पिथौरागढ़:उत्तराखंड की सबसे पिछड़ी और कम जनसंख्या वाली वनराजी जनजाति पर कोरोना काल में संकट के बादल मंडराने लगे हैं. आलम ये है कि वनराजी समाज के लोगों को ना तो वेक्सीनेशन की कोई जानकारी है और न ही इन्हें कोरोना टीकाकरण अभियान का कोई लाभ मिल पाया है. गौरतलब है कि वनराजी जनजाति के लोग उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के दूरस्थ जंगलों में स्थित गांवों में निवास करते हैं. इसके अलावा नेपाल के पश्चिम अंचल में भी इनके कुछ गांव बसे हैं. वनराजियों की सबसे अधिक आबादी पिथौरागढ़ जिले में है. यहां इनकी कुल आबादी 700 के करीब है. जिले के डीडीहाट, धारचूला और कनालीछीना विकासखण्ड में वनराजियों के 9 गांव हैं. जहां वनराजियों के कुल 202 परिवार निवास करते हैं. ये सभी परिवार गरीबी के स्तर से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं.
डिजिटल क्रांति के दौर में वनराजी जनजाति के लोग आज भी मुख्यधारा से कोसों दूर हैं. ये आज भी आदिम युग सा जीवन जीने को मजबूर हैं. दूर दराज के जंगलों में निवास करने के कारण सरकारी योजनाओं के लाभ से भी ये वंचित रहते हैं. कोरोना काल में वनराजी जनजाति खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो गई है. बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए किसी भी परिवार के पास स्मार्टफोन तक नहीं हैं.
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चिफलतरा गांव में 65 वर्षीय देवकी देवी पति के निधन के बाद से ही अकेले एक झोपड़ी में रहती है. उनका कहना है कि दो साल पूर्व पति का निधन हो गया था, मगर अभी तक उनकी पेंशन नहीं लगी है. आधार कार्ड नहीं होने के कारण राशन कार्ड भी ऑनलाइन नहीं हुआ है. मेहनत मजदूरी कर किसी तरह अपना पेट पाल रही हैं.