रुद्रप्रयाग: महाशिवरात्री के अवसर पर सूर्यप्रयाग में दशज्यूला क्षेत्र की आराध्य मां क्वारिंका चंडिका की दुर्लभ समुद्र मंथन परंपरा का आयोजन किया गया. मां 98 साल बाद छह माह की देवरा यात्रा पर निकली हैं. इस मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने मां क्वारिंका का आशीर्वाद लिया.
सूर्यप्रयाग में समुद्र मंथन कार्यक्रम में पौराणिक मान्यता के अनुसार भट्टवाड़ी के भट्ट ब्राह्मणों आचार्य श्यामनंदन भट्ट, बृजमोहन भट्ट, अनुराग भट्ट, मनीष भट्ट द्वारा विशेष ताम्रपात्र में दूध-दही, शहद व पंचामृत तैयार कर मंथन की प्रक्रिया शुरू की गई. जिसमें एक ओर असुर और दूसरी ओर देवगणों द्वारा समुद्र मंथन परंपरा का निर्वहन किया गया. इस दौरान समुद्र मंथन में निकले 14 रत्नों कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, उच्चश्रवा घोड़ा, कौस्तुक मणि, पारिजात वृक्ष, रंभा अप्सरा, लक्ष्मी, वरूण, अमृत कलश, विष, शंख, वीणा और धनुष का देवगणों और दैत्यों में प्रतीक स्वरूप बंटवारा किया गया. मंथन से निकले अमृत के प्रतीक पानी को समुद्र मंथन देखने आए हजारों श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित किया गया.
समुद्र मंथन परंपरा आयोजन करने के पीछे मान्यता है कि देवी अपने मूल मंदिर में प्रवेश से पूर्व अमृत रत्न प्राप्त कर यात्रा में साथ रहे ऐर्वाला पश्वाओं, ध्याणियों व भक्तों को आरोग्यता व कष्टों से मुक्त करती हैं.