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Vat Savitri Vrat 2022: सुहागिन महिलाओं ने सामूहिक रूप से की बरगद की पूजा - Pandit Mahesh Joshi

वट सावित्री व्रत पर्व के मौके पर रामनगर के में सिद्धेश्वर मंदिर में सुहागिन महिलाओं ने सामूहिक रूप से बरगद की पूजा की. पंडित महेश चंद्र जोशी ने महिलाओं को सामूहिक रूप से वट वृक्ष की पूजा अर्चना करवाई. वहीं, बागेश्वर के बागनाथ मंदिर में भी सुहागिन महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा अर्चना की.

Ramnagar
रामनगर

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Published : May 29, 2022, 5:06 PM IST

रामनगर/बागेश्वर:ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के मौके पर आज रविवार को पूरे प्रदेश में सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री का व्रत पर्व मनाया गया. इस मौके पर सुहागिन महिलाओं ने वट वृक्ष की विधि-विधान से पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की सुख-शांति की कामना की. इस मौके पर रामनगर और बागेश्वर में भी महिलाएं सोलह श्रंगार कर वट वृक्ष की पूजा की.

रामनगर में सिद्धेश्वर मंदिर में सुहागिन महिलाओं ने पंडित द्वारा बताए गए विधि-विधान से सामूहिक रूप से वट वृक्ष की पूजा की. सिद्धेश्वर मंदिर में पिछले 15 वर्षों से सामूहिक तरीके से महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती आ रही हैं. मान्यता के अनुसार वट वृक्ष में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का वास होता है, जो भी सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के मौके पर वट वृक्ष की पूजा करती हैं, तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. रामनगर में भी सुहागिन महिलाओं ने वट वृक्ष की विधिविधान से पूजा अर्चना की.

सुहागिन महिलाओं ने सामूहिक रूप से की बरगद की पूजा.

तो वहीं, बागेश्वर में भी सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष की पूजा की. बागनाथ मंदिर में पंडित कैलाश उपाध्याय ने बताया कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में आने वाले सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और हमेशा सुख शांति बनी रहती है.

वट सावित्री व्रत की कथा:कहा जाता है कि राजर्षि अश्वपति की एक संतान थी, जिसका नाम सावित्री था. सावित्री का विवाह अश्वपति के पुत्र सत्यवान से हुआ था. नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के गुण और धर्मात्मा होने के बारे में बताया था लेकिन उन्हें यह भी बताया था कि सत्यवान की मृत्यु विवाह एक साल बाद ही मृत्यु हो जाएगी. पिता ने सावित्री को काफी समझाया लेकिन उन्होंने कहा कि वह सिर्फ सत्यवान से ही विवाह करेंगी और किसी से नहीं.

सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहते थे. विवाह के बाद सावित्री भी उनके साथ में रहने लगीं. सत्यवान की मृत्यु का समय पहले ही बता दिया था. इसलिए सावित्री पहले से ही उपवास करने लगी, जब सत्यवान की मृत्यु का दिन आया तो वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगा. सावित्री ने कहा कि आपके साथ जंगल में मैं भी जाऊंगी. जंगल में जैसे ही सत्यवान पेड़ पर चढ़ने लगा तो उनके सिर पर तेज दर्द हुआ और वह वृक्ष से आकर नीचे सावित्री की गोद में सिर रख कर लेट गए.
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कुछ समय बाद सावित्री ने देखा कि यमराज के दूत सत्यवान को लेने आए हैं. सावित्री पीछे पीछे यमराज के चलने लगीं. जब यमराज ने देखा कि उनके पीछे कोई आ रहा है तो उन्होंने सावित्री को रोका और कहा कि तुम्हारा साथ सत्यवान तक धरती पर था. अब सत्यवान को अपना सफर अकेले तय करना है. सावित्री ने कहा मेरा पति जहां जाएगा मैं वही उनके पीछे जाऊंगी, यही धर्म है. यमराज ने सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने एक वरदान मांगने को कहा.

सावित्री ने अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी मांगी. यमराज ने वर देकर आगे बढ़े. फिर से सावित्री पीछे आ गई हैं. फिर एक और वरदान मांगने को कहा तब सावित्री ने कहा, "मैं चाहती हूं मेरे ससुर का खोया हुआ राजपाट वापस मिल जाए. यह वरदान देकर यमराज आगे बढ़े. इसके बाद फिर वे सावित्री पीछे चल पड़ीं. तब यमराज ने सावित्री को एक और वर मांगने के लिए कहा, तब उन्होंने कहा कि मुझे सत्यवान के 100 पुत्रों का वर दें. यमराज ने यह वरदान देकर सत्यवान के प्राण लौटा दिए. सावित्री लौटकर वृक्ष के पास आई और देखा कि सत्यवान जीवित हो गए हैं. ऐसे में इस दिन पति की लंबी आयु, सुख, शांति, वैभव, यश, ऐश्वर्य के लिए यह व्रत रखना चाहिए.

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