हल्द्वानी:उत्तराखंड को बागवानी और जड़ी बूटियों का प्रदेश भी कहा जाता है. लेकिन अब प्रदेश का किसान रेशम के उत्पादन की ओर आगे बढ़ रहा है. किसान बगवानी के साथ-साथ अब रेशम उत्पादन में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं. वहीं रेशम विभाग भी किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से रेशम उत्पादन के लिए जागरूक कर रहा है.
किसानों की आय को बढ़ाने के लिए रेशम विभाग किसानों को प्रणाम परी की खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है. उप निदेशक रेशम विभाग अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम उत्पादन किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए मुख्य साधन हो सकता है. रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह के इन्वेस्टमेंट की जरूरत भी नहीं है.
किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन का भी काम कर सकता है. विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों को 300 शहतूत के पेड़ निशुल्क दिए जाते हैं. साथ ही बहुत कम दरों में रेशम के कीट भी उपलब्ध कराए जाते हैं. एक बार पेड़ लग जाने के बाद उसको 20 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है.
अरविंद लालोरिया का कहना है कि रेशम का उत्पादन साल में दो बार किया जा सकता है. रेशम उत्पादन के लिए मार्च और सितंबर का महीना सबसे अनुकूल रहता है. रेशम का उत्पादन मात्र 28 से 30 दिनों में किया जा सकता है. उनका कहना है कि रेशम कीट की जिन्दगी सिर्फ 30 दिनों की ही होती है.