कोटद्वार: कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम को लेकर आज हम आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू करवा रहे हैं. जहां पति की शहादत के बाद भी वीरांगना ने अपने कलेजे के टुकड़े को भी देश की सेवा के लिए सीमा पर भेज दिया.
कारगिल युद्ध को 20 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन आज भी कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों की वीर गाथाएं हैं. जो अपने हमें वीर सपूतों के अदम्य साहस की अनुभूति करवाती है. ऐसी कहानी 15 गढ़वाल के वीर सिपाही अमर सिंह रावत की है. वीर अमर सिंह 20 साल पहले हुए कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए और वो अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चों को छोड़ गए. लेकिन वक्त बदला और बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए.
कोटद्वार के दुर्गापुरी निवासी शहीद अमर सिंह रावत के परिवार का देश के प्रति समर्पण देखते ही बनता है. शहीद के परिवार का इकलौता बेटा भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है. 14 साल बाद शहीद अमर सिंह रावत के बेटे प्रवीन रावत ने सेना में भर्ती हो गए. इतना ही नहीं इसे शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी का जिजीविषा ही कहेंगे कि पति के शहीद होने के बाद उन्होंने अपने बेटे को न सिर्फ सेना में भेजा बल्कि, अपनी बेटी की शादी भी सेना के जवान से की.
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शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी बताती है कि ऐसा नहीं है कि उनका मन नहीं घबराता या फिर उनके मन में बुरे ख्याल नहीं आते. लेकिन देश के प्रति सम्मान और समर्पण ने उन्हें यह फैसला लेने की हिम्मत दी. सुशीला देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए थे तो उनका बेटा केवल 7 साल का था. पिता के शौर्य की कहानी सुनकर ही उसे सेना में जाने की प्रेरणा मिली. शहीद अमर सिंह के पुत्र प्रवीण सिंह रावत आज जम्मू के राजौरी सेक्टर में पुंछ में तैनात हैं.