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उत्तराखंड में यहां भगवान श्रीकृष्ण ने की थी तपस्या, कान्हा के आदेश पर कालिया नाग ने भी किया था वास

Janmashtami 2023 उत्तराखंड को वैसे तो भोलेनाथ की नगरी कहा जाता है. यहां कण-कण में देवी देवाताओं का वास है. उत्तराखंड में भगवान कृष्ण से जुड़ी भी कई ऐसी कहानियां हैं, जिनमें से एक के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. उत्तराखंड में एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान कृष्ण ने लंबे समय तक तपस्या की थी.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 7, 2023, 1:21 PM IST

Updated : Sep 7, 2023, 6:51 PM IST

उत्तराखंड में यहां भगवान श्रीकृष्ण ने की थी तपस्या

टिहरी: देशभर में आज जन्माष्टमी की धूम है. सुबह से ही भक्त मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण के दर्शन कर रहे हैं. वहीं, आज जन्माष्टमी के मौके पर ईटीवी भारत आपको उत्तराखंड में स्थिति भगवान कृष्ण के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहा है, जहां पर दर्शन मात्र करने से भक्तों से सारे कष्ट दूर होते जाते हैं ऐसी मान्यता है. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था. यहीं पर भगवान कृष्ण ने तपस्या की थी.

सेम मुखेम में भगवान श्री कृष्ण का मंदिर.

हर साल यहा आते हैं लाखों श्रद्धालु:भगवान कृष्ण के जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं वो उत्तराखंड के टिहरी जिले के प्रतापनगर इलाके में सेम मुखेम के जंगल में स्थित है. सेम मुखेम को भगवान कृष्ण की बाल क्रीड़ा स्थल के रूप में भी जाना जाता है. सेम मुखेम में स्थित इस मंदिर में हर साल लाखों की संख्या में भक्त आते हैं. मान्यता है कि जो भी यहां सच्चे मन से भगवान कृष्ण की शरण में आता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. यहां के ग्रामीण स्थानीय देवता देव डोलिया को भगवान श्री कृष्णा के दिन दर्शन कराने के लिए ले जाते हैं.
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साधु के भेष में रमोला से मांगी थी दो गज जमीन: दंतकथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण इस क्षेत्र में आए थे और यहां भगवान श्री कृष्ण ने राजा गंगू रमोला से साधु के भेष में दो गज जमीन मांगी थी. लेकिन राजा गंगू रमोला ने अपनी हठधर्मिता के कारण भगवान श्री कृष्ण दो गज जमीन देने से भी मना कर दिया था. राजा गंगू रमोला के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रमोला के भैंस, बकरी और पशुओं को पत्थर बना दिया था. इसका प्रमाण आज भी आज यहां जिंदा है.

भगवान श्री कृष्ण के आदेश पर कालिया नाग ने किया था सेम मुखेम में वास.

रमोला ने भगवान कृष्ण को नहीं दी थी भिक्षा: बताया जाता है कि रमोला ने जब भगवान श्री कृष्ण को भिक्षा नहीं दी थी तो उन्होंने रमोला को श्राप दिया था कि जिस तरह से मैं तेरे से भीख मांग रहा हूं, उसी तरह तेरे कुटुंब का हर व्यक्ति भी भीख मांगेगा. कहा जाता है कि इसी श्राप की वजह से सेम मुखेम के लोगों को साल में एक बार भीख मांगने जाना पड़ता है, चाहे वह कितना बड़ा करोड़पति ही क्यों ना हो.
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रमोला दंपति को दिया था वरदान: बताया जा रहा है कि इन सबके बावजूद श्री कृष्ण ने राजा गंगू रमोला की पत्नी के सपने में आकर कहा कि वो अपने पति को समझाए की वह हटधर्मिता न करे, वरना बड़ा अनर्थ हो जाएगा. इसके बाद पत्नी ने रमोला को समझाया और रमोला ने अपनी गलती मानते हुए भगवान कृष्ण से माफी मांगी. तब भगवान कृष्ण ने राजा गंगू रमोला की पत्नी को वरदान मांगने के लिए कहा था.

उत्तराखंड में यहां भगवान श्री कृष्ण ने की थी तपस्या

राजा गंगू रमोला की कोई औलाद नहीं थी तो उन्होंने मां बनने का वरदान मांगा था. भगवान कृष्ण ने रमोला दंपति को पुत्र रत्न का वरदान दिया था, जिसके बाद रमोला के दो पुत्र बिद्ववा और सिंधवा हुए, जिन्होंने आगे चलकर काफी नाम कमाया था.

कालिया नाग भागकर यहीं आया था: सेम मुखेम से भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की कहानी भी जुड़ी है. दंतकथाओं के अनुसार अनुसार बाल रूप में जब भगवान श्री कृष्ण खेल रहे थे, तभी उनकी गेंद यमुना नदी में गिर गई थी और यमुना नदी में कालिया नाग निवास करता था. जब भगवान कृष्ण गेंद को लेने के लिए नदी में गए तो कालिया नाग ने उन पर हमला कर दिया, लेकिन भगवान कृष्ण कालिया नाग पर ही भारी पड़ गए थे. इसके बाद भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को सेम मुखेम जाने को कहा था.
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रमोलागाढ़ी गांव में दिए कालिया नाग को दर्शन: कहा जाता है कि जाते समय कालिया नाग ने भगवान कृष्ण से विनती की थी कि वो उन्हें सेम मुखेम में दर्शन दें. बताया जाता है कि अपने अंत समय में भगवान कृष्ण ने द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोलागाढ़ी गांव में आकर कालिया नाग को अपने दर्शन दिए थे और वहीं पत्थर में स्थापित हो गए थे, जहां आज भगवान कृष्ण का भव्य मंदिर है.

कृष्ण भगवान की तपस्थली: सेम मुखेम के जंगल को भगवान श्री कृष्ण की तपस्थली भी कहा जाता है. मान्यता है कि टिहरी के सेम मुखेम की ऊंची चोटी पर जंगलों के बीच भगवान श्री कृष्ण ने तपस्या की थी. इस स्थान के दर्शन करने के लिए दुनिया भर से कान्हा के भक्त आते हैं.

यहां के पुजारी बताते हैं कि पुराणों और दंत कथाओं में वर्णन है कि जो भी भक्त यहां आते हैं, उनके सभी रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं. पुजारी ने बताया कि जिस व्यक्ति की कुंडली मं कालसर्प योग होता है, वो व्यक्ति चांदी के बने नाग-नागिन का जोड़ा मंदिर में चढ़ाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से कालसर्प के दोष से मुक्ति मिलती है और वो कभी अकाल मृत्यु नहीं मरता.

यहां मौजूद है रहस्यमय पत्थर: भगवान श्री कृष्ण का मंदिर समुद्र तल से करीब सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस मंदिर में एक रहस्यमयी पत्थर है. इस पत्थर की खासियत ये है कि आप यदि पूरी ताकत लगाकर भी इसे हिलाने का प्रयास करेंगे तो वो नाम मात्र भी नहीं हिलेगा, लेकिन यदि आप एक उंगली से पत्थर को धक्का देंगे तो पत्थर हिलने लगता है. ऐसी ही कई कहानियां इस मंदिर से जुड़ी हुई हैं.

इस मंदिर में एक रहस्यमयी पत्थर है

कैसे पहुंचें मंदिर: देश के किसी भी कोने से आप इस मंदिर में आसानी से पहुंचे सकते हैं. भगवान कृष्ण के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल से पहले छोटे से कस्बे गोडिलाय तक आना होगा. यहां से एक रास्ता नई टिहरी और दूसरा लम्बगांव के लिए जाता है. सेम जाने के मुख्य पड़ाव लम्बगांव है. सड़क सीधे मंदिर तक नहीं जाती है. आपको करीब ढाई किमी पैदल चलना होगा. मुखेम सेम मंदिर के पुजारियों का गांव है, जो राजा गंगू रमोला का गांव है. उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था.

Last Updated : Sep 7, 2023, 6:51 PM IST

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