उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

उत्तराखंड: भगवान की शरण में विज्ञान, जानें NH-58 के लिए पूजा का रहस्य

उत्तराखंड में एक दिलचस्प वाकया हुआ है. इंजीनियरिंग के उस्ताद थक-हारकर भगवान की शरण में पहुंचे हैं. लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता ने बाकायदा धारी देवी माता के दरबार में हाजिरी लगाई है. क्या है ये मामला पढ़िए ये पूरी खबर.

जब इंजीनियर हुए लाचार तो पहुंचे मां धारी देवी के दरबार
NH-58 का सच

By

Published : Jun 2, 2021, 3:45 PM IST

Updated : Jun 3, 2021, 7:35 PM IST

श्रीनगर:उत्तराखंड में इन दिनों बारिश, भूस्खलन और बादल फटने से जगह-जगह तबाही के साथ सड़कें भी क्षतिग्रस्त हो रही हैं. बारिश और भूस्खलन का सबसे ज्यादा प्रभाव उत्तराखंड के सबसे ज्यादा व्यस्त और महत्वपूर्ण ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ रहा है. यहां अनेक स्थानों पर बार-बार लैंडस्लाइड होने से इंजीनियर भी हार मान चुके हैं. थक-हारकर इंजीनियर ने मां धारी देवी की शरण ली है.

जब इंजीनियर हुए लाचार तो पहुंचे मां धारी देवी के दरबार.

ये है पूरा मामला

लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता बीएल मिश्रा धारी देवी मंदिर पहुंचे. उन्होंने वहां पूजा-अर्चना की. मां धारी देवी को प्रसाद चढ़ाया. दरअसल नरकोटा में कई दिन तक पहाड़ी से मलबा आकर सड़क बंद हो जा रही थी. मजदूर जैसे ही सफाई करते फिर से मलबा आकर सड़क ब्लॉक कर देता. इसके बाद इंजीनियर साहब को मां धारी देवी की ही याद आई. इंजीनियरों के भगवान की शरण में जाने का ये पहला मामला नहीं है.

देवी की शरण में इंजीनियर.

तोता घाटी की कटिंग के दौरान भी आई थी बाधा

तोता घाटी में लंबे समय तक सड़क की कटिंग का काम चला. यहां बार-बार पहाड़ी से मलबा आ जाता था. मजदूरों की सारी मेहनत बेकार हो जाती थी. दिन भर मजदूर काम करते. रात में पहाड़ी से फिर मलबा आ जाता. सुबह काम आगे बढ़ने की बजाय पूरा दिन मलबा साफ करने में ही बीत जाता था. इससे परेशान होकर लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों ने चमराड़ा देवी की पूजा-अर्चना की थी.

बीआरओ ने ली थी भगवान शिव की शरण

कई साल पहले सिरोबगड़ पर ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग भूस्खलन के कारण नासूर बन गया था. बीआरओ इंजीनियरों ने भी हार मानकर भगवान शिव की शरण ली थी. भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी.

नरकोटा में जारी है मलबा हटाने का काम

बारिश से बार-बार हो रहे भूस्खलन से परेशान इंजीनियर साहब मां धारी देवी की शरण में गए तो विभाग के कर्मी मलबा हटाने के काम में जुटे हुए हैं. यहां करीब 30 मीटर लंबा हिस्सा नदी में समा गया. सड़क खोलने में कई दिन लग सकते हैं. इस कारण रुद्रप्रयाग से आने वाले वाहनों को तिलवाड़ा-घनसाली-कीर्तिनगर से ऋषिकेश भेजा जा रहा है.

लैंडस्लाइड ने जगा दी भक्ति

ये भी पढ़िए: रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर शुरू होगा पहाड़ी कटान का कार्य

लोक निर्माण विभाग के श्रीनगर डिवीजन के सहायक आधिशासी अभियंता राजीव शर्मा ने बताया कि मार्ग से पहाड़ी से गिरा हुआ मलवा तो हटा दिया गया है. लेकिन पूर्व में बीआरओ द्वारा बनाई गई वॉल के टूट जाने के बाद सड़क का एक हिसा टूट चुका है. इसे फिर से बना कर मार्ग को चौड़ा करने की कोशिश की जा रही है. जैसे ही वहां पर सड़क का हिसा बनता है, मार्ग यातायात के लिए खुल जायेगा.

295 किलोमीटर लंबा है ऋषिकेश-बदरीनाथ NH

ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग-58 की लंबाई करीब 295 किलोमीटर है. इस मार्ग से देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, जोशीमठ और बदरीनाथ धाम जुड़े हैं. इस मार्ग से रोजाना हजारों वाहन आते-जाते हैं और लाखों लोग परिवहन करते हैं. इसी नेशनल हाईवे से रुद्रप्रयाग से केदानाथ धाम के लिए सड़क निकलती है. कर्णप्रयाग से इस राष्ट्रीय राजमार्ग से कुमाऊं रेजीमेंट के मुख्यालय रानीखेत और रामनगर के लिए सड़क निकलती है. यही राष्ट्रीय राजमार्ग कर्णप्रयाग से बागेश्वर जिले को जोड़ता है.

ये भी पढ़िए: भूस्खलन से बदरीनाथ हाईवे बाधित, दोनों ओर लगी वाहनों की कतारें

ये है असली वजह

दरअसल बीते दिनों में उत्तराखंड में जो भी नई सड़कें बनीं या जिन सड़कों का विस्तार हुआ उन्हें अनियोजित ढंग से बनाया गया. मसलन सुनियोजित ढंग से सड़क काटने की बजाय जगह-जगह ब्लास्ट किए गए. इससे हिमालय क्षेत्र की कमजोर पहाड़ियां हिल गई हैं. सड़क निर्माण के लिए पेड़ भी अंधाधुंध काटे गए. इससे पहाड़ हिले तो मिट्टी-पत्थरों को पकड़ने के लिए पेड़ों की जड़ें नहीं थीं. इसके बारिश में पानी की बौछार मिट्टी और पत्थरों के संपर्क को काट देती है. जब धूप आती है तो मिट्टी और पत्थर के रूप में पहाड़ी से मलबा गिरना शुरू हो जाता है. यही इन दिनों उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में हो रहा है.

बचाव क्या है ?

सड़क बनाते समय पहाड़ियों को ब्लास्ट से न उड़ाया जाए. सड़क की कटिंग करीने से की जाए. इसमें भले ही बजट ज्यादा लगेगा लेकिन बार-बार भूस्खलन की समस्या से निजात मिलेगी. ठेकेदार मलबा जहां-तहां फिंकवाना बंद करें. इससे गाड़-गदेरे ब्लॉक हो रहे हैं. नदियों का बहाव बिगड़ रहा है. ये भी लैंडस्लाइड की बड़ी बजह बन रहा है. ऐसे ठेकेदारों पर सख्ती करनी होगी. एक निश्चित डंपिंग जोन बनाना होगा. जहां-जहां स्लाइडिंग जोन हैं, वहां पर हमेशा पीडब्ल्यूडी और लोक निर्माण विभाग की टीमें तैना रहें. जैसे ही लैंडस्लाइड हो, तुरंत वो सड़क साफ कर दें.

उत्तराखंड को कहते हैं देवभूमि

उत्तराखंड को देवभूमि कहते हैं. यहां पग-पग पर मंदिर हैं. उत्तराखंड में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के रूप में चारधाम भी हैं. आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारधामों में से एक बदरीनाथ धाम जिसे मोक्षधाम भी कहते हैं उत्तराखंड में ही है. कैलाश पर्वत जिसे भगवान शिव का निवास स्थान कहा जाता है वो भी उत्तराखंड में ही है. मां पार्वती का मायका भी हरिद्वार के कनखल को कहा जाता है. इसी कारण उत्तराखंड में देवी-देवताओं की विशेष मान्यता है.

यहां जब कोई बीमार होता है और डॉक्टरों के इलाज से भी ठीक नहीं होता तो भगवान की पूजा (देवता नाचाए जाते हैं) की जाती है. उस पूजा में नाचने वाले को डंगरिया (उस शख्स पर देवी या देवता आते हैं) कहा जाता. डंगरिया बताता है कि मरीज को क्या दिक्कत है और क्यों है. उसी अनुसार घर के लोग फिर आगे का कार्यक्रम करते हैं.

संभवत: इसी मान्यता के अनुसार बार-बार सड़क ब्लॉक होने से परेशान अधिशासी अभियंता बीएल मिश्रा ने मां धारी देवी की शरण ली. उन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना की और प्रसाद चढ़ाया.

Last Updated : Jun 3, 2021, 7:35 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details