हरिद्वार: कोरोना महामारी का असर पितृपक्ष (श्राद्ध) पर भी पड़ रहा है. इस बार कोरोना के कारण पुरोहित और ब्राह्माण घर पर ब्रह्मभोज करने से पहरेज कर रहे हैं. यही कारण है कि पुरोहित और ब्राह्मण आसानी से नहीं मिल रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर कुछ पंडित ऑनलाइन श्राद्ध के लिए भी आमंत्रित किए जा रहे हैं. जिन्हें भुगतान भी ऑनलाइन ही किया जा रहा है.
ब्रह्मभोज के लिए नहीं मिल रहे पुरोहित और ब्राह्मण शास्त्रों में वर्णित है कि अपने पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए उनका श्राद्ध किया जाता है. गरुण पुराण के अनुसार जिसके भी पितरों को मुक्ति नहीं मिलती है तो उनका श्राद्ध कर उनको मुक्ति दिलायी जाती है. श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के साथ ही गाय, कौवा और स्वान के लिए भी ग्रास निकाला जाता है. जिससे पितृ प्रसन्न होते है और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. पितृपक्ष 16 दिन का होता है. लेकिन इस बार पितृपक्ष पर भी कोरोना का साया है.
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कोरोना वायरस के चलते ब्राह्मण ब्रह्मभोज करने के लिए घर पर नहीं आ रही है, बल्कि वह या तो ब्रह्मभोज के लिए दक्षिणा या फिर जजमान द्वारा घर से गए लाए गए राशन को स्वीकार कर रहे हैं. इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए पंडित उज्जवल पंडित ने बताया कि शास्त्रों में ऋषि-मुनियों ने पहले ही वर्णित कर दिया था कि यदि आप ब्रह्मभोज कराने में असमर्थ हैं, तो ब्राह्मणों को अपनी इच्छा शक्ति दान इत्यादि कर प्रार्थना करने से भी पित्रों को प्रसन्न कर सकते हैं.
कोरोना से बचने के लिए जहां ब्राह्मण भी लोगों के घर जाने से परेहज कर रहे हैं. ऐसे हालत में जजमान अपने पित्रों के नाम का राशन इत्यादि निकालकर ब्राह्मण को दान दे सकते हैं.
वहीं, कुशा घाट पर पिंड क्रिया कराने वाले पंडितों का कहना है कि वे इस साल जजमानों से ब्रह्मभोज नहीं कर रहे हैं, बल्कि जजमान अपनी इच्छा अनुसार ब्रह्मभोज की जगह दक्षिणा दे रहा है. यदि कोई जजमान ब्रह्मभोज करवाता भी है तो वो या तो घर से पैक कराकर ला रहा है या फिर किसी होटल में ब्रह्मभोज करवाता है.
उधर, नारायणी शिला में क्रिया कर रहे पंडित राजेश का कहना है कि जजमान उन्हें दक्षिणा ऑनलाइन ट्रांसफर कर रहे हैं. जिसे उन्होंने जजमान के भाव को समझते हुए स्वीकार किया है.