हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार हिंदू धर्म के सबसे पवित्र सात धर्म स्थलों में से एक प्रमुख धर्म स्थल माना जाता है. तीर्थ हरिद्वार के संदर्भ में पौराणिक काल से ही ऐसे कई उल्लेख मिलते हैं जिसमें हरिद्वार में स्नान, अस्थि विसर्जन के अमृत लाभ के बारे में बताया गया है.अनादि काल से ही हिंदू धर्म के विभिन्न पूजा पाठ, क्रिया कर्म हेतु श्रद्धालु पूरे देश विदेश से हरिद्वार पहुंचते हैं.
बही तीर्थ पुरोहितों की होती है पैतृक संपत्ति. जानिए कौन होते हैं तीर्थ पुरोहित?
धर्मनगरी हरिद्वार में तीर्थ पुरोहितों का पौराणिक काल से ही विशेष महत्व रहा है. तीर्थ पुरोहित वह ब्राह्मण होते है जो कि श्रद्धालुओं के पूजा, कर्मकांड, क्रियाकर्म आदि धार्मिक कार्य संपन्न करवाने का काम पीढियों से करते आ रहे हैं. तीर्थ पुरोहित की मान्यता उसी ब्राह्मण को मिलती है जिनके पुरखों की हरिद्वार में गद्दी स्थापित हो जहां से कई वंशों से तीर्थ पुरोहित का कार्य किया जा रहा हो. बता दें तीर्थ पुरोहितों की गद्दी के अंतर्गत कुछ विशेष क्षेत्र, राज्य, गांव, गोत्र, जाति आदि आती है. जिसके हिसाब से ही तीर्थ पुरोहितों के यजमान तय होते हैं. वर्तमान में धर्मनगरी हरिद्वार में तीर्थ पुरोहितों की लगभग दो से ढाई हजार गद्दियां मौजूद हैं, जिसमें पूरे देश के तीर्थ पुरोहित हैं.
जानिए क्या है तीर्थ पुरोहितों की बही ?
बही तीर्थ पुरोहितों के अनुसार उनकी असली पैतृक संपत्ति होती है. बही में तीर्थ पुरोहितों द्वारा कई सौ सालों से अपने यजमानों का पूरा इतिहास, वंशावली, कर्म के लिए आए व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, दादा - परदादा का नाम, निवास क्षेत्र, राज्य, गांव, गोत्र, जाति आदि लिखा जाता है. जब भी कोई भी व्यक्ति पूजा पाठ, अस्थि विसर्जन आदि के लिए हरिद्वार पहुंचता है तो उस व्यक्ति का सभी अध्यात्मिक कर्म कौन करवाएगा इस बात का फैसला तीर्थ पुरोहितों के बही में दर्ज उस व्यक्ति के पुरखों के नाम से होता है. अगर आसान शब्दों में कहे तो किसी भी स्थान विशेष से आए यजमान के लिए एक तीर्थ पुरोहित तय है, जिसके पास उस स्थान विशेष के लोगों का पूरा रिकॉर्ड बही में दर्ज होता है.
बड़ी अनमोल होती है तीर्थ पुरोहितों की बही
किसी भी आम बही खाते की किताब सी दिखने वाली तीर्थ पुरोहितों की बही का मूल्य लाखों का होता है. ईटीवी भारत से हुई बातचीत में विभिन्न तीर्थ पुरोहितों ने बताया कि किसी भी बही का मूल्य तय करने के लिए उस बही में अंकित साल भर की आमदनी देखी जाती है. जिसके बाद बही का मूल्य तय होता है. मोटे तौर पर देखा जाए तो एक आम बही की कीमत भी कई लाखों में होती है. बता दें सम्पति के तौर पर बही केवल ऐसे ही उपयोग में नहीं आती है बल्कि इसको भारतीय न्यायिक व्यवस्था से मान्यता भी प्राप्त है.
बेटी की शादी में भेंट के तौर पर भी दी जाती है बही
सुनने में बड़ी अजीब सी बात लगती है कि आखिर शादी में कोई किसी को बही क्यों देगा लेकिन इसके पीछे भी बहुत महत्वपूर्ण पौराणिक मान्यता छुपी हुई है.ऐसा माना जाता है कि अगर किसी भी तीर्थ पुरोहित के वंश को आगे बढ़ाने के लिए कोई कोई बेटा नहीं है तो ऐसी सूरत में बही को बेटी के नाम कर दिया जाता है. क्योंकि आम तौर पर महिलाओं द्वारा तीर्थ पुरोहित का काम नहीं किया जाता है. ऐसी सूरत में वह बही बेटी के पति को मिल जाती है. बता दें क्योकि बही पुत्री को दिए जाने के बाद उसकी असली मालिक बेटी बन गई है. ऐसे में उसके पास यह अधिकार सुरक्षित रहता है कि वह इसका उत्तराधिकार किसको देना चाहती है.एक तरह अगर देखा जाए तो जिसको भी बही का उत्तराधिकार मिलता है उसके लिए बही पूरी जिंदगी का जीवनयापन के लिए एक रोजगार के तरह से ही है.