उत्तरकाशी: पर्वतारोहण के क्षेत्र में बेहद कम समय में नाम कमाने वाली 24 वर्षीय एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल की मौत (Mountaineer Savita Kanswal dies) की खबर से हर कोई स्तब्ध है. परिवार में चार बहनों में सबसे छोटी सविता बूढ़े मां-बाप का सबसे बड़ा सहारा थीं. वहीं, शुक्रवार को जब जिला अस्पताल में सविता का शव पहुंचा तो हर किसी की आंखें नम थी. तो दूसरी ओर सविता के बूढ़े मां-बाप बेसुध पड़े थे.
बता दें कि सविता ने जब 15 दिन के भीतर इसी साल मई में एवरेस्ट फतह किया था, तो मां ने फक्र से कहा था कि, 'बेटी हो तो ऐसी'.मां ने कहा था कि 'पहले तो मैं बोलती थी कि बहुत सारी बेटी हो गई, लेकिन अब तो मैं बहुत खुश हूं'. आज घटना के चौथे दिन जब मां को गांव में किसी ने सविता के दुनिया छोड़ने की खबर दी, तो मां का कलेजा सीने से उतर गया. बेटी के लिए कहे वो शब्द मां कमलेश्वरी के दिल में ही रह गए, जिस पर उसने कभी खुशियों की आस बांधी थी. वहीं, पिता राधेश्याम कंसवाल भी बेटी के जाने के गम में आंसुओं के सैलाब से भर गए.
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शुक्रवार को जब जिला अस्पताल में सविता का शव पहुंचा तो एक तरफ ग्रामीण और जानने वालों की भीड़ नम आंखों से उन्हें श्रद्धाजंलि दे रही थी, दूसरी तरफ दूर लोंथरू गांव में बूढ़े मां-बाप सविता की यादों को सीने से लगाकर विलाप कर रहे थे. उस बेटी के लिए रो रहे थे, जिसने पहाड़ों के बूते नाम कमाया और फिर सदा के लिए उसी हिमालय की गोद में सो गईं. जिसने रोमांच और साहस की दुनिया में न सिर्फ नाम कमाया बल्कि मां-बाप को बेटी होने का गौरव भी महसूस कराया.