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नमो देव्यै: देवी का ऐसा मंदिर, जहां भक्त की हर मनोकामना होती है पूरी - उत्तराखंड

शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन जानिए, देवी के ऐसे मंदिर के बारे में, जहां मान्यता के अनुसार, देवी सती के सिर का हिस्सा गिरा था. यहां देवी मां अपने भक्त को कभी निराश नहीं करती.

सुरकंडा देवी का मंदिर

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Published : Oct 6, 2019, 6:37 AM IST

टिहरी:सुरकंडा देवी एक हिन्दूओं का प्राचीन मंदिर है. ये मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक मानी जाती है. सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्ति पीठ में से माना गया है. सुरकंडा देवी मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है. ये मंदिर टिहरी जिले के यूलिसाल गांव में स्थित है. सुदकंडा देवी मंदिर धनाल्टी से करीब 7 किलोमीटर और चम्बा से 22 किलोमीटर दूरी पर है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को कद्दूखाल से 3 किलोमीटर के पैदल यात्रा करनी पड़ती है.


सुरकंडा देवी मंदिर घने जंगलों से घिरा हुआ है. इस स्थान से उत्तर दिशा में हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है. ये मंदिर साल में ज्यादातर समय कोहरे से ढका रहता है. मंदिर का पुनः निर्माण किया गया है. वास्तविक मंदिर की स्थापना के समय का लिखित उल्लेख नहीं मिलता. लेकिन ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर काफी प्राचीन है.

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सुरकंडा देवी का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का संबंध भगवान शिव की पत्नी देवी सती से जुड़ा है. सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड में प्राण त्याग दिये थे. तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहे थे. इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया था. ऐसा माना जाता है सती के शरीर का सिर का हिस्सा इस स्थान पर गिरा. जहां मंदिर की स्थापना की गई. सती के सिर का हिस्सा यहां गिरने से इस मंदिर को सुरकंडा देवी मंदिर कहा जाता है.

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सुरकंडा देवी मंदिर में गंगा दशहरा का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है, जो हर साल मई और जून के बीच आता है. हालांकि नवरात्री का त्योहार भी विशेष रूप से मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है भक्त माता के मंदिर में पहुंचकर वर मांगते हैं, जिसे देवी मां अवश्य पूरा करती है. मन्नत पूरी होने पर यहां देवी को छत्र चढ़ाने की परंपरा है.

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