देहरादून:उत्तराखंड राज्य बने 19 साल पूरे होने जा रहे हैं. 9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन जिस आधारणा के साथ उत्तराखंड राज्य की स्थापना की गई थी, वह कहीं न कहीं अधूरा दिखाई पड़ता जा रहा है. उत्तराखंड राज्य के लिए लड़ाई लड़ने वाले राज्य आंदोलनकारी भी मान रहे हैं कि जिस सपनों को लेकर वह उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो सपना आज भी अधूरा है. ऐसे में राज्य एक अलग दिशा में जा रहा है.
राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी का कहना है कि पहाड़ के जल, जंगल और जमीन सरकार द्वारा बर्बाद किए जा रहे हैं. पहाड़ में पलायन नहीं रुक रहा है, पहाड़ के हजारों गांव आज खाली होते जा रहे हैं. पलायन रोकने की बात करने वाले नेता पहाड़ से पलायन कर देहरादून और हरिद्वार में आकर बस रहे हैं. पहाड़ की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल हो चुकी है. राज्य बनने के बाद केवल विकास हुआ है तो राजनेताओं का.
जोशी का कहना है कि 19 सालों में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की बजाय 9 मुख्यमंत्री इस राज्य ने देखे. राज्य की अवधारणा के अनुसार स्थाई राजधानी अब तक नहीं बन पाई. युवा पीढ़ी पहाड़ से लगातार पलायन कर रहा है. पहाड़ का युवा रोजगार के लिए हल्द्वानी और देहरादून आता है, लेकिन अब प्रदेश में इतनी बेरोजगारी बढ़ गई है कि युवाओं को हल्द्वानी और देहरादून में भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में अब युवा दिल्ली मुंबई का रुख करने पर मजबूर है, जो उत्तराखंड राज्य के लिए बड़ी विडंबना है. पहाड़ की सड़कों पर लगातार हादसे हो रहे हैं लेकिन सरकार सड़कों का चौड़ीकरण नहीं कर रही है, जो चिंता के विषय है. जिस अवधारणा से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाया गया था वह सपना आज भी अधूरा है.