हरिद्वार: धर्मनगरी के हरकी पैड़ी की देखरेख औरमां गंगा आरती काविशेष आयोजन करने वाले तीर्थपुरोहितों की संस्थाश्री गंगा सभा का इतिहास आजादी से भी पुराना है. जिसके इतिहास को कम ही लोग जानते हैं औरविश्व में बांध विरोध आंदोलन हरिद्वार से ही सबसेपहले शुरू हुआ था.एक बड़े संग्राम के बाद गंगा सभा की स्थापना हुई थी. गंगा सभा ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों केखिलाफ वर्ष 1914 में विरोध का बिगुल फूंका था.जिस जन आंदोलन नेब्रिटिश हुकूमत को अपनी ताकतसे रूबरू कराया और घूटने टेकने को विवश किया था. ईटीवी भारत की धर्मनगरी के इस गौरवशाली इतिहास पर ये है खास रिपोर्ट.
पं. मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में आंदोलन
श्री गंगा सभा की स्थापना के वक्त देश गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था.सन् 1914 में तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत भीमगोड़ा में गंगा पर बांध का निर्माण कर रही थी. तब पुरोहितों ने इसका जमकर विरोध किया औरयह कहते हुए निर्माणशुरू नहीं होने दिया कि बंधे हुए जल में देव पितृ तर्पण और धार्मिक कर्मकांड शास्त्रों में वार्जित है. जब अंग्रेजी हुकूमत ने पुरोहितों की आवाज को दबाना चाहती थी लेकिन पुरोहितों ने आंदोलन को तेज कर दिया. जिस आंदोलन कीकमान पंडितमदनमोहन मालवीय ने स्वयं संभाली थी.अंग्रेजों के इस फैसले का विरोध इतना बढ़ा कि इसने एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया था. पंडितमदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में चल रहे इस जन आंदोलन ने अंग्रेजी सरकार को घुटने टेकने कोमजबूर कर दिया. जिसके बाद कुछ दिन तो अंग्रेजी शासन चुप रहालेकिन कुछ समय बाद बांध बनाने का प्रयत्न फिर से शुरू कर दिया.
अंग्रेज करने लगे थे गंगा जी का अपमान
जिसके बाद अंग्रेजों ने पवित्र गंगाजल का अपमान करना शुरू कर दिया. इस पर हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों एवं श्री महंत ने फिर से एक बार विराट आंदोलन शुरू किया. परिणाम स्वरूप तत्कालीन गवर्नर जेम्स मेस्टन का सिंहासन डोल गया था और विवश होकर अंग्रेजी हुकूमत को आंदोलनकारियों की सभी बातों कोमाननापड़ा था.ब्रिटिश सत्ता को अंत में जन आंदोलन के आगे झुकना पड़ा और बांध का प्रस्ताव रद्द करना पड़ा था.