देहरादून:उत्तराखंड में पहली निर्वाचित सरकार के दौरान ही महिला शोषण का एक ऐसा मामला उठा था कि उससे तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार हिल गयी थी. इसके बाद तो प्रदेश में महिलाओं के यौन शोषण से जुड़े कई मामले सामने आए. न केवल राजनेता बल्कि अधिकारियों पर भी यौन शोषण के आरोप लगे. हालांकि, किसी भी मामले में कभी कोई अंतिम नतीजा निकलता नहीं दिखाई दिया.
यौन शोषण के मामलों को लेकर पहले भी चर्चा में रहे राज्य के नेता-अफसर. चर्चा में रहे चार नेता
वैसे मुख्य रूप से देखा जाए तो प्रदेश में चार नेता ऐसे मामलों को लेकर खासी चर्चाओं में रहे हैं. इसमें दिवंगत नेता एनडी तिवारी सहित हरक सिंह रावत, संजय कुमार और अब महेश नेगी शामिल हैं. हालांकि, समय-समय पर कई दूसरे बड़े नेताओं के भी नाम महिलाओं के शोषण को लेकर चर्चाओं में रहे लेकिन इन पर कोई कानूनी रूप से मामला दर्ज नहीं हो पाया. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक शामिल रहे हैं.
उत्तराखंड में स्कैंडल को लेकर चर्चा में रहे नेता. शासन और पुलिस के अफसरों पर भी लगे आरोप
इतना ही नहीं, शासन में कुछ अधिकारियों समेत पुलिस के बड़े अधिकारियों पर भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं. अधिकारियों पर लगे इन आरोपों को लेकर विभागीय स्तर से अधूरी जांच भी हुई लेकिन अंतिम रूप में कोई भी कार्रवाई और फैसला सार्वजनिक जानकारी में नहीं आ पाया.
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2003 के स्कैंडल में चला गया हरक का मंत्री पद
हरक सिंह रावत- साल 2003 में एक युवती ने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत पर नौकरी देने के नाम पर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था. 2002 में ही पहली निर्वाचित सरकार के रूप में कांग्रेस ने उत्तराखंड में सरकार बनाई थी. हरक सिंह रावत इस सरकार में राजस्व मंत्री थे. सरकार के मंत्री पर लगे इन आरोपों से पूरी सरकार ही हिल गई थी. मामले में तमाम जांच के साथ सीबीआई जांच भी हुई. इस मामले को लेकर हरक सिंह रावत को अपना कैबिनेट मंत्री पद भी गंवाना पड़ा, हालांकि बाद में उन्हें क्लीनचिट दी गई.
सेक्स स्कैंडल के बाद सीन से गायब हुए संजय कुमार
संजय कुमार- उत्तराखंड भाजपा में प्रदेश महामंत्री संगठन संजय कुमार पर भी देहरादून की एक युवती ने उत्पीड़न के ऐसे ही आरोप लगाए. इस मामले में भी पुलिसिया जांच शुरू की गई. लेकिन अब तक यह मामला जांच के रूप में कहां तक पहुंचा यह सार्वजनिक नहीं हो पाया. न ही भाजपा नेता और न ही महिला का मामले के बाद कोई अता-पता है. कुल मिलाकर यह मामला भी ठंडे बस्ते में ही चला गया.
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यौन शोषण में जेल गए जेपी जोशी
उत्तराखंड में अपर सचिव जेपी जोशी की महिला के साथ सीडी भी खूब चर्चाओं में रही. जेपी जोशी जेल भी गए लेकिन जमानत पर बाहर भी आ गये. इस मामले में आरोप लगाने वाली युवती को ब्लैकमेलिंग को लेकर जेल जाना पड़ा. उधर एक पुलिस अधिकारी का भी मामला उत्तराखंड में सुर्खियों में रहा. विभागीय जांच भी हुई लेकिन फिर क्या हुआ कुछ पता नहीं.
महेश नेगी के मामले ने मचाया है तूफान
विधायक महेश नेगी का ताजा मामला फिलहाल राजनीतिक गलियारों में खूब सुर्खियां बटोर रहा है. इस मामले में कांग्रेस महिला की तरफ से डीएनए टेस्ट करवाने की बात कह चुकी है. उधर, भाजपा नेताओं की चुप्पी विधायक का समर्थन करती हुई दिखाई दे रही है. हालांकि इस मामले में भी महिला की तरफ से लगाए गए आरोपों पर अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है.
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नेताओं और अफसरों के स्कैंडल ने किया राज्य को बदनाम
वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र डंगवाल बताते हैं कि उत्तराखंड को कई बार महिला यौन शोषण मामले में अधिकारियों और राजनेताओं के नाम आने के चलते शर्मसार होना पड़ा है. प्रदेश में ऐसे मामलों को लेकर चर्चाएं तो रही हैं लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते यह मामले आगे नहीं बढ़ पाए.
जिसने अपराध किया उसे मिले सख्त सजा
विधायक महेश नेगी के मामले पर वीरेंद्र डंगवाल बताते हैं कि इस मामले में भी जांच अधिकारी दबाव में दिखाई दे रहे हैं. क्योंकि एक ओर विधायक की पत्नी की तरफ से ब्लैकमेलिंग का मुकदमा दर्ज करवाया गया है. दूसरी तरफ महिला के आरोपों के आधार पर विधायक पर भी मुकदमा या कार्रवाई होनी चाहिए थी. इतना ही नहीं, इस मामले में विधायक पर लगे आरोप अगर झूठे साबित होते हैं तो महिला पर कार्रवाई होना बेहद जरूरी है ताकि भविष्य में इसको लेकर एक सटीक संदेश समाज में जा सके.
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महिला के पास कोर्ट जाने का है अधिकार
आमतौर पर माना जाता है कि जब भी किसी राजनेता या बड़े सफेदपोश पर महिलाओं की तरफ से ऐसे आरोप लगते हैं तो मामले में या तो कंप्रोमाइज कर लिया जाता है या फिर दबाव बनाकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है. यही नहीं, राजनीतिक दबाव के जरिए कई बार अधिकारी भी ऐसे मामलों में सही से जांच नहीं कर पाते हैं.
हालांकि, इस सबके बावजूद कानून के जानकार ओमप्रकाश सती कहते हैं कि भारतीय संविधान में महिलाओं को कानूनी रूप से काफी मजबूत किया गया है. महिला विरोधी अपराध या यौन शोषण जैसे मामलों पर महिलाओं को सही तरह से न्याय मिल सके, इसके लिए भी कानून में पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं. ओमप्रकाश सती कहते हैं कि यदि राजनीतिक दबाव के चलते कोई महिला किसी राजनीतिक या सत्ता में पावरफुल व्यक्ति के खिलाफ शिकायत करती है और दबाव में पुलिस रसूखदार व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती तो भी महिला के पास सीधे कोर्ट की शरण लेने का विकल्प होता है. कोर्ट में जाकर भी महिला ऐसे मामलों में न्याय पा सकती है.