हल्द्वानी: दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाने वाला पर्व आमतौर पर भाई दूज के नाम से जाना जाता है. लेकिन उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में इस पर्व को यम द्वितीया यानी (दुतिया त्यार) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि यम देवता यमराज इस दिन अपने बहन गंगा के घर गए थे जहां अपने बहन के घर उन्होंने भोजन किया था. कहा जाता है कि यम देवता यमराज और गंगा भाई-बहन है और सूर्य के पुत्र हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति मां गंगा में श्रद्धा से स्नान करता है, उसको किसी भी तरह का डर भय नहीं रहता है.
मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन सुबह घर में पूजा इत्यादि के बाद घर की सबसे बड़ी बुजुर्ग महिला च्युड़ा और दूभ को सबसे पहले देवताओं को अर्पित करती है. जिसके बाद परिवार के सभी सदस्यों के सर पर च्युड़ा और दूभ चढ़ाया जाता है जो परिवार के सुख शांति के प्रतीक है. च्युड़ा चढ़ाने के साथ च्युड़ा खाने का भी विशेष महत्व है.
ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि भाई दूज के त्योहार को यम द्वितीया भी कहते हैं. इस दिन बहन अपने भाई को तिलक करती है और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं और इस दिन बहन के घर भाई को जाकर भोजन करना शुभ माना जाता है. ऐसे में भाई की अकाल मृत्यु नहीं होती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाए जाने वाली इस पवित्र त्योहार को भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व माना जाता है. भाई दूज के पूजन के लिए विशेष महत्व दोपहर 1 से लेकर 3:20 बजे तक रहेगा.