देहरादून: उत्तराखंड गठन को 22 वर्ष पूरे हो चुके हैं. प्रदेश अपनी युवा अवस्था में है. इन 22 वर्षों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उत्तराखंड के पहाड़ से मैदानी इलाकों में हो रहा पलायन सबसे अहम मुद्दा रहा है. हर बार प्रदेश में पलायन रोकने के लिए ठोस योजना बनाने को लेकर बातें होती हैं. प्रदेश सरकार भी दावे करती है कि पलायन रोकने के लिए मूलभूत सुविधा जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क और रोजगार को बढ़ाया जा रहा है, लेकिन हकीकत में यह दावे कितना सही हैं. ये पलायन आयोग की रिपोर्ट ही बयां कर रही हैं.
पलायन आयोग का कहना है कि देहरादून जिले के 6 विकासखंडों में पलायन के मामले सामने आए हैं. करीब 10 से 15 प्रतिशत तक इन विकासखंडों में ग्रामीणों का पलायन हुआ है. उत्तराखंड पलायन आयोग ने हाल ही में देहरादून जिले की रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी है. जिसमें देहरादून जिले के 6 विकासखंडों से हुए पलायन के आंकड़ों का खुलासा किया गया है. वहीं यह आंकड़े इस बात की भी तस्दीक करते हैं कि जब राजधानी में भी पलायन की समस्या है, तो अन्य पहाड़ी जनपदों से स्थिति सुधरने की उम्मीद करना बेईमानी है.
पलायन आयोग की रिपोर्ट अनुसार देहरादून जनपद के कुल 231 ग्राम पंचायतों में 25,781 व्यक्तियों ने बीते दस सालों में अस्थायी पलायन किया है, जिसमें सबसे अधिक कालसी विकासखंड के 107 ग्राम पंचायतों में 11,399 व्यक्तियों और सबसे कम सहसपुर विकासखंड के 4 ग्राम पंचायतों में 144 व्यक्तियों ने अस्थायी पलायन किया है. वहीं, विकासनगर विकासखंड में कुल 26 ग्राम पंचायतों में 7,397 व्यक्तियों ने अस्थायी पलायन किया है. रोजगार और शिक्षा के लिए नजदीकी शहरों और कस्बों में लोगों ने अस्थायी पलायन किया है.
वहीं, पिछले दस वर्षों में देहरादून जिले के विकासखंडों में स्थायी पलायन की बात करें, तो कुल 53 ग्राम पंचायतों में 2,802 व्यक्तियों ने स्थायी पलायन किया है. जिसमें सबसे अधिक चकराता विकासखंड के 16 गांव के 611 व्यक्तियों ने स्थायी पलायन किया है. इसके साथ ही सबसे कम डोईवाला के 4 ग्राम पंचायतों में 26 व्यक्तियों ने स्थायी पलायन किया है. जबकि रायपुर के 8 ग्राम पंचायतों में 1,657 लोगों ने स्थायी पलायन किया है.