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रुद्रप्रयाग की मशरूम गर्ल बबीता, बीमार पिता की मदद को थामा हल, बंजर जमीन पर उगाया 'सोना'

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Published : Oct 28, 2021, 5:15 PM IST

Updated : Oct 28, 2021, 7:29 PM IST

रुद्रप्रयाग में जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर स्थित सौड़ उमरेला गांव की रहने वाली बबीता रावत ने क्षेत्र के युवाओं के लिए मिसाल पेश की है. 20 साल की उम्र से बबीता रावत ने गांव में खेती शुरू की और आज बबीता 15 से 20 हजार रुपये महीने की कमा रही हैं. बबीता के इस प्रयास के लिए सरकार उनको 'तीलू रौतेली पुरस्कार' से सम्मानित कर चुकी है.

Young farmer Babita Rawat
Young farmer Babita Rawat

रुद्रप्रयाग:कहते हैं अगर मन में सच्ची लगन और हौसला हो तो, मुश्किल से मुश्किल काम भी आसान हो जाता है. यह सच कर दिखाया है रुद्रप्रयाग जिले से सटे गांव सौड़ उमरेला की बबीता रावत ने. छोटी सी उम्र में बबीता रावत ने अपना और परिवार के लालन-पालन को लेकर खेती-बाड़ी का कार्य शुरू किया. उनकी यह मेहनत रंग लाई तो गांव की अन्य महिलाओं ने भी देखा-देखी साग-सब्जी उगाने का काम शुरू किया. जिसकी वजह से गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रहीं हैं और बबीता पूरे जिले की महिलाओं के लिए नजीर बन गई हैं.

जिला मुख्यालय से 5 किमी. की दूरी पर स्थित सौड़ उमरेला में पानी की गंभीर समस्या है, बावजूद इसके बबीता ने सब्जियां उगाने का फैसला किया. उन्होंने साल 2017 में खेती का कार्य शुरू किया और सबसे पहले अपने पुराने मकान में मशरूम का उत्पादन शुरू किया. इसके लिए उन्होंने ट्रेनिंग भी ली. ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने जब इसका उत्पादन शुरू किया तो उन्हें दो माह में ही सफलता हासिल हो गई. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

बबीता ने बीमार पिता की मदद को थामा हल.

15 से 20 हजार की कर रहीं कमाई: बबीता रावत मशरूम उत्पादन के साथ ही गांव में तरह-तरह की सब्जियों का उत्पादन कर रही हैं. साथ ही दुग्ध उत्पादन में भी वह अच्छा कार्य कर रही हैं. वह महीने में 15 से 20 हजार कमा रहीं हैं, जिससे उनके घर का गुजर-बसर हो रहा है. बबीता 7 भाई बहनों में पांचवें नंबर पर हैं. उनकी चार बहनों की शादी हो चुकी है, जबकि एक बहन और एक भाई पढ़ाई करते हैं. बबीता की पढ़ाई पूरी हो चुकी है और वह अपने गांव में खेती का कार्य कर अपने परिवार को चला रही हैं.

आज बबीता रावत के संघर्ष और उनकी कहानी पहाड़ की महिलाओं और युवतियों के लिए प्रेरणा बन गई है. आर्थिक तंगी के बाद भी बबीता ने हार नहीं मानी और संघर्षों के बलबूते जिंदगी की राह आसान की. बुलंद हौसलों से बबिता ने अपना मुकाम खुद हासिल किया है. बबीता के पास इतने खेत भी नहीं हैं, ऐसे में बबीता ने खेत को किराए पर ले रखा है.

पिछले साल 2020 में तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित बबीता रावत के पिता सुरेंद्र सिंह रावत की तबियत खराब ही रहती है. बबीता ने 20 साल की उम्र से खेती का कार्य शुरू किया. स्कूल के दिनों में बबीता हर रोज सुबह सबेरे अपने खेतों में काम करने के बाद 5 किमी दूर पैदल राजकीय इंटर कॉलेज रुद्रप्रयाग में पढ़ाई करने के लिए जाती थीं और साथ में दूध भी बेचती थीं. जिससे परिवार का खर्चा चलता था. धीरे-धीरे बबीता ने सब्जियों का उत्पादन भी शुरू किया और पिछले तीन-चार सालों से उपलब्ध सीमित संसाधनों से वह मशरूम उत्पादन का भी कार्य कर रही हैं, जिससे बबीता को अच्छी आमदनी मिल रही है.

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रात-दिन मेहनत करके बबीता ने पूरे परिवार की जिम्मेदारी, पिताजी की दवाई सहित खुद की एमए (राजकीय महाविद्यालय, अगस्त्यमुनि) तक की पढ़ाई का खर्चा भी वहन किया और अपनी चार बहनों की शादियां भी संपन्न करवाई. बबीता ने अपनी बंजर भूमि में खुद हल चलाकर उसे उपजाऊ बनाया और उसमें सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन के जरिए स्वरोजगार मॉडल को हकीकत में बदला और इससे बबिता को अच्छी खासी आमदनी हो जाती है.

बबीता अब गांव-गांव जाकर महिलाओं को स्वरोजगार के प्रति जागरूक करती हैं. उनसे प्रेरित होकर आस-पास की महिलाएं अपने घर में ही व्यवसायिक खेती करने लगी हैं, जिससे वह आमदनी कमा रही हैं. उनके कार्यो को देखते हुए राज्य सरकार ने भी प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार से बबीता रावत को सम्मानित किया है. जबकि जिला स्तर पर भी उन्हें कई बार सम्मानित किया जा चुका है.

बबीता की बहन प्रिया बताती हैं कि छोटी सी उम्र से बबीबा ने घर का खर्चा उठाना शुरू कर दिया. सुबह वह जंगल में घास लेने जाती तो घास लाने के बाद स्कूल के लिए निकल जाती और साथ में दूध भी बेचने के लिए ले जाती. इसके बाद कॉलेज के दिनों में भी बबीता काफी मेहनती रहिए. उसने पढ़ाई के साथ ही मशरूम, दुग्ध और साग-सब्जी का कार्य शुरू किया और अपनी मेहनत की बदौलत वह महीना 15 से 20 हजार कमा रही हैं.

Last Updated : Oct 28, 2021, 7:29 PM IST

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