देहरादून: प्रदेश को बुग्यालों में कमर्शियल एक्टिविटी पर हाई कोर्ट के रोक लगाने के बाद अब लगातार वन विभाग और पर्यटन विभाग लगी रोक को हटाने की कवायद में जुटा है, जिससे फिर से बुग्यालों में कमर्शियल एक्टिविटी शुरू की जा सके. जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके. साथ ही सैलानी उत्तराखंड की हसीन वादियों का दीदार कर सके. वहीं, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि बुग्यालों में कमर्शियल एक्टिविटी बंद है, लेकिन लोग बुग्यालों में देवी-देवताओं की पूजा करने जाते है. हालांकि, इसकी अनुमति अभी भी है और सरकार की कोशिश रहेगी कि किसी वनस्पति और बुग्याल को नुकसान नहीं पहुंचा जाए. उन्होंने कहा कि बुग्याल का जो प्रसंग है, बहुत महत्वपूर्ण टूरिज्म है. इसलिए अगर जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट में भी जाएंगे.
यूं तो उत्तराखंड में कई ऐसे बुग्याल हैं, जो अपनी खूबसूरती के लिए विश्व विख्यात हैं, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं. लेकिन सुंदरता के लिए मशहूर इन बुग्यालों में कमर्शियल एक्टिविटी होने के चलते संकट मंडराने लगे थे. जिस वजह से हाई कोर्ट ने बुग्याल को संरक्षित करने के लिए बुग्यालों में कमर्शियल एक्टिविटी पर रोक लगा दी है. हाई कोर्ट ने कहा था कि बुग्यालों में पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए नियम बनाया जाए, इसके साथ ही उसका सही ढंग से पालन कराया जाए.
बुग्यालों के लिए पर्यटन नीति में परिवर्तन करने की जरूरत
वन विभाग के ब्रांड अंबेसडर जगत सिंह चौधरी ने बताया कि उत्तराखंड राज्य में पर्यटन से पैसा कमाने का मात्र एक संसाधन बना दिया है, लेकिन इसमें अनुशासन नहीं जोड़ा. अगर शुरू से ही अनुशासित पर्यटन के रूप में बुग्यालों में जाया जाता, तो हाइ कोर्ट आज ये निर्णय नहीं लेता. बुग्यालों में कमर्शियल एक्टिविटी होने के चलते बुग्यालों में गंदगी फैला दी गई. जिससे बुग्याल मरने की कगार पर आ गए. लिहाजा, राज्य सरकार को चाहिए कि वह इसे पर्यटन नीति में परिवर्तन करें और उत्तराखंड में हर जगह अनुशासित पर्यटन होने चाहिए. इसके साथ ही उत्तराखंड राज्य पर्यटन से नहीं बल्कि अनुशासित पर्यटन से प्रसिद्ध होनी चाहिए.
बुग्यालों में जाने वाले पर्यटकों की हो मॉनिटरिंग
जगत सिंह का कहना है कि जबतक पर्यटन नीति और अनुशासित पर्यटन नहीं होगा. तबतक लोग मनमानी करते रहेंगे. इसके साथ ही राज्य सरकार को चाहिए कि बुग्यालों में जितने भी पर्यटक आते हैं, उनकी मॉनिटरिंग भी हो. जिससे यह पता चल सके कि कोई पर्यटक वहां फूलों और जड़ी-बूटी का दोहन या फिर बुग्याल को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहा है. जिससे ही बुग्यालों को संरक्षित किया जा सकता.