देहरादून: केंद्र सरकार के कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश 2020 पारित होने पर उत्तराखंड के कृषि मंत्री ने खुशी जताई है. कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने पारित तीनों बिलों को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह बिल किसानों को संरक्षण देने, बिचैलियों को समाप्त करने और कृषकों को सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा.
ईटीवी भारत से बातचीत में सुबोध उनियाल ने कहा कि इस बिल से किसानों का शोषण समाप्त होगा. वहीं, किसानों को कहीं भी अपनी उपज बेचने के लिए व्यापक अवसर प्राप्त होगा. इसके साथ ही कृषि बिल के जरिए किसानी की आय भी बढ़ेगी. मोदी सरकार के कृषि से जुड़े तीन अहम बिल संसद से पास हो गए हैं. संसद से लेकर सड़क तक, इन बिलों का किसान संगठन और राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं. कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि वन नेशन, वन मार्केट के तहत कृषक अपनी उपज को एमएसपी पर अथवा अधिक दाम पर बेच सकता है.
कृषि सुधार बिल पर बोले सुबोध उनियाल. स्वामीनाथन आयोग की रिर्पोट लागू हो जाने पर एमएसपी कृषकों के कुल लागत से कम नहीं होगी. कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग पहले से चल रहा, जो कृषकों के समझौते से संबंधित था. अब प्रत्येक दशा में खरीददार को उक्त करार का पालन करना होगा. जबकि किसानों को इससे छूट होगी. बढ़े हुए दामों में करार से अतिरिक्त किसानों को कई अंश देना होगा. यही नहीं, बिचैलिया किसानों की भूमि भी नहीं खरीद सकता और न ही बंधक रख सकता है.
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सुबोध उनियाल ने कहा कि नई व्यवस्था में किसानों को हाई यील्ड बीज, उच्च टेकनोलॉजी उपलब्ध कराया जाएगा. कुछ उत्पादों को अवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर रखा गया है. सभी को उक्त वस्तुए रखने का अधिकार दिया गया है. ताकि वस्तुओं की उपलब्धता बनी रही और दामों पर नियंत्रण बना रहें. एक लाख करोड़ के इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड का लाभ प्राइवेट सेक्टर भंडारण, वेयर हाउस, कोल्ड स्ट्रोरेज बनाने में कर सकेंगे, जिसका लाभ किसानों को मिलेगा.
नए विधेयकों में शामिल हैं ये प्रावधान
नए विधेयकों के मुताबिक अब व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे. पहले फसल की खरीद केवल मंडी में ही होती थी. केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज और खाद्य तेल आदि को आवश्यक वस्तु नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी है. इसके अलावा केंद्र ने कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग (अनुबंध कृषि) को बढ़ावा देने पर भी काम शुरू किया है. किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को ही होगा. जबकि, किसानों का कहना है कि यह विधेयक धीरे-धीरे एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) यानी मंडियों को खत्म कर देगा. और फिर निजी कंपनियों को बढ़ावा देगा जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा.
नए कानून का किसानों पर क्या होगा असर
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद का कहना है कि यह कानून किसानों को एपीएमसी की जकड़ से आजाद करेगा. यह कानून किसानों को अपना उत्पाद सीधे किसी को भी बेचने की छूट देगा. इससे खरीदारों में प्रतियोगिता बढ़ेगी और किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे. अब कानूनी रूप से मान्य बिचौलिए के न होने से किसान सीधे ग्राहकों को अपना उत्पाद बेच सकेंगे. तो जब इससे किसानों को फायदा होना है तो फिर वह विरोध क्यों कर रहे हैं?
नए बिलों के लाभ
- राज्यों की कृषि उत्पादन विपरण समिति यानि एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के अधिकार बरकरार रहेंगे. इसलिए किसानों के पास सरकारी एजेंसियों का विकल्प खुला रहेगा.
- नए बिल किसानों को इंटरस्टेट ट्रेड (अंतरराज्यीय व्यापार) को प्रोत्साहित करते हैं. किसान अपने उत्पादों को दूसरे राज्य में स्वतंत्र रूप से बेच सकेंगे.
- 3. वर्तमान में APMC की ओर से विभिन्न वस्तुओं पर 1% से 10 फीसदी तक बाजार शुल्क लगता है, लेकिन अब राज्य के बाजारों के बाहर व्यापार पर कोई राज्य या केंद्रीय कर नहीं लगाया जाएगा.
- किसी APMC टैक्स (या कोई लेवी और शुल्क आदि) का भुगतान नहीं होगा. इसलिए और कोई दस्तावेज की जरूरत नहीं. खरीदार और विक्रेता दोनों को लाभ मिलेगा (निजी कंपनियों और व्यापारियों की ओर से APMC टैक्स का भुगतान होगा, किसानों की ओर से नहीं).
- किसान कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध खेती के लिए प्राइवेट प्लेयर्स या एजेंसियों के साथ भी साझेदारी कर सकते हैं.
- कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग निजी एजेंसियों को उत्पाद खरीदने की अनुमति देगी. कॉन्ट्रेक्ट केवल उत्पाद के लिए होगा. निजी एजेंसियों को किसानों की भूमि के साथ कुछ भी करने की अनुमति नहीं होगी और न ही कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग अध्यादेश के तहत किसान की जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण होगा.
- वर्तमान में किसान सरकार की ओर से निर्धारित दरों पर निर्भर हैं. लेकिन नए आदेश में किसान बड़े व्यापारियों और निर्यातकों के साथ जुड़ पाएंगे, जो खेती को लाभदायक बनाएंगे.
- प्रत्येक राज्य में कृषि और खरीद के लिए अलग-अलग कानून हैं. एक समान केंद्रीय कानून सभी हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) के लिए समानता का अवसर उपलब्ध कराएगा.
- नए बिल कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेंगे क्योंकि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी. निजी निवेश खेती के बुनियादी ढांचे को और मजबूत करेगा और रोजगार के अवसर पैदा करेगा.
- APMC प्रणाली के तहत केवल लाइसेंस प्राप्त व्यापारी जिसे आड़तिया (बिचौलिया) कहा जाता है, को अनाज मंडियों में व्यापार करने की अनुमति थी, लेकिन नया विधेयक किसी को भी पैन नंबर के साथ व्यापार करने की अनुमति देता है.
- इससे बिचौलियों का कार्टेल टूट जाएगा, जो पूरे भारत में एक अहम मुद्दा है.
- नया बिल बाजार की अनिश्चतिता के जोखिम को किसान से निजी एजेंसी और कंपनी की ओर ट्रांसफर करेगा.
पुराने APMC सिस्टम के काम करने का तरीका
- आमतौर पर किसान अपने स्थानीय अनाज बाजार में जाते हैं और अपनी उपज को बिचौलिए को बेचते हैं, जिसे आढ़ती कहा जाता है.
- किसानों को राज्य के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति नहीं है और यदि वे ऐसा करते हैं तो उन्हें संबंधित राज्य एपीएमसी को बाजार शुल्क का भुगतान करना होगा - जो कि 6% तक है.
- भारतीय खाद्य निगम (FCI) जैसी कुछ राज्य और केंद्रीय एजेंसियां जन वितरण प्रणाली (PDS) आदि के लिए तय MSP पर इन बिचौलियों के माध्यम से खाद्यान्न की खरीद करती हैं.
- भले ही बाजार में कीमतें अधिक हों, किसानों को लाभ नहीं मिलता है या उनकी कोई भूमिका नहीं होती है.
- ये बिचौलिए खाद्यान्न के अलावा कृषि उपज भी खरीदते हैं और इसे थोक विक्रेताओं को ऊंचे दामों पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं.
- ये बिचौलिए अक्सर जरूरतमंद किसानों को ऊंची ब्याज दर पर कर्ज देकर मनी लैंडिंग रैकेट भी चलाना शुरू कर देते हैं.
- किसान अपनी जमीन गिरवी रखकर इन निजी साहूकारों (ब्याज पर कर्ज देने वाले) से कर्ज लेते हैं. पंजाब में जितने किसानों ने खुदकुशी की, उनमें से अधिकतर के लिए जिम्मेदार इन बिचौलियों की ओर से चलाया जा रहा कर्ज देने वाले रैकेट ही है.