्वत पर हुए भूस्खलन में तबाह हो गई. भूस्खलन से हुई तबाही के बाद भी प्रताप पोखरियाल ने हार नहीं मानी. दोबारा मेहनत की और पिता के नाम पर करीब 40 हेक्टेयर भूमि पर 200 प्रजाति के पौधे फिर लगाए. पिता के नाम पर श्याम स्मृति मिश्रित वन शुरू किया.