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1857 स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है रुड़की का यह वट वृक्ष

1857 में स्वतंत्रता संग्राम को लेकर हुए विद्रोह का देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका है. वहीं, रुड़की का वट वृक्ष इस स्वतंत्रता संग्राम की कहानी की याद दिलाता है. आज ही के दिन 10 मई 1857 को अंग्रेजों ने रुड़की के इस विशाल बरगद पेड़ से सैकड़ों लोगों को फांसी पर लटका दिया था.

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1857 स्वतंत्रा संग्राम की याद

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Published : May 10, 2020, 4:19 PM IST

Updated : May 10, 2020, 5:05 PM IST

रुड़की: देश की आजादी में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का बड़ा ही योगदान रहा है. इस स्वतंत्रता संग्राम में हजारों लोगों ने हंसते हंसते अपना प्राण न्योछावर कर दिया था. वहीं, इस क्रांति और आंदोलन से रुड़की भी अछूता नहीं था. यहां के किसानों ने भी देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत का जमकर बगावत किया, जिसकी वजह से अंग्रजों ने सैकड़ों लोगों को एक विशाल बरगद के पेड़ से फांसी पर लटका दिया था. वहीं, आजादी की विरासत को समेटे यह बूढ़ा बरगद का वृक्ष आज भी शान से यहां खड़ा है.

अब यह वट वृक्ष एक शानदार शहीद स्मारक के रूप में स्थापित हो चुका है, जो रुड़की वासियों के अदम्य साहस और देशप्रेम की कहानी की याद दिलाता है. यह विशाल वट वृक्ष ग्राम सुनहरा रोड पर स्थित है. बताया जाता है कि सन 1857 में जब स्थानीय किसानों, ग्रामीणों और गुर्जरों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष का झंडा बुलंद किया तो अंग्रेजों के हाथ पांव फूल गए थे. इन स्वतंत्रता सेनानियों ने इस दौरान बहुत सारे अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया.

अग्रेजों की मौत से बौखला कर ब्रिटिश हुकूमत ने आजादी के मतवालों को सबक सिखाने के लिए यहां कत्लेआम का वह तांडव मचाया, जिसकी कहानियां आज भी कही और सुनी जाती हैं. ग्राम मतलबपुर व रामपुर से निर्दोषों को पकड़कर भी इस वटवृक्ष पर फांसी पर लटकाया गया था.

1857 स्वतंत्रा संग्राम की याद दिलाता वट वृक्ष

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आपको बता दें कि 10 मई 1857 को सौ से ज्यादा क्रांतिकारियों को इस वटवृक्ष से लटका कर फांसी दिया गया था. इस दिन हर साल स्थानीय लोग, यहां शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ी संख्या में जुटते हैं. कहा जाता है कि सहारनपुर एवं रुड़की में ब्रिटिश छावनी होने के कारण यह जरूरी था कि इस जगह पर शांति रहे. ताकि, विद्रोह की हालत में अंग्रेजी सेना उन स्थानों पर आसानी से पहुंच सके. जन आंदोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने सैकड़ों देशभक्तों को फांसी पर लटका दिया. हालांकि, अंग्रेज अपने मंसूबों में कभी कामयाब नहीं हो सके.

स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय हकीम मोहम्मद यासीन के बेटे डॉक्टर मोहम्मद मतीन बताते हैं कि अपने पिता से उन्होंने अंग्रेजी जुल्म और देशवासियों के बलिदान की गाथा सुनी है, जो आज भी उनके मन में रह रह कर उन घटनाओं की याद ताजा कर देता है. वहीं, स्वर्गीय ललित प्रसाद ने सन 1910 में इस वटवृक्ष के आसपास की जमीन को खरीद कर इसे आबाद किया था.

शहीद यादगार कमेटी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद मतीन बताते हैं कि वट वृक्ष के नीचे शहीद हुए आजादी के दीवानों की याद में 10 मई 1957 को स्वतंत्र भारत में पहली बार तत्कालीन एसडीएम बीएस जुमेल की अध्यक्षता में विशाल सभा का आयोजन किया गया था, जिसमें शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. उसी दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हकीम मोहम्मद यासीन की अध्यक्षता में शहीद यादगार कमेटी का भी गठन किया गया था.

Last Updated : May 10, 2020, 5:05 PM IST

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