देहरादून: उत्तराखंड की सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान जारी है. इस बार कुल 632 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनके भाग्य का फैसला 82,66,644 मतदाता करेंगे. जिनमें कुल 42,38,890 पुरुष और 39,32,995 महिला के साथ 40 अन्य वोटर शामिल हैं. इसके अलावा इसमें 94471 सर्विस वोटर भी हैं. जबकि राज्य में कुल 11697 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनकी सुरक्षा व्यवस्था 50 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों के हवाले हैं. इसके अलावा संवेदनशील केन्द्रों के लिए रिजर्व फोर्स भी रखी गई है. उत्तराखंड में सोमवार को सुबह 8 बजे से शाम छह बजे तक मतदान होगा.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) की बात हमेशा मजाकिया लहजे में शुरू होती है और फिर मामला एक क्विज शो में तब्दील हो जाता है. क्योंकि जब तक लोग उत्तराखंड का मुख्यमंत्री (Uttarakhand CM) कौन है, को याद करेंगे, वैसे ही सीएम बदल जाएंगे. मार्च 2021 से उत्तराखंड में तीन मुख्यमंत्री हो चुके हैं. 10 मार्च, 2021 को बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को सीएम बना दिया. तीन महीने बाद रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी ने ली. अब लोग मजाक में कहते हैं कि 2022 के चुनावों के तुरंत बाद सीएम बदल दिया जाएगा.
दरअसल, उत्तराखंड में पांचवीं सरकार बनाने के लिए हो रहे चुनाव एक तरह से मुद्दा विहीन हैं. कांग्रेस पार्टी हरीश रावत के नेतृत्व और चेहरे के साथ सरकार बनाने के लिए चुनाव मैदान में है तो मोदी की चमक के सहारे बीजेपी सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है. इसी तरह आम आदमी पार्टी मुख्यतः केजरीवाल के नाम और काम के दम पर राज्य में अपनी जगह बनाने के लिए हाथ-पैर मार रही है.
BJP को एंटी इंकम्बेंसी से मुकाबला करना होगा:चुनाव भले ही उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा के लिए हों, लेकिन कांग्रेस को बड़ा खतरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही है. 2017 में मोदी लहर का असर झेल चुकी कांग्रेस को राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का बड़ा सहारा तो है ही, साथ में कोशिश की जा रही है कि राज्य में प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिए मजबूत किलेबंदी की जाए. इसी रणनीति को अंजाम देने के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को देवभूमि में उतारा. पार्टी ने राहुल की किच्छा और हरिद्वार की चुनावी रैलियों की व्यूह रचना की. इन दोनों ही जिलों में किसानों का असर रहा है. देशभर में जब किसान आंदोलन चल रहा था तो उत्तराखंड में भी कांग्रेस ने इसे धार देने में कसर नहीं छोड़ी. यह अलग बात है कि उत्तराखंड में पार्टी का यह दांव अभी तक भाजपा को परेशानी की स्थिति में नहीं ला पाया है.
उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जहां जाति के आधार पर विभाजन नहीं है. हालांकि ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच कुछ विरोध है. लेकिन इसके बावजूद यहां किसी सोशल इंजीनियरिंग को साधने की आवश्यकता नहीं है. इतना ही नहीं, उत्तराखंड में मुसलमानों की संख्या बहुत कम है. जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना खत्म हो गई है. जाति और समुदाय जैसे मुद्दों की अनुपस्थिति में यह चुनाव बीजेपी सरकार के प्रदर्शन पर एक जनमत संग्रह जैसा हो गया है.
उत्तराखंड में भाजपा इस बार पिछले चार विधानसभा चुनाव में हर बार सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ने का दम तो भर रही है. उसने 60 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य भी रखा है. यही नहीं, उसके समक्ष वर्ष 2017 के चुनाव के अपने ही प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती भी है. तब भाजपा ने 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज कर ऐतिहासिक बहुमत पाया था. एक तरह से भाजपा के लिए उसका अपना ही पिछला प्रदर्शन कसौटी बन गया है. भाजपा छोटा राज्य होने के बावजूद उत्तराखंड को खासा महत्व देती है, इसीलिए चुनावी साल में भाजपा दो-दो बार सरकार में नेतृत्व परिवर्तन जैसा कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटी.
सिर्फ ब्राह्मण-ठाकुर जाति वाले CM बने:उत्तराखंड की सत्ता पर कांग्रेस और बीजेपी का ही कब्जा रहा है. दोनों ही पार्टियों ने मुख्यमंत्री पद के लिए किसी 'ठाकुर' पर विश्वास जताया है या फिर 'ब्राह्मण' को अपनी पसंद माना है. राज्य में पिछले 22 साल से यही ट्रेंड देखने को मिला है. सूबे में चुनाव कोई भी रहा हो, समीकरण कितने भी बदले हों. लेकिन, सत्ता की कमान ठाकुर और ब्राह्मण के हाथ में ही रही. इसका कारण भी काफी सरल है. इस पहाड़ी राज्य में 35 फीसदी ठाकुर हैं तो वहीं 25 फीसदी ब्राह्मण मतदाता रहते हैं. ऐसे में हर चुनाव में इस चुनावी गणित को साधने का प्रयास रहता है.
मैदान में धामी समेत कई हैं कई चेहरे:भाजपा में फिलहाल सीएम के रूप में वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी ही सबसे आगे हैं. जुलाई 2021 में वर्तमान सरकार के तीसरे सीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद धामी ने लगातार प्रदेश के दौरे पर हैं. पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा समेत सभी नेता धामी को भविष्य बता चुके हैं. इससे माना जा रहा है कि भाजपा में फिलहाल धामी ही सीएम को चेहरा हो सकते हैं. हालांकि, पार्टी में मुख्यमंत्री के कई दावेदार हैं, इनमें पूर्व सीएम डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी शामिल हैं.
कांग्रेस से कई दिग्गज मैदान में:कांग्रेस में जाहिर तौर पर इस वक्त चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पूर्व सीएम हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ही भावी सीएम की दौड़ में है. दोनों के समर्थकों का मानना है कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर इनमें ही एक व्यक्ति सीएम बनेगा. इन सबके बीच जिस प्रकार दलित सीएम की बात कांग्रेस में आती रही है. उससे यशपाल आर्य का नाम भी इस दौड़ में शामिल हो जाता है. इधर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के समर्थक उन्हें छुपे रूस्तम की तरह देख रहे हैं. सत्ता में आने पर सीएम के पद के शीर्ष नेताओं में संघर्ष होने पर गोदियाल भी बाजी मार सकते हैं.
आम आदमी पार्टी से कर्नल कोठियाल ही सीएम:प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों में केवल आप ही ऐसा दल है, जिसने सीएम को लेकर कोई असंमजस नहीं रखा है. आप ने काफी पहले ही कर्नल अजय कोठियाल (रि) को अपना सीएम प्रत्याशी घोषित कर दिया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने खुद उत्तराखंड आकर उनके नाम का ऐलान किया है.
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दांव पर सीएम पुष्कर सिंह धामी और हरीश रावत की प्रतिष्ठा:उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 कई मायनों में दिलचस्प होता जा रहा है. इस चुनाव को युवा नेतृत्व बनाम अनुभवी बुजुर्ग नेतृत्व के बीच चुनावी जंग के तौर पर देखा जा रहा है. जिसके तहत चुनाव में एक तरफ बीजेपी के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंंह धामी की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत का राजनीतिक वजूद दांव पर है.
असल में यह चुनाव कांग्रेस अपरोक्ष तौर पर हरीश रावत के नेतृत्व में ही लड़ रही है. कांग्रेस ने हरीश रावत को चुनाव कैंपेन कमेटी का संंयोजक बनाया है. वहीं यह भी अटकलें हैं कि यह उनका आखिरी विधानसभा चुनाव है. असल में बीते विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत को दो सीटों से चुनावी हार मिली थी. जिसके बाद इस चुनाव को उनकी अग्नि परीक्षा माना जा रहा है.
इन राजनीतिक दिग्गजों के बिना हो रहा पहला चुनाव:प्रकाश पंत, नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश, आठ बार विधायक चुने गए हरबंस कपूर, सल्ट से दो बार भाजपा के टिकट पर जीतने वाले सुरेंद्र सिंह जीना का भी निधन हो चुका है. गंगोत्री और थराली के विधायकों का भी चुनाव से पहले निधन हो गया था. ऐसे में इनके दलों की इनकी कमी भी खल रही है.
फरवरी 2018 से दिसंबर 2021 के बीच उत्तराखंड की राजनीति से जुड़े सात नाम दुनिया को अलविदा कह गए. कांग्रेस के दिग्गज नेता कहे जाने वाले पूर्व सीएम एनडी तिवारी इसमें पहला नाम हैं. तिवारी का कद को देखते हुए भाजपा ने उनके नाम पर रुद्रपुर सिडकुल का नाम रखने की घोषणा भी की है. 2017 में सीएम बनने से चूके प्रकाश पंत को बाद में वित्तमंत्री बनाया गया था. मगर बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था. नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश को प्रदेश कांग्रेस की तिगड़ी में माना जाता था. मगर पिछले साल जून में उनका भी निधन हो गया था.
वहीं, भाजपा के लिए दून कैंट सीट को मजबूत किला बनाने वाले आठ बार के विधायक हरबंस कपूर भी अब दुनिया में नहीं हैं. पिछले साल भाजपा ने अपने युवा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना को भी खो दिया. वहीं, भाजपा टिकट पर विधायक रहते गंगोत्री से गोपाल रावत और थराली से मगन लाल शाह का बीमारी के चलते निधन हो चुका है. पंत, जीना और कपूर की राजनीतिक विरासत भाजपा ने उनके स्वजनों को सौंप दी. पंत की पत्नी चंद्रा पिथौरागढ़, हरबंस कपूर की पत्नी सविता दून कैंट और जीना के भाई महेश जीना 2022 में सल्ट सीट से मैदान में उतरे हैं. वहीं, कांग्रेस ने हल्द्वानी सीट पर इंदिरा के बेटे सुमित को टिकट दिया है.
रोजगार, भ्रष्टाचार और स्वास्थ्य हैं सियासी मुद्दे: देवभूमि उत्तराखंड में आज मतदान होगा. वहीं इस बार उत्तराखंड के चुनाव में भ्रष्टाचार, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर खास नजर है. उत्तराखंड स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में अभी काफी पिछड़ा है. वहीं शिक्षा का मुद्दा भी युवा पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण है. कोरोना के चलते रोजगार में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. इस वजह से युवाओं के लिए रोजगार इस बार यह मुद्दा है.