देहरादून: कहते हैं कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा. पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही इसका असर पहाड़ी प्रदेश में जल स्रोतों पर साफ देखा जा सकता, जो सूखने लगे हैं. जलवायु परिवर्तन और कटते पेड़-पौधों ने ग्रामीण क्षेत्रों के पारंपरिक जल स्रोतों पर असर डालना शुरू कर दिया है. जंगल में जल स्रोतों से निकलने वाला पानी उत्तराखंड के लोगों के लिए जीवनरेखा जैसी हैं. बड़ी नदियां तो बहुत नीचे घाटी में बहती हैं और गांव के लोग उसके पानी का इस्तेमाल नहीं कर पाते.
देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखंड में भी सूखती जलधाराएं चिंता का सबब बनने लगी हैं. उत्तराखंड में बीते कुछ दशकों में हजारों प्राकृतिक जलस्रोत खत्म हो चुके हैं. जिसके चलते प्रदेश में नदियों में पानी का बहाव भी कम हो गया है. एका अध्ययन के मुताबिक, प्रदेश के करीब 1150 जलस्रोत ऐसे हैं, जो पूरी तरह से सूखे हैं. जिन्हें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है.
सूखने की कगार पर जल स्रोत
उत्तराखंड में 1150 सूखे जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया जाना है. इसी कड़ी में सबसे पहले मसूरी के सेलूखेत, टिहरी के प्रतापनगर और चंबा के साथ ही कर्णप्रयाग के जलस्रोतों का अध्ययन किया गया है. क्योंकि इन सभी स्रोतों से जल संस्थान पानी की आपूर्ति करता है. अभी तक किए गए अध्ययन के अनुसार प्रदेश के 77 स्रोतों का जलस्तर 75 प्रतिशत से अधिक सूख चुका है. राज्य के 330 स्रोतों के बहाव में 50 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. वहीं, 1229 स्प्रिंग स्रोतों के जल स्तर पर पर्यावरणीय एलं अन्य कारकों का असर पड़ रहा है. कुल मिलाकर प्रदेश के छोटे बड़े करीब 5,000 जल स्रोतों को ट्रीटमेंट की जरूरत है.
नेचुरल स्प्रिंग होंगे पुनर्जीवित
उत्तराखंड के नेचुरल स्प्रिंग्स के अध्ययन कराने के लिए सर्वे ऑफ इंडिया से प्रपोजल भी लिया गया है. जिसमें टिहरी जिले के नेचुरल वाटर रिसोर्सेस का सर्वे केंद्र सरकार करा रही है. जिसमें सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड और सर्वे ऑफ इंडिया की मदद से अध्ययन कराया जा रहा है. बाकी इससे अलग जिलों के लिए 30 करोड़ का पैकेज भी केंद्र सरकार ने दिया है. जिस पर अध्ययन कराने के लिए नेचुरल स्प्रिंग की जानकारी एकत्र की जाएगी और फिर उसका अध्ययन किया जाएगा. अध्ययन के रिजल्ट से उन्हें बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें. जैसे ही सभी स्प्रिंग्स की स्टडी रिपोर्ट आ जाएगी, उसके बाद जिलेवार प्रपोजल तैयार किया जाएगा.